रक्षाबंधन के दिन इस बार भद्रा नहीं बनेगी बाधा, पूरे दिन भाइयों को बांध सकते हैं रक्षा सूत्र

बहन और भाई के प्यार से प्यारा शायद ही कोई बंधन होता होगा। फ्रिक, तकरार के साथ ढेरसारा एतबार इस रिश्ते को मजबूत बनाता है। इसीलिए रक्षाबंधन के त्यौहार का बेताबी से इंतजार बहन और भाई दोनों को ही होता है। रक्षाबंधन इस वर्ष 22 अगस्त दिन रविवार को है। रक्षाबंधन पर्व श्रावण मास की …
बहन और भाई के प्यार से प्यारा शायद ही कोई बंधन होता होगा। फ्रिक, तकरार के साथ ढेरसारा एतबार इस रिश्ते को मजबूत बनाता है। इसीलिए रक्षाबंधन के त्यौहार का बेताबी से इंतजार बहन और भाई दोनों को ही होता है। रक्षाबंधन इस वर्ष 22 अगस्त दिन रविवार को है। रक्षाबंधन पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है। इस बार कई विशेष योग रहेंगे। धनिष्ठा नक्षत्र के साथ राजयोग और शोभन योग रहेगा। अर्थात् उदयकाल में भद्रा नहीं होने से पूरे दिन भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध सकेंगी।
ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा ने बताया कि रक्षा बंधन के त्यौहार पर सुबह से शाम 5:32 तक राजयोग, सुबह 10:34 बजे तक शोभन योग और रात 7:40 तक धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा। इसमें परा व्यापनी तिथि ली जाती है। यदि वह दो दिन हो, या दोनों दिन न हो तो पूर्वा लेनी चाहिए। यदि इसमें भद्रा आ जाए तो उसका त्याग किया जाता है। भद्रा में श्रावणी और फाल्गुनी दोनों वर्जित है। श्रावणी में राजा और फाल्गुनी में प्रजा का नाश होता है। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा है ही नहीं। भद्रा सुबह 5:38 बजे तक ही खत्म हो जाएगा। पंचक रहेगा लेकिन इस बार पंचक होना कोई बाधा नहीं है।
राज योग: राजयोग में किया गया शुभ कार्य मंगलकारी रहता है। इस विशेष योग में रक्षाबंधन करना सभी भाई बहनों के लिए सिध्दायक रहेगा।
शोभन योग: शोभन योग को शुभ कार्यों और यात्रा पर जाने के लिए अति उत्तम कहा गया है। इस योग में शुरू की गई यात्रा अत्यंत सुखद ब मंगलकारी होती है।
धनिष्ठा नक्षत्र: धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है। मान्यता है कि धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाला भाई अपने बहन के प्रति विशेष लगाव रखता है।
रक्षाबंधन मुहूर्त 2021
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 21 अगस्त की शाम 7:01 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 22 अगस्त शाम 5:32 बजे तक
शुभ समय – 22 अगस्त, रविवार सुबह 7:22 बजे से पूरे दिन
रक्षा बंधन के लिए दोपहर का उत्तम समय – 22 अगस्त को 01:44 बजे से 04:23 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:04 से 12:58 मिनट तक
अमृत काल – सुबह 09:34 से 11:07 तक
ब्रह्म मुहूर्त – 04:33 से 05:21 तक
भद्रा काल – 23 अगस्त, 2021 सुबह 05:34 से 06:12 तक
इस तरह बांधे रक्षा सूत्र
व्रत करने वाले सुबह स्नान के बाद देवता ऋषि एवं पितरों का तर्पण करें। ऊनी, सूती, रेशमी पीला वस्त्र लेकर उसमें सरसों, केसर, चंदन, चावल, दूर्वा रखकर बांध लें। एक कलश की स्थापना कर उस पर रक्षा सूत्र को रख विधिवत पूजन करें। बहन को पश्चिम में मुख करके भाई के ललाट पर रोली, चंदन व अक्षत का तिलक लगाए। भाई को पूर्वाभिमुख, पूर्व दिशा की ओर बिठाएं। बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। इसके बाद भाई के माथे पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधे। रक्षा सूत्र बांधते समय उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करें। यह रक्षा सूत्र एक वर्ष पर्यंत रक्षा करता है। सफेद व पीले धागे से बने रक्षा सूत्र का उपयोग किया जाना चाहिए।
मंत्र- येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।
रक्षा सूत्र का वैज्ञानिक महत्व
रक्षासूत्र में रेशम मुख्य अवयय है। रेशम को कीटाणुओं को नष्ट करने वाला यानि प्रति जैविक माना जाता है, जिसे एंटीबायोटिक कहते हैं। केसर को ओजकारक, उष्णवीर्य, उत्तेजक, पाचक, वात-कफ-नाशक और दर्द को नष्ट करने वाला माना गया है। लिहाजा रक्षाबंधन के रक्षा सूत्र में केसर भाई के ओज और तेज में वृद्धि का, अक्षत भाई के अक्षत, स्वस्थ और विजयी रहने की कामना का, सरसों के दाने भाई के बल में वृद्धि का, दूर्वा भ्राता के सदगुणों में बढ़ोत्तरी का, और चंदन भाई के जीवन में आनन्द, सुगंध और शीतलता में वृद्धि का प्रतीक है।
प्रचलित कथा
रक्षा बंधन को लेकर मान्यता है कि जब देवताओं और असुरों का युद्ध (देवासुर संग्राम) हो रहा था, तब एक बार ऐसा लगने लगा कि असुर जीत जाएंगे। देवताओं का नेतृत्व इंद्र कर रहे थे। तब इंद्राणी यानी देवराज इंद्र की पत्नी शची देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास गई थीं। देवगुरु ने उन्हें विजय के लिए रक्षा सूत्र बांधने को कहा। फिर शची ने युद्ध के लिए प्रस्थान कर रहे इंद्र के हाथों में रक्षा सूत्र बांधा। मान्यता है कि इसी रक्षा सूत्र के कारण देवता इस संग्राम में विजयी हुए। वह दिन श्रावण पूर्णिमा का था। इसी रक्षा सूत्र की बदौलत माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया था। महाभारत काल में रक्षा-सूत्र बांधने का उल्लेख मिलता है। द्रौपदी ने अपना आंचल फाड़ कर कृष्ण की उंगली में उसे बांधा था। कहा जाता है कि महाभारत के समय श्रीकृष्ण ने विजय के लिए युधिष्ठिर से रक्षा सूत्र बांधने को कहा था।