गाजा से विस्थापित फिलिस्तीनियों के लिए अपनी सीमा क्यों नहीं खोल रहा है मिस्र?

गाजा से विस्थापित फिलिस्तीनियों के लिए अपनी सीमा क्यों नहीं खोल रहा है मिस्र?

सिडनी। इजराइल की ओर से बार-बार बमबारी और जमीनी हमलों के कारण लगभग 15 लाख फलस्तीनी नागरिक वर्तमान में दक्षिणी गाजा के शहर रफह में फंसे हुए हैं। इस शहर की मूल आबादी 2,50,000 थी लेकिन यहां अब गाजा की पूरी आबादी के आधे से अधिक लोग हैं। ये ऐसी परिस्थितियों में आश्रय लिये हुए हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष सहायता अधिकारी ने "गंभीर" कहा है, जहां बीमारी फैल रही है और अकाल का खतरा मंडरा रहा है। 

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने नरसंहार के एक संभावित मामले पर फैसला सुनाया है, इजराइल के हमले में अब तक गाजा पट्टी में 29,000 से अधिक फलस्तीनी मारे गए हैं। अब इस बात की आशंका बढ़ गई है कि रफह पर इजराइल के संभावित जमीनी हमले से नागरिक सीमा पार करके मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप में प्रवेश कर सकते हैं। मूल रूप से ‘‘सुरक्षित क्षेत्र’’ माना जाने वाला रफह को अब इजराइली हवाई हमलों द्वारा भी निशाना बनाया जा रहा है। हिंसा से भाग रहे लोगों के पास जाने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है। 

हालांकि, इजराइल के अलावा मिस्र एकमात्र देश है जिसकी सीमा गाजा से लगती है। हालांकि मिस्र ने इजराइल द्वारा विस्थापित फलस्तीनी शरणार्थियों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। खबरों से संकेत मिलता है कि इजराइली अधिकारियों ने मिस्र को गाजा से शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश की है।

हालांकि, मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी मानवीय गलियारों या सिनाई में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनियों के प्रवेश की अनुमति देने से इनकार करते रहे हैं। उन्होंने इसे एक "लाल रेखा" कहा है, जिसे यदि अगर पार किया गया, तो "फिलिस्तीनी उद्देश्य खत्म हो जाएगा।’’ हाल के दिनों में, संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त फिलिपो ग्रांडी ने मिस्र के रुख को न्यायोचित ठहराया है। ग्रांडी ने कहा कि गाजावासियों को मिस्र में बसाना मिस्र और फलस्तीनियों दोनों के लिए "विनाशकारी" होगा।

 उन्होंने संकेत दिया कि संभवतः उन्हें वापस लौटने की अनुमति नहीं दी जाए। मिस्र इस विचार का विरोध क्यों कर रहा है? मिस्र के विरोध के कुछ कारण हैं। पहला यह कि मिस्र गाजा के बाहर फलस्तीनियों के स्थायी पुनर्वास के माध्यम से जातीय सफाये की सुविधा प्रदान करता हुआ नहीं दिखना चाहता। अक्टूबर में, इजराइल के खुफिया मंत्रालय के एक लीक हुए दस्तावेज में गाजा की 23 लाख आबादी को क्षेत्र से बाहर और मिस्र के सिनाई रेगिस्तान में तम्बू शहर में जबरन स्थानांतरित करने की सिफारिशें शामिल थीं। सरकार के मंत्री बेजेल स्मोट्रिच और इटमार बेन-गविर ने भी खुले तौर पर गाजा से फलस्तीनियों के निष्कासन की वकालत की है ताकि वहां पर इजराइली निवासियों को बसाया जा सके।

 इसके अलावा, जनवरी में इजराइल में इसी योजना का आह्वान करते हुए एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के मंत्रिमंडल के 11 सदस्यों और संसद के 15 अतिरिक्त सदस्यों ने भाग लिया। नेतन्याहू ने पिछले महीने कहा था कि इजराइल का "गाजा पर स्थायी रूप से कब्ज़ा करने का कोई इरादा नहीं है।’’ उन्होंने इस बारे में अपने मंत्रियों को बयान देने से नहीं रोका है। उनसे जब जनवरी में सम्मेलन के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हर किसी को "अपने विचार रखने का अधिकार है।’’ सीसी को फलस्तीनियों के प्रति मिस्र की जनता की सहानुभूति की जानकारी है।

हमास के साथ मिस्र के जटिल संबंध
मिस्र के लिए एक और प्रमुख चिंता उसकी सुरक्षा है। यदि फलस्तीनियों को सिनाई में फिर से बसाया गया, तो यह मिस्र के इस क्षेत्र में प्रतिरोध अभियान शुरू करने के लिए एक नया आधार बना सकता है। यह मिस्र को इसराइल के साथ सैन्य संघर्ष में घसीट सकता है। इसके अलावा, सिसी हाल के वर्षों में केवल उत्तरी सिनाई में इस्लामी विद्रोहियों पर नकेल कसने में कामयाब रहे हैं और संभवतः इसको लेकर चिंतित हैं कि शरणार्थियों की आमद अस्थिर कर सकती है।

अंत में, सीसी का संभवतः यह मानना है कि हमास उनके शासन का विरोध कर सकता है। वर्ष 2013 में एक सैन्य तख्तापलट में राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ करने के बाद, सिसी शासन ने मुस्लिम ब्रदरहुड पर कार्रवाई की और सभी तरह के असंतोष को दबा दिया। वर्ष 2014 और 2016 के बीच, मिस्र की सेना ने गाजा को मिस्र से जोड़ने वाली सुरंगों पर बमबारी की और उसमें पानी भर दिया, साथ ही हमास पर मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ सरकार के खिलाफ मिलीभगत करने का आरोप लगाया। 

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