श्रमिक और सरकार

श्रमिक और सरकार

कोरोना महामारी की दो लहरों ने असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। देश में असंगठित कामगारों की एक बड़ी संख्या है, जिनका अपने कार्यस्थल पर कोई निश्चित निवास नहीं है। वे अस्थायी प्रवासी हैं, जो काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। उन्हें कम मजदूरी का भुगतान किया जाता …

कोरोना महामारी की दो लहरों ने असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। देश में असंगठित कामगारों की एक बड़ी संख्या है, जिनका अपने कार्यस्थल पर कोई निश्चित निवास नहीं है। वे अस्थायी प्रवासी हैं, जो काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। उन्हें कम मजदूरी का भुगतान किया जाता है और उनके काम करने और रहने की स्थिति खराब होती है।

अर्थव्यवस्था को उनकी जरूरत है, लेकिन उनके पास कोई अधिकार नहीं है। 2020 में जब लाकडाउन ने अचानक उनकी आजीविका छीन ली, लाखों प्रवासियों ने अपनी सारी संपत्ति के साथ घर जाने के लिए राजमार्गों पर नंगे पैर मार्च किया। इस साल भी दूसरी लहर के दौरान सैकड़ों मील पैदल चलने वाले प्रवासियों की तस्वीरें देश में कोरोना की अमिट छवि बन गईं।

देशव्यापी श्रमिक पलायन ने हर संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित किया है। हकीकत तो यह है कि सरकारें यदि संवेदनशील होतीं और श्रमिकों में भरोसा जगा पातीं तो देश विभाजन के बाद सबसे बड़े पलायन के दृश्य न उभरते। इन विषम परिस्थितियों में उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों कई मामलों में मार्गदर्शक निर्देश दिए।

अदालत ने इन श्रमिकों को भोजन राशन और नकद हस्तांतरण जैसे लाभों के वितरण की सुविधा के लिए असंगठित श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं बनाने के लिए केंद्र की खिंचाई की। हालांकि सरकार ने इस साल पोर्टल स्थापित करने और डेटा अपडेट करने के लिए 45 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। अदालत ने सभी असंगठित क्षेत्रों के तथा प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण करने को भी कहा है। श्रम मंत्रालय को 31 जुलाई तक परियोजना को पूरा करने का आदेश दिया है।

दरअसल, मंत्रालय को अगस्त 2018 तक सभी प्रवासी श्रमिकों की अद्यतन पंजीकरण के साथ पोर्टल बनाने का निर्देश दिया गया था। असंगठित श्रमिक व प्रवासी श्रमिकों की जानकारी एकत्र करने वाले पोर्टल को तैयार करने में हो रही देरी बताती है कि सरकार प्रवासी श्रमिकों के प्रति संवेदनशील नहीं है।

अजीब बात है कि आजादी के सात दशक बाद भी हम अपनी श्रमशील आबादी की ठोस जानकारी नहीं जुटा पाए। जरूरी है कि सरकार पंजीकरण के काम में तेजी लाए। साथ ही श्रमिकों को पंजीकरण के लिये प्रेरित किया जाए। सही मायनों में पंजीकरण की प्रक्रिया सिरे चढ़ने से सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में संसाधनों का जो रिसाव होता रहा है, उस पर भी ठोस डाटा सामने आने से रोक लग सकेगी। सरकारों को श्रमिकों को मुश्किल वक्त में राहत देने हेतु ठोस पहल करनी चाहिए।

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