'दिल की दुकान' दे गई बहुत बड़ी सीख

अमृत विचार, लखनऊ। नाट्य संस्था मंचकृति द्वारा आयोजित 30 दिवसीय हास्य नाट्य समारोह की 19वीं संध्या पर नाटक दिल की दुकान का मंचन किया गया। राजेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा लिखित और संगम बहुगुणा द्वारा निर्देशित नाटक का मंचन मंगलवार की शाम को संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे सभागार में किया गया।
नाटक दिल की दुकान में धनीराम एक महाकंजूस व्यक्ति है। वह पानी पीने के लिए भी वह पत्नी से कहता है कि म्युनिसिपालिटी के नल से लाओ। चीनी के गिरे हुए दाने खोज-खोज कर उन्हें चाय में डालता है। इतना कंजूस है कि कबाड़ी से टूटे कप खरीद कर लाता है। उसकी पत्नी उसकी इस हरकत से बहुत परेशान रहती है।
मोहनलाल पत्नी का सताया हुआ एक निरीह पति है। उसकी पत्नी बहुत ही तेजतर्रार है। बात-बात पर उसको डराती रहती है। घर का सारा काम उसी से करवाती है। पति को उसकी मर्जी से कुछ भी नहीं करने देती। तीसरे मकान में रहने वाली चंदा है तो सीधी सादी पर उसका पति इतना शराब पीता है कि पूजा के लिए रखे हुए पैसे से भी शराब की बोतल खरीद के ले आता है। इस कारण चंदा उससे हमेशा परेशान रहती है। वह हमेशा अपने आपको कोसती है कि किस घड़ी में उसकी शादी हुई।
तीनों अपने पति और पत्नी से परेशान हैं। तभी उनको एक ऐसी दुकान मिल जाती है जहां इंसान के दिल बदले जाते हैं। यहां धनीराम की पत्नी धनीराम का दिल बदला कर शहंशाह का दिल लगा देती है। मोहनलाल अपनी पत्नी का दिल बदल कर लैला का दिल लगवा देता है। चंदा का पति स्वयं ही जा कर के अपना दिल साधु का लगवा देता है। अब तीनों अपने स्वभाव से उल्टा व्यवहार करते हैं लेकिन व्यवहार की अति हो जाती है। वह लोग सोचते हैं कि इससे तो अच्छा था कि हम पहले वाला दिल ही इनका रहने देते। यह नाटक लेखक की एक काल्पनिक सोच है लेकिन इससे यह सीख मिलती है कि किसी भी चीज की अति बहुत बुरी होती है चाहे वह चीज अच्छी हो और चाहे वह चीज बुरी।
नाटक में शुभम वाजपेयी, भव्या द्विवेदी, ठाकुर जयसिंह, निशु सिंह, अजय शर्मा, लक्ष्मीकांत लकी, भानु प्रकाश पाण्डेय, ममता शुक्ला, तन्मय, संगम बहुगुणा, उत्कर्ष मणि त्रिपाठी और गौरव वर्मा ने उल्लेखनीय भूमिकाएं अदा कीं।
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