अयोध्या: स्वास्थ्य विभाग ही नहीं समझ पा रहा डॉक्टर का लिखा, पीड़ित परेशान
अयोध्या। पढ़े-लिखे बड़ी-बड़ी डिग्री धारक डॉक्टरों की सलाह को आम आदमी की ओर से न पढ़ और समझ पाने की चर्चा तो अक्सर आती रही है, लेकिन यहां तो स्वास्थ्य विभाग ही डॉक्टर की सलाह को नहीं पढ़ पा रहा है। वह भी एमबीबीएस, एमडी डिग्रीधारी चिकित्सक का। जिसके चलते अग्रिम कार्रवाई के इंतजार में …
अयोध्या। पढ़े-लिखे बड़ी-बड़ी डिग्री धारक डॉक्टरों की सलाह को आम आदमी की ओर से न पढ़ और समझ पाने की चर्चा तो अक्सर आती रही है, लेकिन यहां तो स्वास्थ्य विभाग ही डॉक्टर की सलाह को नहीं पढ़ पा रहा है। वह भी एमबीबीएस, एमडी डिग्रीधारी चिकित्सक का। जिसके चलते अग्रिम कार्रवाई के इंतजार में पीड़ित परेशान है और न्याय पालिका तथा स्वास्थ्य महकमे के बीच पत्राचार जारी है।
मामला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट नंबर 3 पर कार्यरत एक कर्मी का है। आशुलिपिक के पद पर तैनात प्रेम शंकर श्रीवास्तव ने अस्वस्थता के चलते ड्यूटी से 10 अगस्त से 31 अगस्त तक चिकित्सीय अवकाश के लिए आवेदन किया था। चिकित्सक का प्रमाण पत्र मिलने के बाद उन्होंने आवेदन के साथ 16 अगस्त को प्रमाण पत्र स्वीकृत के लिए विभाग में प्रस्तुत किया।
स्वीकृत के लिए आवेदन पत्र अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कार्यालय ने अग्रसारित कर जिला एवं सत्र न्यायधीश को भेजा तो उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी से इस बात की आख्या मंगवाने को कहा कि क्या कर्मचारी को ऐसी बीमारी है जिसके कारण उसे बेड रेस्ट दिया जाना आवश्यक है। साथ ही पत्रावली को 29 अगस्त को आख्या के साथ प्रस्तुत करने को कहा।
इसके बाद अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट 3 के कार्यालय की ओर से 17 अगस्त को एक पत्र मुख्य चिकित्सा अधिकारी को भेजा गया और आख्या उपलब्ध कराने को कहा गया। पत्र के साथ एमबीबीएस, एमडी डिग्रीधारी डॉ आरएस पांडेय की ओर से जारी चिकित्सा प्रमाण पत्र की छाया प्रति भी भेजी गई। पत्र के जवाब में मुख्य चिकित्सा अधिकारी की ओर से 27 अगस्त को एक पत्र जुडिशरी को भेजा गया कि प्रमाण पत्र से स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि चिकित्सक द्वारा विश्राम की सलाह दी गई है अथवा नहीं। ऐसे में प्रमाण पत्र की मूल प्रति भिजवाने का कष्ट करें जिससे आख्या दी जा सके।
दरअसल स्वास्थ विभाग एमबीबीएस, एमडी चिकित्सक की सलाह को ही नहीं समझ पाया कि आखिर उन्होंने मरीज को सुझाव क्या दिया है? जबकि चिकित्सा प्रमाण पत्र पर पीड़ित का नाम पता समेत तमाम चीजें साफ-साफ लिखें नजर आ रही हैं। पीड़ित प्रेम शंकर श्रीवास्तव का कहना है कि आख्या न उपलब्ध होने के कारण उनका आवेदन स्वीकृत नहीं हो पा रहा है, जबकि मेडिकल लीव की मियाद खत्म हो चुकी है।
आवेदन स्वीकृत होने के बाद ही उनका वेतन आहरित हो पाएगा। इस बाबत मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अजय राजा का कहना है कि संलग्न चिकित्सा प्रमाण पत्र से स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि चिकित्सक ने बेड रेस्ट की सलाह दी है अथवा नहीं। जिसके चलते अदालत को पत्र भेजकर मूल प्रति की मांग की गई है जिससे आख्या दी जा सके।
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