अमरोहा : गुम हुए मुद्दे, जाति-बिरादरी के समीकरण में उलझे प्रत्याशी

अमरोहा : गुम हुए मुद्दे, जाति-बिरादरी के समीकरण में उलझे प्रत्याशी

प्रबल प्रभाकर/अमृत विचार। जिले में विधानसभा चुनाव के शोर में एक बार फिर प्रत्याशी जाति-धर्म के समीकरणों में उलझे हुए हैं। लेकिन, विधानसभा क्षेत्र में कई ऐसी समस्याएं हैं, जो आम जनमानस को सीधा प्रभावित करती हैं। लेकिन, वे कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाई। हर बार की तरह इस चुनाव में भी ये दिक्कतें …

प्रबल प्रभाकर/अमृत विचार। जिले में विधानसभा चुनाव के शोर में एक बार फिर प्रत्याशी जाति-धर्म के समीकरणों में उलझे हुए हैं। लेकिन, विधानसभा क्षेत्र में कई ऐसी समस्याएं हैं, जो आम जनमानस को सीधा प्रभावित करती हैं। लेकिन, वे कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाई। हर बार की तरह इस चुनाव में भी ये दिक्कतें कायम तो हैं। लेकिन, चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहीं। हालांकि विपक्ष इनको इन मुद्दों के जरिए मौजूदा विधायकों को घेरना चाहते हैं। लेकिन, कुछ दिन प्रचार के बाद फिर जाति-बिरादरी की बात करने लगते हैं। चुनाव के बाद पांच साल के दौरान इनको लेकर मुखर रहने वाले अधिकतर लोग इस समय इन समीकरणों में ही उलझे हुए हैं। प्रमुख राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी भी प्रमुख मुद्दों पर बात करने के बजाय अपने समीकरण बनाने और विरोधियों का खेल बिगाड़ने में लगे हैं।

नहीं हो सका कैलसा रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण
गाजियाबाद-मुरादाबाद रेल लाइन पर स्थित कैलसा रेलवे स्टेशन के क्रॉसिंग की जगह ओवरब्रिज की मांग स्थानीय लोगों द्वारा कई सालों से की जा रही है। ट्रेनों के आवागमन के दौरान क्रॉसिंग को बंद करना पड़ता है। इस मार्ग से अमरोहा-मुरादाबाद आने-जाने के लिए वाहनों का सर्वाधिक दबाव रहता है। कुछ मिनट रेलवे क्रॉसिंग की बंदी से काफी देर तक जाम लग जाता है, जिसके चलते स्थानीय लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अक्तूबर 2020 के विधानसभा उप चुनाव में रेलवे ओवरब्रिज बनाने का एलान किया था। लेकिन, अभी तक निर्माण शुरू नहीं हो पाया है। यह मुद्दा भी प्रत्याशियों के जहन से काफी दूर नजर आ रहा है।

नगर का सबसे बड़ा मुद्दा जलभराव
नगर में सबसे बड़ा मुद्दा जलभराव का है। यहां से सदर विधानसभा सीट पर विधायक कोई भी रहा हो, यहां के लोगों को जलभराव से निजात आज तक नहीं मिल पाई। चुनाव लड़ने से पहले प्रत्याशी जनता से बड़े-बड़े वादे तो करते हैं। लेकिन, स्थिति जस की तस ही रहती है। बरसात के दिनों में शहर में घुटनों-घुटनों तक पानी भर जाता है। पानी निकासी के लिए करोड़ों रुपaये खर्च किए गए। लेकिन, आज तक समस्या का हल नहीं निकल सका। चुनाव में भी जलभराव का मुद्दा खास रहता है। हर उम्मीदवार यह ही भरोसा दिलाता है कि इस समस्या से निजात दिलाई जाएगी। लेकिन, इस बार सबसे बड़ा यह मुद्दा गुम नजर आ रहा है।

नहीं शुरू हो सकी चीनी मिल
सरकारें बदलती गईं। लेकिन, किसी ने भी मिलों की सुध नहीं ली। साढ़े चार साल भाजपा सरकार के भी गुजर गए पर जनप्रतिनिधियों ने उनके संचालन के लिए कोई आवाज नहीं उठाई। जोया रोड पर स्थित चीनी मिल को बहुजन समाज पार्टी की सरकार के कार्यकाल में चलाने के बजाय बेच दिया गया था। इसको लेकर किसानों ने बड़ा आंदोलन किया था मगर कोई हल नहीं निकला था। समाजवादी पार्टी ने भी उसका संचालन कराने के लिए कोई सक्रियता नहीं दिखाई। बार-बार आवाज उठती रही, किन्तु सरकारी नुमाइंदे सोते रहे। भाजपा सरकार में चीनी मिल को चलाने के लिए कई बार आवाज उठाई गई। इसके बावजूद किसी ने उसे शुरू कराने की पहल नहीं की।

ये भी पढ़ें : विधानसभा चुनाव 2022 : सियासी दांव पर मंत्री, पूर्व मंत्री और सांसद की प्रतिष्ठा