बुंदेलखंड में फाग के धुनों पर रंगों से सराबोर हुरियारों का होता है धमाल

झांसी। रंगों का त्योहार होली यूं तो पूरे देश में ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में इस रंगीले त्योहार की बहार कुछ अलग ही अंदाज में नजर आती है, जहां फागुन माह में गांव की चौपालों पर लोग फाग की धुनों पर झूमते नाचते नजर आते हैं। …
झांसी। रंगों का त्योहार होली यूं तो पूरे देश में ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में इस रंगीले त्योहार की बहार कुछ अलग ही अंदाज में नजर आती है, जहां फागुन माह में गांव की चौपालों पर लोग फाग की धुनों पर झूमते नाचते नजर आते हैं। बुंदेलखंड में होली ‘होरी’ के नाम से मशहूर है और इस दौरान फाग गायन रंग बिरंगे त्योहार को एक अलग ही कलेवर से रंग देते हैं।
फागुन माह में फसल पककर तैयार होने के बाद से ही गांव-देहातों में आनंद और खुशी का माहौल हो जाता है और हर दिन शाम के समय चौपालों पर लोगों को जमावड़ा होता है। गांव के बुर्जुग, बच्चे और महिलाएं सभी फाग गायन में हिस्सा लेते हैं। होली के दिन तो यह जश्न सभी के सिर चढ़कर बोलता है। ढोलक की थाप और मंजीरे आदि की धुन पर फाग गाते बच्चे ,बूढ़े ,जवान और महिलाएं टोलियां बनाकर गांव में निकलते हैं। फाग गायन की परंपरा होली के त्योहार को बुंदेलखंड में एक विशेष रंग देती है।
फाग गाती निकलती ये टोलियां “ हुरियारे” के नाम से जानी जाती हैं। हुरियारों की टोली कमर में नगड़िया बांधकर गली- गली घूमती फाग की धुनों पर नाचती गाती लोगों के घर जाती हैं। बुंदेलखंड में 19वी शताब्दी में ईसुरी नाम के एक प्रसिद्ध कवि हुए थे, जिन्होंने फाल्गुन में होली पर फागें लिखी, यह गेय पद हैं जो चौकड़ियों में हैं। बुंदेलखंड में ईसुरी जैसी प्रसिद्धि किसी और कवि को नहीं मिली है।
ईसुरी द्वारा लिखित चौकड़ियों को तेज संगीत के साथ गाते हुरियारे पूरे वातावरण को संगीतमय बना देते हैं। जाने माने इतिहासकार और दर्जा प्राप्त मंत्री हरगोविंद कुशवाहा ने बताया कि ईसुरी गंगाधर व्यास ने ही बुंदेलखंड में फाग गायन परंपरा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। पूरे बुंदेलखंड में फाग गायन की कई परंपराएं है। गांव देहातों में नरेंद्र छंद में गया जाता है तो शास्त्रीय गायन परंपरा में भी गाया जा सकता है, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में फाग गायन की अलग परंपरा है तो मध्यप्रदेश में आने वाले बुंदेली क्षेत्र में गायन परंपरा कुछ और है।
बुंदेलखंड की संस्कृति की गहरी समझ कवि ईसुरी को थी और उनकी फाग रचनाओं में सीधे साधे अंदाज में इसे बेहर प्रभावशाली तरीके से उकेरा गया है। ईसुरी के फाग गायन के बिना बुंदेलखंड में होली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है हालांकि आधुनिकता के प्रभाव में फाग गायन परंपरा भी सीमित हुई हैं लेकिन होली के साथ-साथ शुभ अवसरों पर आज भी इस गायन शैली का बुंदेलखंड में बड़ा महत्व है।
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