लखनऊ: पराली का धुआं बना चिंता का विषय, बढ़ता है वायु प्रदूषण

लखनऊ: पराली का धुआं बना चिंता का विषय, बढ़ता है वायु प्रदूषण

लखनऊ। कोरोना काल में जहां एक बार लखनऊ की हवा साफ सुथरी हुई थी। वहीं एक बार फिर पराली का धुआं शहरवासियों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। इसके अलावा आस-पास के जगहों पर धान की फसल काटने के बाद उसको जलाने की वजह से चारों ओर धुएं की मोटी परत जमा …

लखनऊ। कोरोना काल में जहां एक बार लखनऊ की हवा साफ सुथरी हुई थी। वहीं एक बार फिर पराली का धुआं शहरवासियों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। इसके अलावा आस-पास के जगहों पर धान की फसल काटने के बाद उसको जलाने की वजह से चारों ओर धुएं की मोटी परत जमा हो रही है। साथ ही रात के समय लखनऊ के आउटर जगहों में रहने वाले लोगों कोसांस लेने में समस्या आनी शुरू हो गई हैं।

बता दें कि बढ़ती तकनीक और कृषि लागत की वजह से किसान नए-नए तकनीक का उपयोग करते हैं। जिससे कम लागत और कम समय में अधिक काम हो सके। किसान अभी भी रबी फसल की कटाई में हार्वेस्टर का ज्यादा उपयोग कर रहे हैं। जिससे खेत में गेंहू की बाली तो काट ली जाती है, लेकिन बाकी डंठल खेत में बच जाता है। जिसे बाद में जला दिया जाता है, इससे किसान और खेत दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ता है।

वहीं, फसलों को काटने के बाद खेतों में बचे डंठलों को जलाने के दृश्य मालवा-निमाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों दिखाई दे रहे हैं। हजारों एकड़ में खेतों को जलते देखना शहरवासियों के लिए रोमांचक हो सकता है, लेकिन किसानों के लिए यह सामान्य बात है। वह खेतों की अगली फसल को तैयार करने के लिए सालों से यहीं तरीका अपनाते आ रहे हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी घटती जा रही है, क्योंकि अत्यधिक तापमान से खेत की मिट्टी में मौजूद मित्र बैक्टीरिया और उपयोगी तत्व नष्ट हो रहे हैं। साथ ही खेतों की आग आस-पास की बस्तियों के लिए भी खतरा बनी हुई है। पशु-पक्षियों की जान भी जोखिम में हैं। शासन ने डंठलों को जलाना बैन कर रखा है, लेकिन किसान इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। साथ ही इसपर सजा और जुर्माने के प्रावधान का भी कोई असर नहीं हुआ है।

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