मुरादाबाद : शाह गुलाम बोलन को हुई थी काला पानी की सजा, क्रांतिकारियों के लिए खाने और रहने की करते थे व्यवस्था

मुरादाबाद : शाह गुलाम बोलन को हुई थी काला पानी की सजा, क्रांतिकारियों के लिए खाने और रहने की करते थे व्यवस्था

मुरादाबाद,अमृत विचार। देश की आजादी के लिए शहर के शाह गुलाम बोलन ने भी अहम भूमिका निभाई थी। दरगाह हजरत शाह बुलाकी साहब के परपोते शाह गुलाम बोलन को अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को खाना खिलाते हुए गिरफ्तार किया था और उन्हें काला पानी की सजा सुनाई थी। शहर के चक्कर की मिलक स्थित दरगाह हजरत …

मुरादाबाद,अमृत विचार। देश की आजादी के लिए शहर के शाह गुलाम बोलन ने भी अहम भूमिका निभाई थी। दरगाह हजरत शाह बुलाकी साहब के परपोते शाह गुलाम बोलन को अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को खाना खिलाते हुए गिरफ्तार किया था और उन्हें काला पानी की सजा सुनाई थी। शहर के चक्कर की मिलक स्थित दरगाह हजरत शाह बुलाकी साहब का जन्म जिला बिजनौर के स्योहारा में 1631 में हुआ था। बाद में वह मुरादाबाद आकर बस गए थे। उनका निधन 1727 में हो गया था। चक्कर की मिलक स्थित उनकी दरगाह पर आज देश-विदेश के लोग हाजिरी देने आते हैं।

बताया जाता है कि उनके परपोते शाह गुलाम बोलन जंगे आजादी में अपना सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने क्रांतिकारियों के लिए हर समय खाने का प्रबंध कर रखा था। वह उन क्रांतिकारियों के लिए रहने का प्रबंध करते थे, जिनके घर अंग्रेजी फौज द्वारा बर्बाद कर दिए जाते थे। एक बार शाह गुलाम बोलन ने अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों को दौड़ा दिया था। लेकिन जब अंग्रेज अपनी मक्कारी और दगाबाजी से दोबारा काबिज हुए तो शाह गुलाम बोलन को गिरफ्तार लिया गया। जिसके बाद अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें काले पानी की सजा सुनाई थी। काले पानी की सजा के दौरान शाह गुलाब बोलन की 1860 में मौत हो गई थी।

दरगाहों की रही है अहम भूमिका
दरगाह हजरत शाह मुकम्मल साहब के सज्जादानशीन शिब्ली मियां ने बताया कि देश की आजादी में दरगाहों की अहम भूमिका रही है। मेरे परदाता सैय्यद अहसान अली भी जंग-ए-आजादी आंदोलन के दौरान शाह मुकम्मल साहब की दरगाह पर ही क्रांतिकारियों के साथ बैठक करते थे। दरगाह पर पर होने वाली मीटिंग में सभी क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लेने की तैयारी करते थे। आज भी दरगाहों पर उर्स के साथ स्वाधीनता दिवस पर देश पर मिटने वालों को याद भी किया जाता है।

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