कानपुर: नौटंकी सम्राट रंपत नहीं रहे, दादा कोंडके से होती थी तुलना

द्विअर्थी संवादों के कारण देश भर में बनाई थी खास पहचान  

कानपुर: नौटंकी सम्राट रंपत नहीं रहे, दादा कोंडके से होती थी तुलना

कानपुर। रंपत…का चेहरा सामने आते ही लोगों की हंसी छूट जाती थी। रंगीन छींटदार शर्ट, सादी पतलून, सिर पर हैट, आंखों में गाढ़ा काजल और अक्सर पटरे वाला घुटनों तक पहना जाने वाला अंडरवियर पहने रंपत जैसे ही नौटंकी के स्टेज पर कदम रखते थे, तो लोग बरबस ही हंस पड़ते थे। उसके मुंह खोलने से पहले ही स्टेज पर मौजूद रानीबाला और सामने बैठे दर्शक समझ जाते थे कि कुछ तगड़ा होने वाला है।

इसके बाद खास भाव भंगिमा में उनके द्विअर्थी संवाद चालू हो जाते थे। यह सही है कि वह अपने नाम के आगे जो शब्द इस्तेमाल करते थे, वह निखालिस गाली जैसा था। लेकिन रंपत ने कनपुरिया गाली के इसी शब्द को देश के कोने-कोने में पहचान दिला दी। सोमवार को रंपत के लब हमेशा के लिए खामोश हो गए।  

नौटंकी को द्विअर्थी संवादों के जरिए नयी पहचान दिलाने वाले रंपत ने लोगों को जमकर गुदगुदाया। इस कला को कानपुर की देन बताया जाता है। चौक सराफा वाले श्रीकृष्ण पहलवान, रेलबाजार वाली गुलाब बाई फिर उनकी विरासत को काफी दिनों तक उनकी बेटी मधु और बिट्टन (आशा) संभाले रहीं। लेकिन नब्बे की दशक की शुरुआत में रंपत सिंह भदौरिया उर्फ रंपत…ने इस कला में  कदम रखा तो पीछे मुड़कर नहीं देखा।

दादानगर में नौटंकी के एक शो में रंपत ने बताया था कि वह कोई रिकार्ड नहीं रखते हैं, पर साल भर में 45-50 शो पूर देश में  हो जाते हैं। द्विअर्थी संवादों के कारण जनता ने उन्हें नौटंकी के दादा कोंडके की उपाधि दी थी। स्वांग को व्यावसायिकता देने वाला रंपत कहता था कि लोग जो पसंद करते हैं वही प्ले करता हूं।

मकसद इस तनाव भरी जिंदगी की कशकश के दौर में किसी के होंठो पर हंसी लाना रहता है। पुलिस वालों के परिवार में जन्मे रंपत कोई 63 साल के थे। बचपन में नौटंकी देखने का जुनून इतना था कि कई-कई किलोमीटर पैदल ही रास्ता नाप दिया करते थे।

कलाकारों की नकल उतारना, नाचना उनका शौक था। पुलिस वाले के घर में यह शौक भला कहां तक चलता। अलग होना पड़ा। इसके बाद नौटंकी आर्टिस्ट कृष्णा बाई से मुलाकात और दादा कोंडके का द्विअर्थी संवाद वाला अंदाज रंपत को भा गया।

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