पीलीभीत: बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं लिए भी संघर्ष

मझोला/पीलीभीत, अमृत विचार। उत्तराखंड सीमा से सटे कस्बा मझोला की चीनी मिल बंद होने के बाद कोई विकास की रफ्तार थमने की बात करता है, तो दूसरी तरफ इसे दोबारा चालू कराने के लिए आवाज बुलंद की जा रही है। मगर, सालों से मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर श्रमिक परिवारों की खैर-खबर लेने की …
मझोला/पीलीभीत, अमृत विचार। उत्तराखंड सीमा से सटे कस्बा मझोला की चीनी मिल बंद होने के बाद कोई विकास की रफ्तार थमने की बात करता है, तो दूसरी तरफ इसे दोबारा चालू कराने के लिए आवाज बुलंद की जा रही है। मगर, सालों से मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर श्रमिक परिवारों की खैर-खबर लेने की सुध भी किसी ने नहीं ली। बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं पाने के लिए भी ये परिवार संघर्ष करते आए हैं।
साल 2009-10 में जब मझोला चीनी मिल कुछ दिन पेराई करने के बाद अचानक बंद कर दी गई तो सबसे बड़ा असर वहां पर काम करने वाले श्रमिक परिवारों पर पड़ा था। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। कुछ साल मिल चालू होने का इंतजार किया, लेकिन जब आस मिटने लगी और परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी दिखी तो पलायन होना तेज हो गया।
करीब 80 प्रतिशत परिवार कामकाज की तलाश में परिवार समेत मझोला से चले गए। पंजाब, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में काम देख वहीं बस गए। जो लोग इसी मिल कॉलोनी में रहते रहे, उनकी समस्याएं आज भी बरकरार है। उनके देयों का भुगतान भी अटक गया। बताते हैं कि कर्मचारियों की किसी तरह की मदद नहीं की गई।
बिजली और पानी की सप्लाई तो आए दिन बंद करा दी जाती है। कई-कई दिनों तक बिना बिजली पानी के गुजारा करने को कर्मचारियों के परिवार मजबूर हुए। अभी भी देयों के भुगतान को चक्कर लगा रहे हैं। कोई अन्य ठिकाना न होने की वजह से इस मुफलिसी भरी जिंदगी जीने को विवश हैं। चीनी मिल मजदूर यूनियन से जुड़े नेताओं की मानें मिल के बंद होने के बाद मजदूरों ने जान तक गंवाई है।
सरकार किसी भी दल की रही हो। तराई का ऐसा कोई नेता नहीं, जो आकर वायदे करके नहीं गया। न तो मिल चालू हो सकी, न ही श्रमिकों की समस्याओं का समाधान। हालात बदतर होते चले गए। अभी भी कई घरों की बिजली कटी हुई है। देयों के भुगतान के लिए परेशान हैं। कोई सुध लेने वाला ही नहीं है। 800 श्रमिक अपने परिवार के साथ रहा करते थे। अब करीब तीस परिवार ही बाकी रह गए हैं।
चेयरमैन ने लगवाए हैंडपंप तो मिली कुछ राहत
लोगों की मानें तो पानी की आए दिन की दिक्कत मिल में रहने वाले परिवारों को रहती थी। आए दिन जिला मुख्यालय आकर अधिकारियों से गुहार लगाते थे। श्रमिक नेताओं ने इस समस्या को नगर पंचायत गुलड़िया भिंडारा के चेयरमैन मुन्ने खां के समक्ष रखा तो कुछ हैंडपंप जरूर लगवा दिए गए थे, जिससे पानी की दिक्कत को लेकर कुछ राहत मिल सकी।
व्यवस्था बदहाल, मगरमच्छ और अजगर की भरमार
चीनी मिल कॉलोनी परिसर में सफाई व्यवस्था भी लंबे अरसे से बदहाल है। स्थानीय लोगों की मानें तो मगरमच्छ और अजगर तो आए दिन निकलते रहते हैं। जंगली जानवरों की भी दस्तक रहती है। ऐसे में बिजली न होने से हमले का खतरा भी बना रहता है। खासकर बुजुर्ग और बच्चों की चिंता सताती है।
मिल के साथ लग गए शिक्षा के मंदिर में ताले
चीनी मिल परिसर में ही एक विद्यालय संचालित हुआ करता था। जिसका उदघाटन राज्यमंत्री पीडब्ल्यूडी तेज बहादुर गंगवार द्वारा किया गया था। मिल द्वारा संचालित इस विद्यालय में कर्मचारियों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे। इस विद्यालय में पढ़ने वाले तमाम बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर,यहां तक कि अफसर भी बन चुके हैं। मिल के बंद होने के साथ ही इस स्कूल में भी ताले लग गए। विद्यालय की बिल्डिंग अब तो जर्जर हो चुकी है।
मंदिर को भी नहीं मिल पाई रोशनी
स्थानीय लोगों की मानें तो बिजली-पानी की दिक्कत उनके ही सामने नहीं थी। परिसर स्थित मंदिर में भी बिजली के कनेक्शन नहीं छोड़े गए। अभी भी करीब एक साल से अधिक समय से मंदिर में बिजली नहीं है। दोनों मंदिरों में बिना बिजली अंधेरा पसरा रहता है। एक साल से ईश्वर के दरबार भी बिजली से रोशन नहीं हुए हैं।
बड़े पैमाने पर हुआ श्रमिकों का उत्पीड़न
चीनी मिल बंद होने के बाद बड़े पैमाने पर श्रमिक परिवारों का उत्पीड़न हुआ। उनकी कभी बिजली काट दी गई तो कभी पानी। अपने ही भुगतान के लिए चक्कर लगाते रहे। कोर्ट में भी इस मुद्दे को लेकर हम गए थे। सभी दलों के नेता आए और आश्वासन दिया। मगर, श्रमिक परेशान ही रहा। अभी भी उनके सामने संकट कम नहीं हो सका है। —सत्यप्रकाश शुक्ला, अध्यक्ष, चीनी मिल मजदूर संघ।
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