सुरक्षा चिंताएं

सुरक्षा चिंताएं

चीन लगातार भारत की घेराबंदी के लिए उन देशों को अपने पाले में करने की साजिश करता रहा है जिनके साथ भारत के सदियों से मधुर संबंध रहे हैं। अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते चीन यदि भारत के अभिन्न मित्र भूटान को कूटनीतिक जाल में फंसाने की कोशिश में सफल हो गया तो भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ सकती हैं। दक्षिण एशिया में भूटान एकमात्र ऐसा देश है जिसका चीन के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं है। परंतु भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने बेल्जियम के अख़बार ला लेब्रे को दिए साक्षात्कार में जो कुछ कहा है, उससे लगता है कि भूटान चीनी दबाव में भारतीय हितों को ताक में रखने को तैयार हैं।

शेरिंग ने कहा है कि भूटान के निकट चीन ने जो गांव बनाए हैं वे भूटान की सीमा में नहीं हैं। जबकि वर्ष 2020 में कहा गया था कि चीन भूटान की सीमा के भीतर कुछ गांव बना रहा है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह बयान तार्किक नहीं है और चीन के दबाव में यह बात कही जा रही है। कुछ महीनों पहले मीडिया की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भूटान में चीन के गांव सुदूर इलाकों में बसाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन गांवों में मौसम लोगों के रहने के लिए अनुकूल नहीं है। इसका फायदा उठाकर चीन लोगों को सड़क, बिजली, पानी और कम्यूनिकेशन नेटवर्क का लालच दे रहा है।

भूटान भले ही एक छोटा पहाड़ी देश है लेकिन उसकी अपनी रणनीतिक अहमियत है। पहले भूटान की सरकार ने डोकलाम पर किसी बहस में सार्वजनिक रूप से शामिल होने से इनकार कर दिया था। पचास के दशक में तिब्बत पर चीन के कब्ज़े के बाद भूटान का झुकाव भारत की तरफ हो गया था। इसके बाद से ही भूटान भारत के प्रभाव में रहा है।

भारत भूटान को आर्थिक, सैनिक और तकनीकी मदद मुहैया कराता है। भूटान की विदेश नीति में भारत की सुरक्षा चिंताओं का ख्याल रखा गया है और इसकी वजह है वर्ष 1949 का भारत-भूटान समझौता। इस समझौते को साल 2007 में संशोधित किया गया। भूटान में चीन की दखल भारतीय हितों पर आक्रमण की परोक्ष नीति ही है। जिसके जरिये वह भारत पर सामरिक बढ़त लेने के लिए साजिश रच रहा है निश्चित रूप से यह स्थिति सामरिक दृष्टि से भारत के लिए जटिल व चुनौतीपूर्ण बन रही है। हालांकि भूटान भारत की सुरक्षा चिंताओं को लेकर संधि से बंधा हुआ है। भूटान भारत की सहमति के बिना किसी तीसरे देश से सीमा को लेकर समझौता नहीं कर सकता है। 

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