Kalpana Chawla Death Anniversary: छोटे से गांव में जन्‍मी कल्‍पना कैसे पहुंची थी अंतरिक्ष तक, जानें इनके जीवन से जुड़ी बातें.

Kalpana Chawla Death Anniversary: छोटे से गांव में जन्‍मी कल्‍पना कैसे पहुंची थी अंतरिक्ष तक, जानें इनके जीवन से जुड़ी बातें.

नई दिल्ली। एक फरवरी का दिन दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के दिल में एक टीस बनकर बसा है। 2003 में एक फरवरी को अमेरिका का अंतरिक्ष शटल कोलंबिया अपना अंतरिक्ष मिशन समाप्त करने के बाद धरती के वातावरण में वापस लौटने के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसमें सवार सभी सात अंतरिक्ष यात्रियों की मौत …

नई दिल्ली। एक फरवरी का दिन दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के दिल में एक टीस बनकर बसा है। 2003 में एक फरवरी को अमेरिका का अंतरिक्ष शटल कोलंबिया अपना अंतरिक्ष मिशन समाप्त करने के बाद धरती के वातावरण में वापस लौटने के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसमें सवार सभी सात अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई थी। इस हादसे में भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की भी जान चली गई।

कोलंबिया में मिशन विशेषज्ञ के तौर पर गईं कल्पना भारत में हरियाणा के करनाल की रहने वाली और वह पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं। करनाल की बेटी कल्पना अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थीं। उनकी यादें अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रखने वाले बच्चों को आज भी प्रेरित करती हैं। इसी सोच के साथ नेशनल एयरोनोटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) द्वारा हर साल विशेष शैक्षिक पर्यटन का आयोजन किया जाता है। कल्पना के स्कूल टैगोर बाल निकेतन के मेधावी बच्चों के लिए नासा 1998 से इस दौरे का आयोजन कर रहा है। इस तरह ये बच्चे आने वाले युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को आश्वस्त करते हैं।

प्यार से परिवार वाले कहते थे मोंटू
करनाल में बनारसी लाल चावला के घर 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। घर में सब उन्हें प्यार से मोंटू कहते थे। शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई। जब वह 8वीं क्लास में पहुंचीं तो उन्होंने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की। कल्पना के पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे। परिजनों का कहना है कि बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष और खगोलीय परिवर्तन में थी। वह अक्सर अपने पिता से पूछा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? इस पर उनके पिता उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे।

कब से भरी अपने सपनों की उड़ान
कल्पना अपने सपनों को साकार करने 1982 में अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई के लिए अमेरिका रवाना हुई। फिर साल 1988 में वो नासा अनुसंधान के साथ जुड़ीं। जिसके बाद 1995 में नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए कल्पना चावला का चयन किया। उन्होंने अंतरिक्ष की प्रथम उड़ान एस टी एस 87 कोलंबिया शटल से संपन्न की। कल्पना ने अपना पहला अंतरिक्ष मिशन 19 नवंबर 1997 को शुरू किया था। जिसकी इसकी अवधि 19 नवंबर 1997 से 5 दिसंबर 1997 थी। अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान उन्होंने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की इसके बाद उन्होंने इस क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां दर्ज कीं।

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कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए दूसरी उड़ान कोलंबिया शटल 2003 से भरी। ये दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी, 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई। यह 16 दिन का अंतरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था। जब वे कोलंबिया मिशन का हिस्सा बनीं तो उनके अपने शहर करनाल के निवासियों सहित सभी भारतीयों को एक अलग ही गर्व का अनुभव हुआ। लेकिन इसी बीच 1 फरवरी, 2003 का कभी न भूला देने वाला दिन आया, जब कल्पना और मिशन में शामिल 6 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों का यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया और कल्पना अंतरिक्ष में ही रह गईं।

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