मुरादाबाद : ताऊ ने किया 'आशुतोष' का अंतिम संस्कार, जवान बेटे की मौत से पिता बेसुध

परिवार के भविष्य को अच्छा बनाने को घर से 650 किमी दूर मुरादाबाद आकर बस गए थे वीर बहादुर

मुरादाबाद : ताऊ ने किया 'आशुतोष' का अंतिम संस्कार, जवान बेटे की मौत से पिता बेसुध

निर्मल पांडे, अमृत विचार। एक्सपोर्ट कंपनी के मैनेजर वीर बहादुर तिवारी के परिवार का चिराग बुझने के बाद रविवार दोपहर को उसके ताऊ ने ''उम्मीदों'' का अंतिम संस्कार कर दिया। बेटे आशुतोष की मौत से पिता बेसुध है। मां संजू भी बात करने की स्थित में नहीं हैं। बीबीए (बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) की पढ़ाई पूरी होने वाली थी। लेकिन, बेटे की असमय मौत से पिता की सभी उम्मीदें मर चुकी हैं।

परिवार को अच्छा भविष्य देने को वह 1996 में अपने घर से बलिया जिले 650 किमी दूर मुरादाबाद आए थे, उस समय आशुतोष का जन्म भी नहीं हुआ था। आशुतोष और इसकी छोटी बहन, मुरादाबाद में ही जन्मे। लेकिन, किस्मत ने आज वीर बहादुर को दुख के पहाड़ तले दबा दिया है। अब, बेटा 30 मई को 23 वर्ष की आयु का होने वाला था। लेकिन, शनिवार सुबह उत्तराखंड में मसूरी-देहरादून रोड पर झड़ीपानी के पास वह काल के गाल में समा गया। बेकाबू कार पहाड़ से 200 फिट नीचे छत के भल जा गिरी। इसमें आशुतोष और उसके सभी पांच दोस्तों की भी छह लोगों की मौत हो गई थी।

वीर बहादुर बेटे के शव को लेकर शनिवार रात के 12.30 बजे बंगला गांव पहुंचे थे। एंबुलेंस के आते ही घर में फिर चीख-पुकार मचने लगी। छोटी बहन चचेरे भाई-बहन भी रो रहे थे। रात भर घर की महिलाएं-पुरुष और बच्चे बिलखते रहे। फिर सुबह लोगों का आना शुरू हो गया था। सुबह 10 बजे के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हुईं। फिर दोपहर 12 बजे के दौरान उसके शव को अंतिम संस्कार के लिए दसवां घाट पर ले जाया गया, इस दौरान करीब दो-ढाई सौ लोगों की मौजूदगी थी।

छोटे भाई वीर बहादुर की स्थिति को देख इनके बड़े भाई दिनेश तिवारी ने अपने भतीजे के शव का अंतिम संस्कार किया। ताऊ राम प्रकाश तिवारी ने बताया कि उनका छोटा भाई वीर बहादुर वाकई वीर है, उसने कभी अपने को हारा नहीं महसूस किया। लेकिन, किस्मत ने उसे बेटे को खोने का गम जरूर दे दिया है। जिससे वह बेटे को उसकी मौत से नहीं बचा पाया और वह हार गया...।

बिटिया की शादी हो गई थी, घर भी बन गया था, चिंतामुक्त थे वीर बहादुर पर...
राम प्रकाश बताते हैं कि वीर बहादुर जब पत्नी के साथ मुरादाबाद आया था तो उसने एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी की थी। फिर कुछ समय बाद कंपनी का ऑफिस दिल्ली रोड पर चला गया और फर्म के मालिक ने उसे प्राचीन श्री रामलीला ग्राउंड के सामने वाले पुराने ऑफिस को निवास करने के लिए दे दिया था। तभी से वीर बहादुर परिवार समेत इसी पुराने ऑफिस में निवास कर रहे हैं। हालांकि मेहनत-परिश्रम से अब उन्होंने बैंक कॉलोनी में अपना नया घर बना लिया है।

राम प्रकाश ने बताया कि पिछले साल बिटिया की शादी के बाद वर्तमान में वीर बहादुर चिंतामुक्त थे। घर-मकान भी हो गया था और अब बेटे को पढ़ाकर कामयाब बनाने में लगे थे। उम्मीद थी कि इस साल उसका बीबीए पूरा हो जाएगा तो कहीं न कहीं जॉब लग जाएगी। आशुतोष कहता था कि वह जल्द ही जाॅब शुरू करेगा और फिर पिता को काम नहीं करने देगा...वह कमाएगा और माता-पिता आराम से रहेंगे। लेकिन, प्रकृति को ये मंजूर नहीं था।

चार बजे पहुंचे, दो घंटे एंबुलेंस का किया इंतजार
मृतक आशुतोष के ताऊ ने बताया कि भजीजे की मौत की सूचना शनिवार सुबह आठ सवा आठ बजे मिली थी। इसके बाद वीर बहादुर व अन्य लोग 10.15 बजे के दौरान घटनास्थल के लिए रवाना हुए थे। शाम चार बजे के दौरान वह लोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे थे, जहां पर आशुतोष का शव रखा था। उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन ने पोस्टमार्टम समय से करा दिया लेकिन, छोटा अस्पताल होने से वहां एंबुलेंस सुविधा नहीं थी। इसलिए देहरादून से एंबुलेंस आते-आते दो घंटे लग गए थे।

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