बदला अंदाज : सोशल मीडिया पर बढ़ रही प्रत्याशियों की सक्रियता

रामपुर,अमृत विचार। इस बार विधानसभा के चुनाव में प्रचार का अंदाज पूरी तरह बदल गया है। तमाम प्रत्याशी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। जनसभाओं पर रोक लगने के बाद मतदाताओं तक अपना संदेश पहुंचाने की तड़प है। कोई घोड़े पर सवार होकर तो कोई पैदल ही वोट मांग रहा है। व्हाट्सएप के माध्यम से एक …
रामपुर,अमृत विचार। इस बार विधानसभा के चुनाव में प्रचार का अंदाज पूरी तरह बदल गया है। तमाम प्रत्याशी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। जनसभाओं पर रोक लगने के बाद मतदाताओं तक अपना संदेश पहुंचाने की तड़प है। कोई घोड़े पर सवार होकर तो कोई पैदल ही वोट मांग रहा है। व्हाट्सएप के माध्यम से एक दूसरे पर जुबानी वाण खूब चलाए जा रहे हैं।
इसके अलावा कुछ प्रत्याशियों ने मोबाइल के माध्यम से उन्हें वोट देने की अपील करना शुरू कर दी है। वक्त-बेवक्त वोट देने के लिए आने वाली फोन कॉल के कारण मतदाता झुंझलाने लगे हैं। चुनाव आयोग द्वारा शिकंजा कसने के बाद प्रत्याशी खासे परेशान हैं। चुनाव पर खर्च किए जा रहे पैसे का भी प्रशासन हिसाब रख रहा है। इससे प्रत्याशियों में काफी खौफ है। वे फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। जनसभाओं के माध्यम से मतदाताओं को रिझाने पर पाबंदी के बाद प्रत्याशी पत्रकार वार्ता कर अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
जनसभाएं लोगों के लिए चुनाव में तड़का लगाने का काम करती थीं। कुछ नेता तकरीरों से चुनाव का रुख पलटने का माद्दा रखते थे। यहां ही नहीं, यूपी के अन्य जिलों में भी उनकी तकरीरें चुनाव की दशा-दिशा तय कर देती थीं। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों को महज एक हजार लोगों की मीटिंग करने अनुमति दी है। इससे प्रत्याशियों को बात बनते नहीं दिख रही। इसलिए वह मन की बात कहने के लिए सोशल मीडिया को ही हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
40 लाख रुपये तक खर्च कर सकते हैं प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव 2022 में प्रत्याशी अधिकतम 40 लाख रुपये तक खर्च कर सकते हैं। इसमें वाहनों पर होने वाला खर्च, होर्डिंग्स, बैनर, बिल्ले, खाना-पीना समेत चुनाव के दौरान होने वाला हर खर्च शामिल है।
चुनाव आयोग के शिकंजे से परेशान प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा शिकंजा कसे जाने पर प्रत्याशी खासे परेशान हैं। एक नामचीन पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी ने बताया कि एक हजार लोगों की मीटिंग कराने से क्या लाभ होगा। 10 हजार लोगों की जनसभा कराएं या एक हजार लोगों की जनसभा कराई जाए। सभी पर एक जैसा खर्च आएगा और पर्यवेक्षक हर चीज को नोट कर रहे हैं।
व्हाट्सएप ग्रुपों पर प्रचार की मारामारी
सोशल मीडिया पर इन दिनों यू ट्यूब चैनल्स की बाढ़ आई हुई है। प्रतिदिन कुकुरमुत्ते की तरह नए-नए नामों से ग्रुप दिखाई पड़ रहे हैं, जिनमें टीवी चैनलों से मिलते-जुलते नाम वाले यू ट्यूब चैनल्स की चुनाव संबंधी क्लिप्स दिन भर पोस्ट होती रहती हैं। पत्रकार वार्ता हो या फिर कोई अन्य कार्यक्रम वहां पर इन चैनलों में काम करने वालों की भीड़ दिखाई देती है।
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