कोर्भवान्, आप हैं कौन ?

कोर्भवान्, आप हैं कौन ?

आप कौन हैं ? यह प्रश्न पूछा एक विदुषी, तपस्वी महिला ने अपनी अंजुरी के जल में तैरते दिख रहे सर्पाकृति सूक्ष्म जीव से। महिला थीं ऋषि पतंजलि की माता गोणिका और वह स्नानोपरांत आर्य ऋषिकुल की परम्परा अनुसार सूर्यार्घ अर्पित कर रही थीं , एक अंजुरी ,दो अंजुरी जल अर्पित कर चुकीं और अब …

आप कौन हैं ? यह प्रश्न पूछा एक विदुषी, तपस्वी महिला ने अपनी अंजुरी के जल में तैरते दिख रहे सर्पाकृति सूक्ष्म जीव से। महिला थीं ऋषि पतंजलि की माता गोणिका और वह स्नानोपरांत आर्य ऋषिकुल की परम्परा अनुसार सूर्यार्घ अर्पित कर रही थीं , एक अंजुरी ,दो अंजुरी जल अर्पित कर चुकीं और अब तीसरी अंजुरी जल भर कर भगवान भाष्कर को मंत्र सहित जलार्पण करने की तैयारी में क्षण भर को ऑखें बन्द कर बालादित्य का स्मरण करते हुए ऑखें खोली तो जलांजलि में वह तैरता दिखा जिससे उन्होंने विस्मय में पूछा कि कोर्भवान्, आप हैं कौन ?
उत्तर मिला – सप्पोऽहं (मैं सांप हूं )।

विस्मित महिला ने दिव्य पुरुष के अशुद्ध उच्चारण से व्यथित होती हुई फिर पूछ बैठी कि – रेफस्तुक्वगतः ( सर्प शब्द का रेफ कहां चला गया यानी रेफ का उच्चारण न कर अशुद्ध उच्चारण क्यों किया ? )
दिव्य सर्पाकार ने उत्तर दिया – रेफस्तु पूर्वमेव त्वया अपहृता ( रेफ को तो आप ने पहले ही खींच लिया ) ।
महिला का समाधान हो चुका कि यह भ्रूणाकार दिव्य सर्प ही उसका पुत्र होगा , वही जिसकी कामना में वह वर्षों से व्याकुल रहीं और वंश वृद्धि में अपने स्तर के पुत्र की कामना से भगवान भाष्कर से प्रार्थना करती रहती थीं ।
आज अब उनकी अंजुरी में सूर्यार्घ के तृतीय जलांजलि में भगवान भाष्कर ने शेषनाग को प्रेरित कर उनके अंश को दिव्य आकृति में प्रकट कर महिला का मनोरथ पूरा कर दिया । शेषनाग अक्षर ब्रह्म को धारण करने वाले व्याकरण आचार्य हैं । अतः उनका अंश भी सूक्ष्म से स्थूल शरीर ग्रहण करने पर भी प्रथम स्वर के रूप में फुंकार करने के बजाय माता के प्रश्नों का समुचित उत्तर देने लगे ।

चूंकि वह सर्प से मनुष्य रूप में आये और प्रथम परिचय के रूप में उन्होंने केवल अपने को सप्प (सर्प)बताया , यह नहीं बताया कि वह कौन से सर्प हैं अतः माता ने उनका नाम नामकरण उनके प्रकट होने की विधि के अनुसार कर दिया- पतन् अन्जल्यां यः सः पतंजलि:
पतंजलि शुंग वंश के शासनकाल में थे। डॉ. भंडारकर ने पतंजलि का समय 158 ई. पू. द बोथलिक ने पतंजलि का समय 200 ईसा पूर्व एवं कीथ ने उनका समय 140 से 150 ईसा पूर्व माना है।

उन्होंने पुष्यमित्र शुंग का अश्वमेघ यज्ञ भी सम्पन्न कराया था। इनका जन्म गोनार्ध (गोंडा,उ०प्र०) में हुआ था, बाद में वे काशी में बस गए। ये व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे। काशीवासी आज भी श्रावण कृष्ण ५, नागपंचमी को छोटे गुरु का, बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो कहकर नाग के चित्र बाँटते हैं क्योंकि पतंजलि को शेषनाग का अवतार माना जाता है।

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