लखीमपुर खीरी: गन्ने के खेत खाली होते ही बढ़ गए बाघ के हमले, गांव में दहशत...वन विभाग बेबस

लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। गन्ने की फसल काटने के साथ ही बाघों के हमले बढ़ गए हैं। पिछले 48 घंटे के अंतराल में बाघ के हमले से एक की मौत, जबकि दो घायल हो चुके हैं। वहीं तिकुनियां इलाके में भैंस को निवाला बना लिया है। इससे तराई में एक बार फिर बाघ आक्रामक होने लगे हैं।
बता दें कि गन्ने के बीच अपना आशियाना बनाकर रहने वाले बाघ फसल कटान के बाद अपने को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। परिणामस्वरूम मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं बढ़ गई हैं। वहीं बाघों की बढ़ती संख्या से एक ओर जहां वन्य जीव प्रेमी और विशेषज्ञ खुश हैं। वन विभाग बाघ संरक्षण की बात कह रहा है तो दूसरी तरफ बाघों के जंगल से बाहर निकलकर खेत खलिहानों में घूमने से किसान से लेकर राहगीर तक परेशान हैं। पिछले दो वर्षों में बाघ से मानव की मौत के मामले भी बड़े हैं।
इन बढ़ते मामलों के कारण ही ग्रामीणों में आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। गर्मी का मौसम भी शुरू होने वाला है, ऐसे में जंगल में पानी की कमी के कारण गत वर्षो में कई बार हिरण जंगल से चार किलोमीटर दूर तक बाहर आ चुके हैं। ऐसे में बफर जोन में मौजूद बाघों के जंगल के बाहर आने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
शावकों के साथ गन्ने के खेत में बसेरा बना लेती है बाघिन

वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ला कहते हैं कि शावक को बाघ मार डालता है, इसलिए बाघिन अपने शावकों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें जन्म देने से पूर्व ही सुरक्षित स्थान की तलाश करने लगती है। यही वजह है कि वह जंगल छोड़कर किनारे के गन्ने के घने खेत में अपना आशियाना बना लेती है। वह तब तक अपने शावकों के साथ उन्हीं क्षेत्रों में चहलकदमी करती रहती है, जब तक कि वे अपना शिकार स्वयं करने और अन्य वरिष्ठ बाघों से अपनी सुरक्षा के योग्य न हो जाए। उसके बाद वह उन्हें लेकर कोर एरिया में चली जाती है। यदि गन्ना कटने तक बाघिन शावक के साथ जंगल में वापस नहीं जा पाती तो वह आक्रामक होकर हमला कर देती है।
शिकार का पीछा करने से जंगल से बाहर आते हैं बाघ

दुधवा में वन्यजीव प्रतिपालक रह चुके आनंद कुमार बताते हैं कि शिकार का पीछा करते हुए जंगल के बाहर बाघों का आना तो आम बात है। ऐसे बाघ शिकार करने के बाद पुनः जंगल में लौट जाते हैं, किंतु गर्भ धारण करने से लेकर शावकों के लगभग डेढ़ वर्ष की उम्र के होने तक बाघिन जंगल के बाहरी किनारों पर गन्ने के खेतों में ही ठिकाना बनाए रखती है, जिससे कि शावकों को बाघों से बचाया जा सके। इसी दौरान वह शावकों को शिकार करना भी सिखाती है। जब इनमें प्रतिरोध करने की क्षमता विकसित हो जाती है। तब वह उन्हें लेकर कोर एरिया में प्रवेश करती है, जहां उसका सामना क्षेत्र विस्तार के लिए अन्य बाघों से होता है।
केस- 1
दक्षिण खीरी वन प्रभाग गोला रेंज जंगल से गुजरे कुकरा-गोला मार्ग पर पश्चिम बीट कंपार्टमेंट एक में 28 फरवरी को दोपहर तीन बजे वाचर ने एक युवक का शव पड़ा देखा। उसके शरीर के निचले हिस्से को जंगली जानवरों ने खा लिया था। निरीक्षण में यह बात सामने आई कि युवक को बाघ ने निवाला बनाया है। क्योंकि युवक के चेहरे पर बाघ के पंजे के निशान के साथ ही शव के आसपास बाघ के ताजे पगचिन्ह पाए गए।
केस- 2
मोहम्मदी रेंज क्षेत्र के बोझवा गांव में गन्ना छील रहे 40 वर्षीय मजदूर मातादीन पर बाघ ने हमला कर दिया। गनीमत रही कि साथी मजदूरों के शोर पर बाघ भाग गया, जिससे उनकी जान बच गई, लेकिन गंभीर हालत में सीएचसी में भर्ती कराया गया, जहां से उन्हें जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया।
केस- 3
मोहम्मदी रेंज क्षेत्र के बोझवा गांव के उसी खेत में बाघ ने हमला कर हरीनगर निवासी श्रमिक मुकेश कुमार को जख्मी कर दिया, जहां 28 फरवरी को मातादीन को घायल किया था। श्रमिक मुकेश कुमार के गर्दन पर हमला कर दिया है।
केस- 4
बाघ ने दोपहर बाद बाबा की कुटी के पास गांव खैरटिया निवासी जग्गा सिंह की चर रही भैंस पर हमला कर दिया और उसे निवाला बना डाला। रेंजर भूपेंद्र सिंह ने घटना स्थल का निरीक्षण कर कांबिंग कराई। इससे पहले रविवार को भी बाघ ने एक गाय को निवाला बनाया था। मंगलवार को बाइक से जा रहे युवक पर भी हमला किया था, लेकिन वह बाल बाल बच गया था। लगातार बाघ के हमले और चहल कदमी में क्षेत्र में दहशत का माहौल है।
लोग कयास लगाते रहते हैं, किंतु बाघिनों के लिए जंगल से सुरक्षित स्थान कहीं और नहीं है, लेकिन कुछ परिस्थितियोंवश ही बाघ जंगल से बाहर खेतों में आशियाना बनाते हैं। बाघ हमला तभी करते हैं, जब उन्हें अपने ऊपर खतरा महसूस होता है। रही बात गर्मियों में पानी की तो वाटर होल्स में पानी की व्यवस्था करते हैं। जहां जरूरत होती है टैंकर से भी पानी भरवाया जाता है-डॉ. टीरंगा राजू, उपनिदेशक दुधवा बफर जोन।
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