Pegasus : फिर बाहर आया पेगासस का जिन्न...जानिए इस जासूसी सॉफ्टवेयर के बारे में, कहीं आपके फोन में भी तो नहीं, ऐसे पहचानें

Pegasus : फिर बाहर आया पेगासस का जिन्न...जानिए इस जासूसी सॉफ्टवेयर के बारे में, कहीं आपके फोन में भी तो नहीं, ऐसे पहचानें

नई दिल्ली। आज हम फिर पेगासस (Pegasus) नाम के सॉफ्टवेयर की बात कर रहें हैं। जो कि जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं। ये सॉफ्टवेयर एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है  वजह है लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में दिया कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का हालिया बयान। 

राहुल गांधी इन दिनों ब्रिटेन के दौरे पर हैं। कांग्रेस नेता ने इस दौरान लंदन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक भाषण दिया है, जो चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल, राहुल ने यूनिवर्सिटी में दिए अपने भाषण में भारत में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बड़ी संख्या में राजनीतिक नेताओं के फोन पर पेगासस होता है। मेरे पास अपने फोन पर पेगासस था। मुझे खुफिया अधिकारियों द्वारा बुलाया गया है जो कहते हैं कि कृपया सावधान रहें कि आप फोन पर क्या बोलते हैं क्योंकि हम रिकॉर्ड कर रहे हैं। इसलिए हम लगातार दबाव महसूस करते हैं। विपक्ष के खिलाफ मामले दर्ज हैं। मेरे खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं जो आपराधिक मामलों के तहत नहीं होने चाहिए।

What-is-Pegasus-Spyware-and-How-It-Works

क्या होते है ये जासूसी करने वाले सॉफ्टवेयर?
टेक्नोलॉजी की भाषा में इसे स्पाइवेयर कहा जाता है इस सॉफ्टवेयर को इजरायल के NSO ग्रुप ने डेवलप किया था, जो किसी के फोन में चुपके से इंस्टॉल किया जा सकता था. यहां तक कि इसे किसी के फोन में इंस्टॉल करने के लिए यूजर के इस पर क्लिक करने की भी जरूरत नहीं थी और यही इससी सबसे बड़ी खासियत भी है, ये स्पाईवेयर जीरो-क्लिक एक्सप्लॉयट है। इस स्पाईवेयर की जद में एंड्रॉयड और iOS दोनों ही ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करने वाले फोन्स थे. स्पाईवेयर iOS 14.7 वर्जन में आसानी से सेंधमारी कर सकता था। किसी यूजर के फोन में हर तरह की जासूसी का काम Pegasus कर सकता था।

Pegasus-Cost

कहां से हुई इस सॉफ्टवेयर की शुरूआत
इस स्पाईवेयर के पीछे एक कहानी है हम आप को बता दे  पेगासस ग्रीक की पौराणिक है जिस में एक ऐसे घोड़े का वड़न्न है जो की उड़ सकता हैं। इस का नाम वही से लिया गया हैं।  ये एक टॉर्जन हॉर्स कम्प्यूटर वायरस है, जो किसी भी डिवाइस में यूजर की जानकारी के बिना सेंधमारी कर सकता था। 

दरअसल, ये सॉफ्टवेयर डिवाइस में मौजूद खामी को खोजता और फिर यूजर के डिवाइस को इन्फेक्ट करता है। इसकी मदद से किसी के टेक्स्ट मैसेज रीड किए जा सकते हैं। ये कॉल्स ट्रैक कर सकता था, पासवर्ड कलेक्ट करने, लोकेशन ट्रैक करने के साथ-साथ माइक्रोफोन और कैमरा तक का एक्सेस हासिल कर सकता था। पेगासस को साल 2016 में डिस्कवर किया गया था, जब एक फोन में इसका इंस्टॉलेशन फेल हो गया था।

यह सॉफ्टवेयर अगस्त 2016 में अरब में मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाले अहमद मंसूर को एक टेक्स्ट मैसेज आया। उन्हें एक सीक्रेट मैसेज मिला, जिसमें UAE के जेल में बंद कैदियों पर अत्याचार के बारे में बताया गया था। मंसूर ने इस लिंक को यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो की सिटीजन लैब को भेजा, जिन्होंने जांच में पाया कि टेक्स्ट मैसेज के साथ आए लिंक में एक स्पाईवेयर छिपा हुआ है। किसी फोन में मायवेयर इम्प्लांट करने के इस तरीके को सोशल इंजीनियरिंग कहते हैं।

cover_pegasus-e1632299074682-min

कहीं आपके फोन में भी तो नहीं Pegasus, ऐसे जानें 
Pegasus साफ्टवेयर कही आप के फोन में तो नहीं यह जानना थोड़ा मुश्किल काम हैं। लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर आप फोन में मौजूद स्पाईवेयर का पता जरूर लगा सकते हैं। इसका सबसे बड़ा साइन बैटरी लाइफ और डेटा कंजम्पशन है। चूंकि, आपके फोन में एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो पूरे वक्त एक्टिव रहता है, तो निश्चित तौर पर इसका असर आपकी बैटरी पर पड़ेगा। दूसरी तरफ इन स्पाईवेयर्स को जासूसी के बाद डेटा हैकर या मेन सर्वर को भेजना होता है। 

इस प्रक्रिया में अच्छा खासा डेटा खत्म होता है और यहां पर आपको किसी स्पाईवेयर के होने का अंदेशा लगेगा. क्योंकि आपका डेटा जरूरत से ज्यादा खर्च होगा दरअसल, एंड्रॉयड हो या फिर iOS, फोन में कैमरा व माइक्रोफोन के एक्टिव होने पर कुछ लाइट्स दिखती हैं. इन लाइट्स की मदद से आपको पता चलता है कि कौन सा इक्यूपमेंट यूज हो रहा है।

ये भी पढ़ें : हिजाब पहनकर परीक्षा देने संबंधी छात्राओं की याचिका पर होली बाद 'सुप्रीम' सुनवाई