रामनगर: अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर विशेष… बढ़ रहा बाघों का कुनबा, बेहतर संरक्षण बड़ी चुनौती

विनोद पपनै, रामनगर। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर वन्यजीव प्रेमियों के लिए सुकून भरी खबर है। देश में बाघों की संख्या तेजी के साथ बढ़ रही है। वर्तमान में देश में बाघों की संख्या लगभग 2900 के आसपास है, जिसमें अकेले कॉर्बेट में 250 से अधिक बाघ हैं। बाघों का बढ़ना वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ पर्यटन …
विनोद पपनै, रामनगर। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर वन्यजीव प्रेमियों के लिए सुकून भरी खबर है। देश में बाघों की संख्या तेजी के साथ बढ़ रही है। वर्तमान में देश में बाघों की संख्या लगभग 2900 के आसपास है, जिसमें अकेले कॉर्बेट में 250 से अधिक बाघ हैं।
बाघों का बढ़ना वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ पर्यटन के लिहाज से अच्छा संदेश है। मगर जितनी तेजी से बाघों की संख्या बढ़ रही है उस हिसाब से उनके संरक्षण में आने वाली चुनौतियां भी वनाधिकरियों के सामने खड़ी हो चुकी हैं। आमतौर पर औसतन 15 से 20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र एक बाघ का दायरा माना जाता है। कॉर्बेट पार्क में हर 5.2 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक बाघ के होने का अनुमान है। ऐसे में बाघों का संरक्षण किया जाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
वर्चस्व की आपसी जंग
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार कहते हैं कि आज से दस साल पहले बाघ के शावकों के ज़िंदा रहने का अनुपात काफी कम था। मतलब अगर कोई बाघिन 3 या 4 शावकों को जन्म देती थी तो उसमें से 1 या 2 ही शावक ही बच पाते थे बाक़ी अन्य तेंदुआ, सियार या बाज द्वारा मार दिए जाते थे, पर अब इनके ज़िंदा रहने का अनुपात शत प्रतिशत हो गया है और सभी शावक जीवित बच रहे हैं जिससे बाघों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गयी है। इस वजह से अब बाघों में आपसी संघर्ष की घटनाएं सामने आने लगी हैं। वर्चस्व की इस जंग में जो हारा या तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा या फिर जंगल के इलाके को छोड़ना पड़ेगा।
घनत्व बढ़ा, संख्या पर संकट
बाघों के जंगल में तेजी से बढ़ते घनत्व की वजह से उनके शिकार पाड़ा, हिरन, चीतल जैसे वन्य जीवों की संख्या भी निकट भविष्य में घट सकती है। इनके लिए नए ग्रासलैंड विकसित किये जाने जरुरत भी बढ़ सकती है।
मानव-वन्य जीव संघर्ष सबसे बड़ी चुनौती
बाघों की बढ़ती संख्या के कारण कॉर्बेट से सटे ग्रामीणों को बाघ से खतरा होने लगा है। आये दिन बाघ पालतू मवेशियों के अलावा ग्रामीणों व राह चलते लोगो को भी अपना निवाला बनाने लगे हैं। मानव-वन्य जीव संघर्ष को रोक पाने के लाख दावे क्यो न किये जायें मगर इसमे वन विभाग को सफलता आज तक नही मिल पायी। बाघों के बढ़ने से वन्य प्रेमी या पर्यटन कारोबारी खुश क्यों न हों मगर ग्रामीण बाघों के हमले को लेकर चिंतित जरूर हैं। मानव-वन्य जीव संघर्ष की यदि बात की जाए तो राज्य निर्माण के बाद अब तक बाघ के हमलों में 25 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी हैं।
बाघों के संरक्षण के लिए कई प्रकार की चुनोतियां सामने जरूर हैं, मगर हर चुनौतियो का सामना करने के लिए वन कर्मी तैयार हैं। – नीरज शर्मा, उप निदेशक, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व