सहकार से समृद्धि
देश में सहकारी तंत्र का विस्तार कर एक नया आर्थिक मॉडल खड़ा किया जा रहा है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक साबित होगा। देश में सहकारिता की एक विस्तृत परंपरा रही है। सहकार से समृद्धि का भारतीय दर्शन पूरे विश्व के लिए आदर्श है। रविवार को अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) के अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सहकार से समृद्धि के दृष्टिकोण का लक्ष्य सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाना है।
महत्वपूर्ण है कि आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत ने सहकारी आंदोलन के पुनरुत्थान की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। सम्मेलन से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष की शुरूआत हुई। आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी वैश्विक सहकारी आंदोलन में भारत के नेतृत्व की स्वीकार्यता का प्रतीक है। आईसीए के 130 वर्ष के इतिहास में यह पहला मौका है, जब भारत इसका आयोजक है। गौरतलब है कि सहकारिता एक ऐसी व्यवस्था है, जो समाज में आर्थिक रूप से आकांक्षी लोगों को न सिर्फ समृद्ध बनाती है, बल्कि उन्हें अर्थव्यवस्था की व्यापक मुख्यधारा का हिस्सा भी बनाती है। सहकारिता बिना पूंजी या कम पूंजी वाले लोगों को समृद्ध बनाने का एक बहुत बड़ा साधन है।
भारत सहकारिता के माध्यम से इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है। सहकार से समृद्धि के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सामूहिक समृद्धि, सातत्यता और साझा प्रगति जैसे मूल्यों पर आधारित उज्ज्वल भविष्य का संकल्प है। देश को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए, आर्थिक विकास के सभी मानकों में वृद्धि के साथ-साथ यह आवश्यक है कि 140 करोड़ लोगों की समृद्धि हो, सभी व्यक्तियों को काम मिले और उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार भी प्राप्त हो, और यह केवल सहकारिता के माध्यम से ही संभव है।
सहकारी समितियों की धारणा को पारंपरिक और ग्रामीण से पृथक कर प्रयोग तथा नवाचार के केंद्रों में हस्तांतरित करने की आवश्यकता है। साथ ही अत्याधुनिक कृषि तकनीकों के साथ कार्य करने वाली सहकारी समितियों और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने को उजागर करने की भी आवश्यकता है। मूल्य शृंखला को मज़बूत करने और सहकारी उत्पादों के लिए बाज़ार तक पहुंच बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में अधिक निवेश की आवश्यकता है। उम्मीद की जा सकती है कि सम्मेलन भारत के सहकारी आंदोलन द्वारा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने, आर्थिक सशक्तीकरण, लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति हेतु भारत के अभूतपूर्व प्रयासों को रेखांकित करेगा।