प्रदूषण से बचाव के लिए

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण का खतरनाक स्तर तक पहुंचना चिंता का विषय बना है। यह केवल दिल्ली की समस्या नहीं है बल्कि पूरा उत्तर भारत वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पंजाब में पराली जलाने पर रोक लगाने …
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण का खतरनाक स्तर तक पहुंचना चिंता का विषय बना है। यह केवल दिल्ली की समस्या नहीं है बल्कि पूरा उत्तर भारत वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पंजाब में पराली जलाने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर 10 नवंबर को सुनवाई करने का फैसला किया है।
याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के बढ़े हुए स्तर का कारण पंजाब में पराली जलाना है। दिल्ली में 500 एक्यूआई कभी नहीं रहा। याचिका में पराली जलाने के संबंध में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा राज्यों को नए दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है।
उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री ने सीमावर्ती राज्य में पराली जलाने की जिम्मेदारी ली और राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बीच अगली सर्दियों तक इस चलन पर रोक लगाने का वादा किया। हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने दावा किया कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं 20 प्रतिशत तक बढ़ी है जिससे हरियाणा में भी प्रदूषण बढ़ा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं के बारे में जो बयान दिया है, उससे हरियाणा के किसान आक्रोशित हैं। निश्चित रूप से पराली जलाने की समस्या गंभीर है, इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप उचित
नहीं है।
प्रदूषण के लिए अकेले किसानों को जिम्मेदार ठहराना भी गलत है। गंभीरता से विचार करें तो साफ होगा कि समस्या फौरी नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं। हर साल दिल्ली में सर्दियों से पहले हवा की गुणवत्ता खराब होती है। दिवाली पर पटाखों का धुआं, मोटर वाहनों और डीजल संचालित जनरेटरों का धुआं, कोयले से चलने वाले पावर प्लांट और औद्योगिक उत्सर्जन से दिल्ली की हवा प्रदूषित होती है।
दरअसल पूरे देश में प्रदूषण में हो रही तेज बढ़ोतरी के बावजूद इसको लेकर पर्याप्त जागरुकता और चिंता का अभाव है। स्थिति जब बेहद गंभीर होती है, तब कुछ दिन तक उस पर चर्चा होती है, फिर सब कुछ पहले जैसा चलने लगता है। विशेषज्ञों की राय है कि स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए स्थायी और निरंतर कदम उठाए जाने चाहिए। पराली जलाने से पर्यावरण के साथ ही लोगों को नुकसान होता है, जिससे निपटने का रास्ता निकालना चाहिए और उस रास्ते पर चलना चाहिए। इससे मृदा तो सुरक्षित होगी ही, प्रदूषण भी कम होगा और किसानों को काफी फायदा होगा।