कोरोना में बड़े उद्योगों को पहुंचाया गया लाभ, एमएसएमई की हुई उपेक्षा

कोरोना में बड़े उद्योगों को पहुंचाया गया लाभ, एमएसएमई की हुई उपेक्षा

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। कोरोना के कारण एमएसएमई सेक्टर को हुए नुकसान का सरकार की ओर से कोई आकलन नहीं कराया गया है। सरकार की ज्यादातर नीतियां व स्कीमें मझोले और बड़े उद्योगों को राहत देने के लिए बनाई गई हैं। इनमें लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए कोई खास जगह नहीं है। …

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। कोरोना के कारण एमएसएमई सेक्टर को हुए नुकसान का सरकार की ओर से कोई आकलन नहीं कराया गया है। सरकार की ज्यादातर नीतियां व स्कीमें मझोले और बड़े उद्योगों को राहत देने के लिए बनाई गई हैं। इनमें लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए कोई खास जगह नहीं है। जबकि होना उलटा चाहिए था। सरकार की नीतियों और स्कीमों का मकसद लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों की भलाई होना चाहिए था। क्योंकि देश में रोजगार देने वाले इन्हीं उद्योगों की सबसे ज्यादा संख्या है और कोरोना ने इसी सेक्टर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।

ये बात उद्योगों से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कही है। रिपोर्ट में कोरोना महामारी के कारण मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म (एमएसएमई) उद्योगों पर पड़े प्रभाव तथा उससे निपटने के लिए सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक एमएसएमई उद्योगों को कोरोना के प्रभाव से उबरने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदम अपर्याप्त रहे हैं। ज्यादातर कदमों में इन उद्योगों की नकदी की समस्या दूर कर मांग पैदा करने और तात्कालिक राहत देने के बजाय उनके समक्ष कर्ज लेने के दीर्घकालिक प्रस्ताव पेश किए गए हैं। चूंकि पहली के बाद कोरोना की दूसरी लहर ने एमएसएमई की कमर तोड़कर रख दी है। लिहाजा सरकार को तत्काल एक और बड़ा पैकेज लाकर इन उद्योगों की मदद करनी चाहिए। ताकि मांग, निवेश के साथ इस क्षेत्र से निर्यात और रोजगार में भी बढोतरी हो सके।

समिति का कहना है कि बड़े व मझोले उद्योगों से इतर लघु उद्योग कारोबार को चलाए रखने के लिए नकदी के नियमित प्रवाह पर निर्भर करते हैं। इसलिए सरकार को इन्हें अति आवश्यक नकदी सहायता प्रदान करनी चाहिए।

समिति ने इस बात पर अफसोस जताया है कि कोरोना की दो लहरें बीतने के बाद भी अब तक सरकार की ओर से एमएसएमई सेक्टर को हुए नुकसान का कोई अध्ययन नहीं कराया गया है। जबकि कोरोना के कारण इस क्षेत्र को अप्रत्यशित मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जिनमें भुगतान में देरी, कच्चे माल की कमी, वित्तीय संकट तथा अनिश्चितता का वातावरण आदि प्रमुख हैं। यदि देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है तो सरकार को अत्यंत संभसवनाओं वाले एमएसएमई सेक्टर को उबारने की योजना भी बनानी होगी।

लॉकडाउन के परिणामस्वरूप लाखों घरों की आमदनी को झटका लगा है। लोगों की नौकरियां चली गई हैं। ऐसे में सरकार का फोकस रोजगार सृजन पर होना चाहिए जिसकी संभावनाएं एमएसएमई में ही सबसे ज्यादा हैं। इसलिए सरकार को एक नई राष्ट्रीय रोजगार नीति लाने, राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज की स्थापना करने के साथ दक्षता आधारित डेटा बेस तैयार करने पर विचार करना चाहिए।

उद्यम पोर्टल: 
समिति ने इस बात पर चिंता प्रकट की है कि एमएसएमई की नई परिभाषा के तहत पंजीकरण के लिए सरकार द्वारा स्थापित उद्यम पोर्टल में बहुत कम उद्यमियों ने रुचि दिखाई है। इस साल 11 जनवरी तक 17,66,651 एमएसएमई ने पोर्टल पर पंजीकरण कराया था।
इनमें 14,10,455 सूक्ष्म, 13,06,383 लघु तथा 88,882 मध्यम उद्योग शामिल हैं। इनमें भी 5.4 लाख यूनिटें मैन्युफैक्चरिंग में, जबकि 8.7 लाख सर्विस सेक्टर में पंजीकृत हुई हैं।

इनके अलावा 2,82,627 एमएसएमई ने पुराने उद्योग आधार मेमोरेंडम (यूएएम) को छोड़ उद्यम पोर्टल में नाम दर्ज किया था।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि एमएसएमई में सूक्ष्म इकाइयों का प्रतिशत सर्वाधिक 92.61 फीसद है। जबकि लघु इकाइयां 6.30 फीसद व मझोली मात्र 1.07 फीसद हैं।

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