बरेली: 108 साल पुरानी गौशाला का नवीनीकरण फंसा, 600 गौवंश पल रहे

बरेली, अमृत विचार। 108 साल पहले गौवंशों की सेवा करने के मकसद से बरेली गौशाला सोसायटी की स्थापना की गयी थी लेकिन अब सोसायटी के पंजीयन का नवीनीकरण फंसा हुआ है। सोसायटी ने पीलीभीत के अमरिया तहसील के भरपचपेड़ा में 2290 एकड़ में जो जमीन खरीदी थी, उसका का भी विवाद चल रहा है। सोसायटी …
बरेली, अमृत विचार। 108 साल पहले गौवंशों की सेवा करने के मकसद से बरेली गौशाला सोसायटी की स्थापना की गयी थी लेकिन अब सोसायटी के पंजीयन का नवीनीकरण फंसा हुआ है। सोसायटी ने पीलीभीत के अमरिया तहसील के भरपचपेड़ा में 2290 एकड़ में जो जमीन खरीदी थी, उसका का भी विवाद चल रहा है। सोसायटी के पदाधिकारियों ने रविवार को सर्किट हाउस में वित्तमंत्री सुरेश कुमार खन्ना से मुलाकात की। पंजीयन के नवीनीकरण की मांग उठायी।
बताया कि सोसायटी ने नवीनीकरण के लिए 12 अक्टूबर 2020 को सहायक रजिस्ट्रार के यहां शुल्क जमा करने के साथ प्रपत्र, सदस्यता सूची, ऑडिट रिपोर्ट व अन्य जरूरी कागजात जमा कर दिए। अन्य मांगे गए कागजात भी दे दिए लेकिन नवीनीकरण नहीं हुआ। सालभर से सहायक रजिस्ट्रार बरेली, लखनऊ और जिला प्रशासन पीलीभीत के चक्कर काट रहे हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुरेश खन्ना के निर्देश पर सहायक रजिस्ट्रार अवनीश कुमार चिट फंड फर्मस एवं सोसायटी को सर्किट हाउस बुलाया गया। वित्तमंत्री ने सहायक रजिस्ट्रार को सोसायटी का नवीनीकरण कराने के निर्देश दिए हैं।
बरेली गौशाला सोसायटी के अध्यक्ष अजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि बरेली गौशाला सोसायटी की स्थापना 1913 में हुई थी। स्थापना हुए करीब 108 वर्ष हो गए। चिट फंड फर्मस एवं सोसायटी एक्ट 1860 के तहत 16 अगस्त 1916 से पंजीयन है। उत्तर प्रदेश गौशाला अधिनियम सन 1964 के अधीन पंजीयन से 4 अगस्त 1967 से पंजीकृत है। सोसायटी ने भरपचपेड़ा अमरिया पीलीभीत में 2290 एकड़ कृषि भूमि 27 जुलाई 1928 को खरीदी थी।
भूमि शिवचरन लाल पुत्र किशोर चंद्र निवासी बिहारीपुर जिला बरेली से क्रय की गयी थी लेकिन इसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी अधिनियम पंजीकृत गौशालाओं में लागू नहीं होगा। आरोप है कि जिला प्रशासन पीलीभीत ने मनमाने ढंग से कृषि भूमि 270 एकड़ को छोड़कर 2020 एकड़ भूमि बंजर रेगिस्तान आदि में दर्ज कर दी। बताया कि सोसायटी ने वाद दायर किया। 31 जुलाई 1957 को निर्णय हुआ। इसके बाद पूरी भूमि 2290 एकड़ गौशाला के नाम कर दी गयी।
आरोप है कि 1976 में पुन: उपजिलाधिकारी अमरिया ने खुर्द-बुर्द करने के प्रयास किए। इस पर सोसायटी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 4 जनवरी को 1985 में इसका निर्णय हुआ। जिसमें कृषि भूमि पर गौशाला सोसायटी का स्वामित्व व कब्जा दखल का आदेश सुनाया गया। इसके विरुद्ध यूपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रिट की। सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 17 मार्च 1994 को उक्त एसएलपी खारिज कर दी गयी।
उक्त आदेशों को अमल दरामद के लिए आवेदन पत्र दिए गए जो जिला प्रशासन ने केवल गौशाला सोसायटी के खतौनी/खाता संख्या 00004 में दर्ज कर दिए। शेष अन्य खतौनियां बंजर रेगिस्तान व अन्य में कर दी गयीं। इसके विरुद्ध सोसायटी ने कर कनेक्शन ऑफ पेपर का मुकदमा उच्च न्यायालय में 2013 में कराया। मामला विचाराधीन है। प्रशासन ने सोसायटी के नवीनीकरण का पेच भी फंसाया है।
गौशाला में एक-दो दिन का भरण पोषण शेष, 4.5 लाख दिलाने की मांग
बरेली गौशाला सोसायटी के अध्यक्ष अजय कुमार अग्रवाल के नेतृत्व में सतीश चंद्र शर्मा, मनोज थपलियाल, उमानाथ अग्रवाल, शिव कुमार, सौरभ गर्ग आदि ने सर्किट हाउस में वित्तमंत्री से मुलाकात की। बताया कि सोसायटी की गौशाला में 600 गौवंश हैं। प्रतिदिन का खर्चा 27 हजार रुपये आ रहा है। लगभग आठ लाख रुपये महीने का खर्च है। जो बिना सरकारी अनुदान से पूरा करना संभव नहीं है।
गौशाला में एक-दो दिन का भरण पोषण ही उपलब्ध है। बरेली गौशाला सोसायटी का रफियावाद गौवृहद संरक्षण करने में असमर्थ है। करीब 4.50 लाख रुपये जून माह से रोक रखा है। इसका भुगतान और सोसायटी का नवीनीकरण कराने की मांग उठायी।