सेंसरशिप, इंटरनेट बंदी अभिव्यक्ति, आजीविका अर्जित करने के अधिकारों का उल्लंघन: आईएफएफ

सेंसरशिप, इंटरनेट बंदी अभिव्यक्ति, आजीविका अर्जित करने के अधिकारों का उल्लंघन: आईएफएफ

चंडीगढ़। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने पंजाब पुलिस के खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के खिलाफ अभियान के दौरान इंटरनेट बंदी और पत्रकारों के ट्वीट और टि्वटर खाते ब्लॉक करने की यह कहते हुए आलोचना की है कि सेंसरशिप और इंटरनेट बंदी लोगों की अभिव्यक्ति तथा आजीविका कमाने के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करती है।

आईएफएफ के वरिष्ठ पदाधिकारी तन्मय सिंह ने शुक्रवार को यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इंटरनेट पर स्वतंत्र अभिव्यक्त और इंटरनेट के माध्यम से कार्य कर आजीविका कमाने के अधिकारों को पहचाना है जो संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार हैं। उन्होंने कहा कि इंटरनेट सेवाएं केवल आपात स्थितियों में या जब जनता की सुरक्षा को खतरा हो, तभी निलंबित की जा सकती हैं और पंजाब के मामले में, ऐसा लगता है, यह सिर्फ एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए किया गया। 

उन्होंने कहा कि शुरू में एक दिन के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद की गई थीं, पर फिर अगले तीन दिन बंदी को बढ़ाया जाता रहा। इससे दो करोड़ अस्सी लाख की आबादी प्रभावित हुई। उन्होंने कहा कि मूल आदेश और बाद के बंदी विस्तार आदेशों में कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है और न ही ऐसा विवरण दिया गया है जिससे कि आपात स्थिति तक मामला बढ़ सकता हो, इसलिए यह कानूनी पैमानों पर खरी नहीं उतरती। सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि टेलीकॉम सस्पेंशन रूल्स, 2017 कानून हैं और उनका पालन सरकारों को भी करना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि इसके अलावा केन्द्र सरकार के आदेश पर कई ट्वीट, ट्विटर खातों पर रोक लगाई गई। ट्विटर को पहला अनुरोध केन्द्र सरकार ने 19 मार्च को भेजा, जिसमें कई राजनीतिज्ञों, पत्रकारों और पंजाब के कवियों के भी नाम थे। उन्होंने कहा कि सेंसरशिप, इंटरनेट सेवाओं का निलंबन गंभीर चिंता का विषय बन जाते हैं, जब यह मनमाने, गैरकानूनी और अपारदर्शी तरीके से किये जाएं।

सिंह ने बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में इंटरनेट बंदी के कारण एप आधारित सेवाओं, कारोबार, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, होटल क्षेत्रों के प्रभावित होने से देश को लगभग 2.8 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। उन्होंने कहा कि सरकार का कोई भी उपाय जो लाखों लोगों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करे, कानूनी, आनुपातिक आधार पर और पारदर्शी तरीके से होना चाहिए।

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