गरीबी पर भारी कोरोना, दिनभर रिक्शा खींचने पर भी नहीं होती है सौ रुपये की कमाई

हल्द्वानी, अमृत विचार। कोरोना की भयवहता का असर ही है कि दिनरात लोगों की चहल पहल और भीड़ से गुलजार रहने वाली सड़कों व सार्वजनिक जगहों पर सन्नाटा पसरा हुआ हैं। बाजार में दुकानों पर ताले लटक रहे हैं, सड़कों पर सरकारी गाड़ियां की आवाजाही दिख रही है। कोरोना आपदा के इस दौर में लोगों …
हल्द्वानी, अमृत विचार। कोरोना की भयवहता का असर ही है कि दिनरात लोगों की चहल पहल और भीड़ से गुलजार रहने वाली सड़कों व सार्वजनिक जगहों पर सन्नाटा पसरा हुआ हैं। बाजार में दुकानों पर ताले लटक रहे हैं, सड़कों पर सरकारी गाड़ियां की आवाजाही दिख रही है। कोरोना आपदा के इस दौर में लोगों ने अपनी जरूरतें भी सीमित कर दिया है।
लोग किसी भी तरह इस महामारी से बचाव कर रहे हैं। महामारी की चेन पर चोट करने के लिए प्रशासन की ओर से लॉकडाउन लागू किया गया है, लेकिन दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो अपने साथ परिवार की परवरिश के लिए दिनभर सड़कों और सार्वजनिक जगहों की खाक छानने को मजबूर हो रहे हैं। इन्हें न महामारी का डर है न पुलिसिया कार्यवाई का, ये किसी तरह इस हालात से लड़कर अपने परिवार के लिए दोपहर की तपती धूप के बीच रिक्शा खींच रहे हैं। फिर भी अपने नौनिहालों का पेट नहीं भर पा रहे हैं।
शहर भर में रिक्शा खींचने वाले सोनु कुरैशी बताते हैं कि सुबह 7 बजे से ही वह काम के लिए निकल जाते हैं। उम्मीद होती है कि दिनभर मेहनत के बाद सौ दो सौ रुपये की कमाई हो जाएगी, लेकिन आजकल सवारियां नहीं होने के कारण अनेक दिक्क्तों से हो कर गुजरना पड़ रहा है। दिनभर में कुछ सामाजिक संस्थाओं द्वारा खाने के पैकेट से उनका तो काम चल जाता है।
लेकिन कमाई नही होने के कारण घर चलाना चुनौती साबित हो रहा है। वह रात 8 बजे तक रोडवेज पर सवारियों का इंतजार करते हैंं। बताते हैं कि रोडवेज, एसटीएच सहित शहर भर में जगह-जगह घंटों बैठ कर सवारियों की राह देखते रहते हैं। फिर भी 60-70 रुपये की ही कमाई हो पाती है। जबकि आम दिनों में वह रोजाना 250 से 300 तक की कमाई हो जाती है।