नगर निगम चुनाव : आरक्षण के फेर में कई के अरमानों पर फिर सकता है पानी

मुरादाबाद,अमृत विचार। नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित नगर निगम चुनाव से पहले आरक्षण के पेच से कई के मंसूबे पर पानी फिरने की आशंका बनी है। महापौर और वार्ड पार्षदों के चक्रीय आरक्षण पर भावी उम्मीदवारों के साथ ही कई दिग्गज नेताओं की टकटकी लगी है। आरक्षण फाइनल होने पर ही धुरंधर पूरे उत्साह के साथ निगम …

मुरादाबाद,अमृत विचार। नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित नगर निगम चुनाव से पहले आरक्षण के पेच से कई के मंसूबे पर पानी फिरने की आशंका बनी है। महापौर और वार्ड पार्षदों के चक्रीय आरक्षण पर भावी उम्मीदवारों के साथ ही कई दिग्गज नेताओं की टकटकी लगी है। आरक्षण फाइनल होने पर ही धुरंधर पूरे उत्साह के साथ निगम की सड़कों पर दमदारी दिखाने उतरेंगे।

दो दिसंबर तक नगर निगम के वर्तमान बोर्ड का कार्यकाल है। इसके पहले कभी भी चुनाव होने की संभावना है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने पिछले दिनों तय समय पर चुनाव होने की बात कह कर भावी दावेदारों में ऊर्जा का संचार कर दिया था। इसके बाद चुनाव की तैयारी में जुटे कई नेता अब चटख कुर्ता पहन गलियों में दावेदारी करते फिरने लगे हैं। वहीं कई वर्तमान पार्षद जो अब तक निष्क्रिय पड़े रहे अचानक से रेस में तेज होने लगे हैं। हालांकि अभी असल पेच वार्ड पार्षदों और महापौर सीट के आरक्षण को लेकर है।

पिछले कई बार से सामान्य रही सीटों पर इस बार महिला या पिछड़ी जाति के होने का अंदेशा बना है। इससे कई नये चेहरे सामने दावेदारी करते दिखेंगे तो पुराने दिग्गजों के अरमानों पर पानी भी फिर सकता है। भाजपा, कांग्रेस, सपा के कई ऐसे पार्षद हैं जो दो चार बार से चुनाव जीतते चले आ रहे हैं और एक बार फिर जोर आजमाने की तैयारी में हैं। लेकिन आरक्षण की तलवार से दावेदारी कटने की आशंका से वह अभी खुलकर बोलने से बच रहे हैं। पार्टी जैसा कहेगी यह कहकर भी अपनी मंशा को कुंद करते दिख रहे हैं।

महापौर के लिए कौन होगा दावेदार, किसकी खुलेगी लाटरी
1995 से अब तक सिर्फ एक बार महापौर की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित रही है। अन्य बार यह सीट अनारक्षित ही रही। जिसका सबसे अधिक फायदा वर्तमान महापौर विनोद अग्रवाल और उनके परिवार को ही मिला। छह में से 3 बार उनकी पत्नी बीना अग्रवाल महापौर बनीं तो दो बार विनोद अग्रवाल को अवसर मिला। लेकिन, इस बार आरक्षण बदलना लगभग तय माना जा रहा है। भाजपा के अंदरखाने भी उनकी मजबूत दावेदारी को खत्म करने के लिए आरक्षण की तलवार चलवाने की कोशिश कई जनप्रतिनिधि कर रहे हैं। वहीं महिला सीट होने पर इस बार उनकी बहू भी दावेदारों की कतार में सक्रिय दिख रही हैं। भाजपा के कई कार्यक्रमों में एक साल से उनकी सक्रियता अन्य कई दावेदारों में हलचल पैदा कर रही है तो विस चुनाव में उनके और नगर विधायक के बीच दिखे मनभेद से भी इस बार कुछ नया गुल खिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का संकेत भी कर रहा इशारा
पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी को जब भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटलैंड को साधने के लिए प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो अपने अभिनंदन समारोह में ही उन्होंने यह कहकर चौंका दिया था कि पार्टी में परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं है। जो उपयुक्त होगा उसको ही चुनाव या पार्टी में अवसर मिलता रहा है और आगे भी यही होगा। इस संदेश का इशारा महापौर सीट के लिए वर्तमान महापौर या उनके परिवार के सदस्यों के लिए साफ माना जा रहा है। हालांकि हर फन के माहिर विनोद अग्रवाल आखिरी वक्त में किस दांव से दूसरों को चित्त कर अपनी बाजी जीतेंगे यह कोई कह नहीं सकता और इस पर सबकी निगाह टिकी है।

कांग्रेस और सपा में नहीं दिख रही मजबूती
दो बार के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भले ही सपा ने मुरादाबाद में अपना दमखम दिखाया हो लेकिन, नगर निगम चुनाव में भाजपा ही अब तक यहां सब पर भारी पड़ती रही है। इस बार भी इसमें बहुत कुछ बदलाव नहीं दिखने की गुंजाइश है। हालांकि इन दोनों दलों के अलावा बसपा के कर्णधार भी अपने दावे कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें : मुरादाबाद: मिस-मिसेज बनने को प्रतिभागियों का जलवा, निर्णायक मंडल में 30 का हुआ चयन