पुरखो का पर्व: पितृपक्ष में कौआ, गाय और कुत्ते को कराते हैं भोजन, गाया पिंड दान जैसी बातों का क्या है रहस्य

पुरखो का पर्व: पितृपक्ष में कौआ, गाय और कुत्ते को कराते हैं भोजन, गाया पिंड दान जैसी बातों का क्या है रहस्य

हिंदू धर्म में पितृ यानी हमारे पूर्वज जो अब इस दुनिया में जीवित नहीं हैं उनके प्रति आस्था, सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करना ही पितृ पक्ष कहलाता है। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति और श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे …

हिंदू धर्म में पितृ यानी हमारे पूर्वज जो अब इस दुनिया में जीवित नहीं हैं उनके प्रति आस्था, सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करना ही पितृ पक्ष कहलाता है। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति और श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज जो अब इस दुनिया में नहीं हैं वे अपने परिजनों के पास मुक्ति और भोजन प्राप्त करने के लिए उनसे मिलने आते हैं। इस कारण से पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है।

कौआ, गाय और कुत्ते को भोजन क्यों दिया जाता है?
पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए और उन्हें भोजन से तृप्ति के लिए कौआ, गाय और कुत्ते को भोजन कराते है। पितृ पक्ष में यम बलि और श्ववान बलि देने का विधान है। यम बलि में कौआ को और श्वान बलि में कुत्ते को ; भोजन के रूप में दिया जाता है। कौआ और श्वान दोनों ही यमराज के संदेश वाहक हैं।

इसके अलावा गाय में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए गाय का महत्त्व है। वहीं पितर पक्ष में श्वान और कौआ पितर का रूप होते हैं इसलिए उन्हें ग्रास देने का विधान है। पितृपक्ष में इनका खास ध्यान रखने की परंपरा है। अन्य मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में पितरदेव गाय, कौआ और श्वान के रूप में अपने प्रियजनों के पास भोजन ग्रहण करने आते हैं। इस कारण से भी इन तीनों का महत्व होता है।

गया में पिंडदान का महत्व
पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान का सबसे ज्यादा महत्त्व होता है। पिंडदान और श्राद्ध पूजा के लिए गया की धरती को श्रेष्ठ और शुभ माना गया है। शास्त्रों में गया को विशेष महत्त्व दिया गया है। गया की भूमि को पांचवां धाम भी कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि गया में पिंडदान और श्राद्ध पूजा करने से पितरों का मुक्ति मिल जाती है। गया भारत के बिहार राज्य में स्थित हैं। भगवान विष्णु ने इसी जगह पर गयासुर नाम के राक्षस का वध किया था जिसके कारण इसका नाम गया पड़ा। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के चरण गया में उपस्थित हैं।

गया जो फल्गु नामक नदी पर स्थित है, त्रेता युग में भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। तभी से इस स्थान का महत्त्व है। दूर-दूर से लोग यहां पर आकर पूजा पाठ करते हैं तथा अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। पितृपक्ष के दौरान गया में कर्मकांड का विधि विधान अलग-अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं। अग्नि जल और अन्न के माध्यम से गया में श्राद्ध पूजा करने पर हमारे पितरों तक पहुँचाकर उन्हें तृप्ति किया जाता है।

पिंडदान के लिए पिंडी चावल से क्यों बनाए जाते हैं ?
हिंदू धर्म में चावल को बहुत ही शुभ अन्न माना गया है। चावल को अक्षत कहा गया है। चावल में एक विशेषता होती जो कभी खराब नहीं होते। इसके अलावा चावल ठंडी तासीर वाला भोजन है। पितरों को शांति मिले और लंबे समय तक वो इन पिंडों से संतुष्टि पा सकें, इसलिए पिंड चावल के आटे से बनाए जाते हैं।

श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
पंचमी श्राद्ध- जिन पितरों की मृत्यु पंचमी तिथि को हुई हो या अविवाहित स्थिति में हुई है तो उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है।
नवमी श्राद्ध- नवमी तिथि को मातृनवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
चतुर्दशी श्राद्ध- इस तिथि उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
सर्वपितृ अमावस्या- जिन लोगों के मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।

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