बदलाव की आवश्यकता

भारत एक महाशक्ति बनने के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है लेकिन बदलती हुई वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियां देश के सामने अनेक चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं। चीन और पाकिस्तान दोनों से ही भारत को समय-समय पर गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान और चीन की वर्तमान साझेदारी को भारत पहले की तुलना में अधिक चिंता का विषय मानता है।
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन का कहना है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सैनिक जुटा रहा और सेना के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है। लोकसभा में पेश लोक लेखा समिति (पीएसी) की रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने बताया कि चीन अंतरिक्ष और साइबर स्पेस में अभियान को संचालित करने के लिए क्षमताओं के विकास के अलावा युद्ध-संघर्ष, अनुमानित सैनिक संख्या और परमाणु प्रतिरोधक क्षमताओं में सुधार के लिए सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है।
चीन कृत्रिम बुद्धिमता, रोबोटिक्स सहित यूएवी, ड्रोन, क्वांटम कम्प्यूटिंग और संचार, युद्धाम्यास वाहन, निर्देशित ऊर्जा हथियार, हाइपरसोनिक गाइडेड व्हीकल, काउंटर स्पेस हथियारों के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है। हमें समझने की जरूरत है कि भविष्य के युद्धों में सैनिकों की संख्या से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी दक्षता, अत्याधुनिक हथियार और उपकरण, सूचना-तकनीक ढांचा आदि होंगे।
इसलिए हमें भविष्य के मोर्चे के हिसाब से स्वयं को बदलना होगा। चीन की आक्रामकता का जवाब देने के लिए भारतीय सेना को नई जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना आवश्यक है। सरकार का कहना है कि भारत भी चीन की गतिविधियों पर नजर रख रहा है। भारत अपने बलों को नवीनतम अत्याधुनिक एवं नई पीढ़ी के हथियारों और उपकरणों से लैस कर रहा है ताकि विरोधियों के किसी भी नापाक मंसूबों को विफल करने के लिए पूरी तरह से तत्पर रहा जा सके।
सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता दी है। अच्छी बात यह है कि इस दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। हालांकि भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की दिशा में जिस तेजी के साथ अब बढ़ा जा रहा है, वह काफी पहले ही शुरू हो जाना चाहिए था।
इस बात को भी ध्यान में रखा जाए कि सेना के तीव्र आधुनिकीकरण के रास्ते में भारत के समक्ष आने वाली सबसे बड़ी चुनौती बजट की भी है। आत्मनिर्भर भारत-मेक इन इंडिया पहल ने भारतीय रक्षा उद्योग को बढ़े हुए अवसरों के साथ सशक्त बनाया है, साथ ही स्वदेशी रूप से रक्षा अनुसंधान विकास में वित्त पोषण में वृद्धि की सुविधा प्रदान की है।