बरेली: कचरी-पापड़ में रंगों की मिलावट

बरेली,अमृत विचार। होली के चंद दिन बचे हैं मगर औषधि प्रशासन एवं खाद्य सुरक्षा विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है। सोमवार को चंद दुकानों पर जाकर सैंपलिंग की कार्रवाई शुरू की गई । इससे पहले विभाग के अधिकारी चुनाव में व्यस्तता बताते हुए छापा मारने से कतराते रहे। सवाल यह खड़ा हो रहा है …
बरेली,अमृत विचार। होली के चंद दिन बचे हैं मगर औषधि प्रशासन एवं खाद्य सुरक्षा विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है। सोमवार को चंद दुकानों पर जाकर सैंपलिंग की कार्रवाई शुरू की गई । इससे पहले विभाग के अधिकारी चुनाव में व्यस्तता बताते हुए छापा मारने से कतराते रहे। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि होली से 11 दिन पहले सैंपलिंग की शुरूआत की गई है।
जबकि सैंपल की रिपोर्ट आने में कम से कम 15 माह तक लग जाते हैं, ऐसे में अगर नमूने फेल होते हैं तब तक लोगों की सेहत से खिलवाड़ किया जाता रहेगा। बाजार में रंगीन कचरी का कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। विशेषज्ञों की राय में यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
होली से पहले नकली मावा से तैयार मिठाइयां बाजार में जोर पकड़ने लगती है। डिमांड के अनुसार दूध नहीं मिलने के कारण सिथेंटिक से भी दूध तैयार किया जाता है। नकली मावा और सिंथेटिक दूध से गंभीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा रंग बिरंगी कचरी-पापड़ शहर के बाजारों में बेचा जा रहा है।
होली पर गुझिया के साथ ही आलू के चिप्स, पापड़, कचरी बनाने की भी परंपरा है लेकिन भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास इसके लिए समय नहीं है। ऐसे में ज्यादातर लोग बाजार से खरीदकर लाते हैं। बाजार में इनकी डिमांड बढ़ने का फायदा मिलावटखोर उठा रहे हैं। वे ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए घटिया क्वालिटी की सामग्री का प्रयोग करते हैं।
केमिकल मिलाकर इन्हें रंगीन बना रहे हैं, जो देखने में तो अच्छे लगते हैं, लेकिन सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। पुराने दौर में होली की तैयारियां करीब 15 दिन पहले से होने लगती थीं। लोग मंडी से आलू खरीदकर लाते और उन्हें धोकर कटर से चिप्स बनाते थे। इसके बाद उन्हें उबालकर कई-कई दिन तक तेज धूप में सुखाया जाता था।
इसी तरह पापड़ बनाने के लिए आलू उबालना, छीलना, उसमें नमक, मिर्च आदि मिलाकर पॉलिथीन के बीच में रखकर बेलना होता था। इन्हें भी सुखाकर रख लिया जाता था। इन कामों के लिए पूरा परिवार लगता था, लेकिन आज इसके लिए किसी के पास समय नहीं है। लोग मेहनत करने के बजाय बाजार से रेडीमेड पापड़, चिप्स आदि खरीद लाते हैं। इसका लाभ मिलावट करने वाले उठा रहे हैं।
हो सकती हैं पेट संबंधी शिकायतें
सिंथेटिक रंग से बनी कचरी खाने से गैस और एसिड बनने से त्योहार पर दिक्कत हो सकती है। पेट संबंधी अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। कचरी, पापड़ में मिलावटी सामग्री के प्रयोग से पथरी बनने की आशंका रहती है। सिंथेटिक रंग के शरीर में जाकर रक्त में घुलने से त्वचा संबंधी रोग की आशंका रहती है।
होली से पहले विभाग की टीमों को सक्रिय कर दिया गया है। लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए जगह-जगह खाद्य पदार्थों के सैंपल लिए जा रहे हैं। सैंपलिंग की कार्रवाई में और अधिक तेजी लाई जाएगी।
—धर्मराज मिश्र, जिला अभिहित अधिकारी
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