अयोध्या: वनराजा समुदाय के लोग पत्तों से दोना-पत्तल बना कर रहे परिवार का भरण पोषण

अयोध्या। आधुनिक युग में दोना-पत्तल बनाने का कार्य धीरे-धीरे मशीनों पर आधारित होता जा रहा है, लेकिन यहां निवास कर रहे वनराजा समुदाय आज भी पेड़ के हरे व सूखे पत्तों से दोना पत्तल बनाकर बाजार में बेच कर पेट पालने का काम कर रहे हैं। इसके साथ-साथ वह हरे पेड़ों को बचाने का भी …
अयोध्या। आधुनिक युग में दोना-पत्तल बनाने का कार्य धीरे-धीरे मशीनों पर आधारित होता जा रहा है, लेकिन यहां निवास कर रहे वनराजा समुदाय आज भी पेड़ के हरे व सूखे पत्तों से दोना पत्तल बनाकर बाजार में बेच कर पेट पालने का काम कर रहे हैं। इसके साथ-साथ वह हरे पेड़ों को बचाने का भी कार्य करते हैं और नए पेड़ भी लगाकर पर्यावरण को भी बचा रहे हैं। दुख तो इस बात का है कि इन्हें सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता है।
रुदौली विधानसभा क्षेत्र में आज भी वनराजा (वनमानुष) समुदाय के परिवार निवास करते हैं। जंगल में लगे सागौन, छूल सहित अन्य चौड़े पत्तेदार पेड़ उनका पेट पाल रहे हैं। महिलाएं पत्तों से दोना पत्तल बनाकर अपनी जीविका चला रही हैं। अशरफपुर गंगरेला, अघावन नगर, गड़ी बठौली सहित आदि गांव की महिलाएं इस काम में जुटी हुई हैं। माहूल व सागौन के पत्तों से बने दोना पत्तल की मांग बढ़ने से इसका उपयोग आसपास के गांव से लेकर शहरों तक किया जा रहा है। नतीजतन मवई व पटरंगा क्षेत्र समेत आसपास के गांवों में पालीथिन का उपयोग कम हो रहा है।
अशरफपुर गंगरेला गाँव निवासी केशव कुमारी व उनकी माता बताती हैं कि हमारे पुरखों से लेकर आज तक हम सभी का जीवन जंगल के इन पत्तों पर आधारित है। यह काम बारिश के चार माह छोड़कर पूरे दिन करती है। इस कार्य से प्रत्येक माह एक महिला पांच से छह हजार रुपये की आमदानी प्राप्त कर रही है। दोना पत्तल ग्राम अशरफपुर गंगरेला के अलावा रानीमऊ, मवई चौराहा, सुमेरगंज, भिटरिया, मवई गंव, पटरंगा मंडी, कोटवा सड़क सहित आदि बाजारों में बेचा जाता हैं। हरे पत्तों से बने दोना पत्तल का उपयोग अधिकतर धार्मिक कार्यों में ज्यादा किया जाता हैं।
मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं वनराजा समुदाय
केशव देवी व राना ने बताया कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के लाभ से उन्हें वंचित किया गया है। हम सभी को न आवासीय पट्टा, कृषि योग्य भूमि, राशन, पेंशन सहित अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। हम सभी पेड़ की पत्तों से दोना व पत्तल बना कर बाजारों में बेचकर परिवार चला रहे हैं।
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