कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्षमता

भारत नवाचार, स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है। नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाओं में भारत 40वें स्थान पर है। देश अगले कुछ सालों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसके लिए हमें बेहतर तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत है। दुनिया में जिस तरह का तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हो रहा है, उसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी ने चैटजीपीटी का निर्माण करने वाली कंपनी ओपनएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन से हुई मुलाकात के बाद यह बात कही। इससे पहले ऑल्टमैन ने गुरुवार को कहा था कि वे भारत में एआई को बढ़ावा देने के लिए इससे जुड़े भारतीय स्टार्टअप को वित्तीय सहायता मुहैया कराएंगे।
उनका मानना है कि भारत के पास मजबूत आईटी उद्योग है और इसको देखते हुए एआई आधारित सेवाओं की बड़ी क्षमता का भारत लाभ उठा सकता है। वास्तव में कृत्रिम मेधा (एआई) तेजी से हर क्षेत्र में पैर पसारता जा रहा है। भारत के लिए एआई का सही इस्तेमाल जरूरी है। 85 करोड़ भारतीय इंटरनेट का उपयोग करते हैं और 2025 तक यह संख्या 120 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है।
भारत सरकार की ओर से पहले ही अनुसंधान एवं विकास में निवेश, स्टार्टअप्स एवं नवाचार केंद्रों की स्थापना, एआई संबंधी नीतियों एवं रणनीतियों का निर्माण तथा एआई संबंधी शिक्षा एवं कौशल को बढ़ावा देकर देश के अंदर एआई पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने पर बल दिया जा रहा है। भविष्य में इससे नागरिकों को नुकसान न पहुंचे, इसके नियमन को लेकर भी स्पष्ट नीति होनी चाहिए।
यह अक्सर कहा गया है कि नई तकनीकों से हमेशा मनुष्यों को उनकी नौकरियां गंवाने का संदेह होता है। हालांकि, सभी नई तकनीकों के परिणामस्वरूप अंततः अधिक रोजगार सृजित हुए हैं और मानव जीवन को थोड़ा कम परेशानी वाला बना दिया है। परंतु एआई तकनीक पुरानी तकनीकों से गुणात्मक रूप से भिन्न है जिसमें सूचना और संचार प्रौद्योगिकी क्रांति की पहली लहर भी शामिल है।
नौकरी में लॉजिक और रीजनिंग की जरूरत होती है और फिलहाल एआई इस मामले में उतना सटीक नहीं है। हालांकि सरकार एआई को लेकर गंभीर हो गई है और एआई के इस्तेमाल को लेकर नए नियम ला सकती है।
सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाएगी कि एआई नुकसान न पहुंचाए। एआई के खतरों से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर सामूहिक प्रयास को बढ़ावा देने की जरूरत है। साथ ही इस दिशा में वैश्विक स्तर पर रणनीति बननी चाहिए।