HOLI SPECIAL: किस्से-कहानियों तक सिमटी टेसू के फूलों के रंगों की होली, युवा पीढ़ी है इसके फायदों से अंजान!, पढ़िये रोचक STORY!

अब भी जंगल और बागानों में लालिमा बिखेरते दिखते हैं टेसू के फूल 

HOLI SPECIAL: किस्से-कहानियों तक सिमटी टेसू के फूलों के रंगों की होली, युवा पीढ़ी है इसके फायदों से अंजान!, पढ़िये रोचक STORY!

धनपतगंज, सुलतानपुर, अमृत विचार। जंगल और बागानों में लालिमा बिखेरते टेसू के फूलों के रंग से होली खेलना अब किस्से कहानियों तक सिमट कर रह गया। आधुनिकता मे पल बढ रहे नई पीढी  को नही पता कि हर्बल और केमिकल युक्त रंग उनकी सेहत को कितना बदरंग कर सकतें हैं।

दो दशक पूर्व सतरंगी रंगों की छटा विखेरते होली त्यौहार से तन मन महक जाते थे। ऐसा गांव के बूढे़ बुजुर्गों का मानना है। गांव निवासी कहते हैं कि हमारे तीज त्यौहारों की परंपरा दशकों पहले प्रकृति के सहयोग पर आधारित रही। जो त्यौहार जिस महीने में आता है उस त्यौहार की तैयारी में प्रकृति स्वयं कुछ व्यवस्था बना देती है। 

फाल्गुन मास लगते ही गांव के जंगलों और बागानों में टेसू वृक्ष में फूल लग जाते थे। जिन फूलों का रंग निकाल कर ग्रामीण सुरक्षित होली का आनंद दशकों पूर्व तक लेते रहे, लेकिन आधुनिकता के दौर में इस प्राकृतिक रंग से लोगों ने किनारा कर लिया है। हालांकि, आज भी ब्रज के मंदिरों खासकर श्री बांकेबिहारी मंदिर में आज भी टेसू रंग से होली खेलने की परंपरा है।

टेसू के फूल से कैसे निकाला जाता है रंग

क्षेत्र के बुजुर्ग माता प्रसाद कहते है कि फाल्गुन मास में टेसू का फूल पेडों पर लग जाता है। पहले ग्रामीण इन फूलों को तोड़ कर पानी में उबालते थे, जिससे टेसू का रंग पानी में उतर आता था और लोग इसी रंग से होली खेलते थे। जो किसी तरह से चमडे़ को नुकसान नहीं पंहुचाता था। एक बेहतर सुगंधित रंग बने इसके लिए इसमें अगर, चंदन, खस तथा गुलाब की पंखुड़ियों को साथ उबाल कर सुगंधित बनाया जाता था। जो तन मन को महका देता था। 

टेसू वृक्ष का क्या है पौराणिक महत्व

पंडित मुकेशानंद महराज कहते है कि पुराणों की मानें तो टेसू वृक्ष की शाखाओं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है। इसके औषधीय उपयोग के साथ हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में अति महत्वपूर्ण यज्ञोपवीत संस्कार के दौरान इसकी टहनी का उपयोग अनिवार्य रुप से किया जाता है।

केमिकल रंगों से हो सकता है स्वास्थ्य को नुकसान

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा प्रभारी डा. अरूणेश सिंह कहते है कि शीशा, पारा जैसे तत्वों से निर्मित रंग त्वचा को नुकसान पंहुचाते हैं। त्वचा रोग की प्रबल संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, इससे बचें।

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