प्रयागराज: डिप्रेशन से छुटकारा दिलाएगी प्राकृतिक बर्ड साउंड थेरेपी, संगम तट पर लग रहा विदेशी परिंदों का महाकुंभ
अमृत विचार, प्रयागराज: तनाव सहित कई तरह की मानसिक बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए कृत्रिम बर्ड साउंड थेरेपी का सहारा लेने वालों के लिए प्रयागराज में लग रहा महाकुंभ अद्भुत अवसर है। यहां देसी और विदेशी प्रजाति के परिंदों की चहचहाहट प्राकृतिक थेरेपी दे रही है। इसी बर्ड साउंड थेरेपी के लिए दुनिया भर से लोग आने लगे हैं। लुप्तप्राय इंडियन स्कीमर का 150 जोड़ा यहां आ चुका है।
संगम की रेत पर रंग बिरंगे इन मेहमानों की कलरव गंगा मइया की कल कल से मिलकर अलौकिक राग छेड़ रही है। अभी दुनिया में सबसे तेज उड़ान वाले पेरेग्रीन फाल्कन का भी इंतजार किया जा रहा है। जापान और चीन की बुलेट ट्रेन से तेज रफ्तार वाला यह पक्षी 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार में हवा से बातें करता है। संगम क्षेत्र में यह अलौकिक दृश्य योगी सरकार के द्वारा प्रदेश में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के प्रयासों को बढ़ावा दे रहा है। वन विभाग भी इस अवसर को महाकुंभ से पूर्व बर्ड फेस्टिवल आयोजित कर सेलिब्रेट करने जा रहा है।
वाइल्डलाइफ की टीम कर रही निगरानी
प्रयागराज में वन विभाग के आईटी हेड आलोक कुमार पाण्डेय ने बताया कि महाकुंभ से पहले ही बड़ी संख्या में अप्रवासी पक्षी प्रयागराज आ रहे हैं। इनके साथ लुप्तप्राय इंडियन स्कीमर और साइबेरियन सारस भी बड़ी संख्या में हैं। इतनी बड़ी तादात में आने वाले देशी और विदेशी पक्षियों की गणना के लिए वाइल्डलाइफ की टीम लगाई गई है जो दिनरात इन पक्षियों की विशेष निगरानी कर रही है। वाइल्डलाइफ के सामुदायिक अधिकारी केपी उपाध्याय ने बताया कि दुनिया भर में लुफ्तप्राय इंडियन स्कीमर करीब 150 से अधिक के जोड़ों में संगम किनारे आ चुकी हैं। यह प्रदूषण को रोकने में काफी हद तक मददगार होती है। यही नहीं ये पानी की शुद्धता को बढ़ाने का भी काम करती हैं।
दो साल पहले आया था पेरेग्रीन फाल्कन का झुंड
इंडियन स्कीमर फिलहाल रेत के टीले पर सुबह शाम आपको टहलते हुए आसानी से दिख रहे हैं। यहां मां गंगा के किनारे शेड्यूल वन की इंडियन स्कीमर, साइबेरियन, ब्लैक क्रेन, सारस जैसी 90 से अधिक प्रजातियों के पक्षी फिलहाल महाकुंभ के स्वागत के लिए आ गए हैं। 2 साल पहले प्रयागराज में पेरेग्रीन फाल्कन को भी देखा जा चुका है जिसके महाकुंभ के दौरान पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। यह दुनिया का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी है, जिसकी रफ्तार जापान और चीन की बुलेट ट्रेन से भी अधिक मानी जाती है। यह 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी अधिक तीव्र गति से उड़ने में सक्षम है। इनके अलावा विभिन्न प्रकार के देशी और विदेशी पक्षी संगम को मुफीद मानते हुए महाकुंभ की शोभा बढ़ाने आ चुके हैं। इनमें साइबेरिया, मंगोलिया, अफगानिस्तान समेत 10 से अधिक देशों से ये विदेशी मेहमान महाकुंभ का आनंद बढ़ाने के लिए आए हैं।
अंडे की पहरेदारी मिलकर करता है इन पक्षियों का जोड़ा
पक्षी वैज्ञानिकों ने बताया कि प्रयागराज में बड़ी संख्या में पहुंच चुके इंडियन स्कीमर बहुत ही ज्यादा सेंसिटिव होते हैं। यह अपने अंडों को बचाने के लिए तरह-तरह के इंतजाम करते हैं। सबसे खास बात यह है कि ये अधिकतर तीन ही अंडे देते हैं। मादा जब अपने पंखों से अंडों को ढक कर उनकी रखवाली करती है तो नर अपने पंखों में पानी भरने जाता है। नर जब वापस लौटता है तो अपने भीगे पंखों से अंडों को नमी देता है। फिर मादा को भेजता है अपने पंखों को नम करने के लिए। भारत में इन्हें पनचीरा भी कहा जाता है, क्योंकि यह पानी को चीरते हुए आगे बढ़ते हैं। इनकी एक चोंच छोटी तो दूसरी बड़ी होती है। साइबेरियन पक्षी गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर टापू को अपना निवास बनाते हैं। इन पक्षियों का आना सर्दियों की शुरुआत का संकेत है। साइबेरिया, मंगोलिया और अफगानिस्तान समेत 10 से अधिक देशों से पहुंचे ये साइबेरियन पक्षी महाकुंभ तक यहां वक्त बिताएंगे।
विदेश में काफी मंहगी है कृत्रिम बर्ड साउंड थेरेपी
बर्ड साउंड थेरेपी, चिड़ियों की कृत्रिम आवाज़ों की मदद से ध्यान लगाने और तनाव कम करने की एक पद्धति है। यह पद्धति पुराने ज़माने से ही कारगर मानी जाती है। बर्ड साउंड थेरेपी के ज़रिए, ध्यान करने वालों को आंखें बंद करके कल्पना करने के लिए कहा जाता है कि वे कहीं दूर जंगल में बैठे हैं। ऐसा करने से तनाव का स्तर कम होता है। विदेशों में यह थेपेरी काफी प्रचलित लेकिन मंहगी है। बर्ड साउंड थेरेपी से श्वासन करने के बाद कई लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होता है। जिन लोगों को दवाइयां चल रही थीं, उनकी दवाइयों की मात्रा कम हो जाती है। पक्षियों के गाने की ध्वनि आवृत्तियां मनुष्यों को मानसिक रूप से पुनः सक्रिय होने और विश्राम के लिए प्रेरित करती हैं। पक्षियों की आवाज़ इसलिए भी आश्वस्त करने वाली होती है क्योंकि वे तभी गाते हैं जब वे सुरक्षित महसूस करते हैं।
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