टनकपुर: देवीधुरा मां बाराही मंदिर में रक्षाबंधन पर खेली जाएगी बग्वाल

मुख्यमंत्री धामी होंगे पाषाण युद्ध के साक्षी, इस बार 26 अगस्त तक चलेगा मेला

टनकपुर: देवीधुरा मां बाराही मंदिर में रक्षाबंधन पर खेली जाएगी बग्वाल

देवेन्द्र चन्द देवा, टनकपुर, अमृत विचार। चम्पावत के देवीधुरा के मां बाराही मंदिर में बग्वाल मेले का शुभारंभ हो गया है। मेले का मुख्य आकर्षण पाषाण युद्ध 'बग्वाल' रक्षाबंधन पर्व पर 19 अगस्त को खेली जाएगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बतौर मुख्य अतिथि के साथ इस युद्ध के साक्षी बनेंगे। जिला पंचायत द्वारा संचालित मेले में रक्षाबंधन पर इस बार लाखों दर्शकों के पहुंचने की उम्मीद है।

टनकपुर से 132 किलोमीटर दूर चम्पावत के पाटी ब्लॉक के देवीधुरा में मां वाराही मंदिर के खोलीखांड दुबाचौड़ में हर साल अषाढ़ी कौतिक पर रक्षाबंधन के दिन बग्वाल होती है। पत्थर से शुरू यह बग्वाल हाई कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2013 से फल फूलों से खेली जाती रही है।

बग्वाल युद्ध में 4 खामो चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिग के अलावा सात थोकों के योद्धा भाग लेते हैं। रक्षाबंधन पर्व पर यहां देश ही नहीं विदेश से भी दर्शक मेले में पहुंचते हैं। इस मेले का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। रक्षाबंधन पर खेली जाने वाली बग्वाल आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा बग्वाल मेल को पूर्व में राजकीय मेला घोषित किया जा चुका है। साथ ही स्वदेश दर्शन योजना के तहत पर्यटन विभाग भी देवीधुरा को पर्यटन मानचित्र में लाने के लिए विशेष पहल कर रहा है। इस बार यह मेला 16 से 26 अगस्त तक चलेगा। इधर मां वाराही धाम के पीठाचार्य पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी और मां वाराही मंदिर कमेटी के अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट का कहना है कि इस बार रक्षाबंधन पर्व पर लाखों दर्शकों के यहां पहुंचने की उम्मीद है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए जिला प्रशासन और जिला पंचायत द्वारा  सुरक्षा समेत तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।

बलि प्रथा का विकल्प है बग्वाल
चारों खामों के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा-अर्चना के बाद बग्वाल खेलते हैं। किवदंति है कि पूर्व में यहां नरबलि देने का रिवाज था। लेकिन जब चम्याल खाम की एक बुजुर्ग महिला के एकमात्र पौत्र की बलि देने की बारी आई तो वंश का नाश होने के डर से बुजुर्ग महिला ने मां वाराही की तपस्या की। तप से देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों ने आपस में युद्ध कर इस परंपरा को आगे बढ़ाने की बात मान ली और तब से ही बग्वाल का यह सिलसिला चला आ रहा है।