चुनाव सुधार की पहल

देश में चुनाव सुधार की मांग समय-समय पर उठती रही है। सोमवार को सरकार ने चुनाव अधिनियम संशोधन विधेयक पेश किया। विपक्ष के भारी हंगामे के बीच विधेयक लोकसभा में पारित हो गया। विधेयक में मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि आधार और वोटर कार्ड …
देश में चुनाव सुधार की मांग समय-समय पर उठती रही है। सोमवार को सरकार ने चुनाव अधिनियम संशोधन विधेयक पेश किया। विपक्ष के भारी हंगामे के बीच विधेयक लोकसभा में पारित हो गया। विधेयक में मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि आधार और वोटर कार्ड को लिंक करने से फर्जी मतदाता पर लगाम लगेगी।
विपक्षी दलों ने कहा कि आधार कार्ड का वोटर कार्ड से लिंक करने की पहल उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है। यह पुत्तुस्वामी बनाम भारत सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ है। देश में मजबूत डाटा सुरक्षा कानून नहीं है और अतीत में डाटा के दुरुपयोग के मामले भी सामने आए हैं।
आधार को आवास के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, नागरिकता के लिए नहीं। इसकी वजह यह है कि 2015 में उच्चतम न्यायालय ने आधार अधिनियम की वैधता पर फैसला देते हुए कहा था कि आधार का इस्तेमाल केवल कल्याणकारी योजनाओं का फायदा लेने और अन्य सुविधाओं के लिए ही किया जाएगा। इसके बाद शीर्ष न्यायालय में एक और याचिका दायर की गई कि क्या आधार मामले में निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है और क्या निजता एक मौलिक अधिकार है?
न्यायालय ने यह भी कहा कि निजता का अधिकार वह अधिकार है, जिसे संविधान में गढ़ा नहीं गया बल्कि मान्यता दी है। निजता को केवल सरकार से ही खतरा नहीं है बल्कि गैर-सरकारी तत्त्वों द्वारा भी इसका हनन किया जा सकता है। अतः सरकार डेटा संरक्षण का पर्याप्त प्रयास करे। गौरतलब यह भी है कि उच्च न्यायालय ने 2019 में गोपनीयता को मौलिक अधिकार घोषित करते हुए सरकार से डाटा सुरक्षा के लिए कानून बनाने के लिए कहा था। जिसे अब मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है।
हालांकि सरकार के इस फैसले को फर्जी मतदान रोकने के लिए एक बड़ा कदम बताया जा रहा है। परंतु विपक्ष के आरोपों को देखते हुए कह सकते हैं कि सरकार ने इसके जरिए विपक्ष को संसद की कार्रवाई में अड़ंगा डालने का एक और मौका दे दिया है। चुनाव सुधार संबंधी विधेयक से अनुमान लगा सकते हैं कि सरकार की इच्छाशक्ति मजबूत है।
जानकारों के मुताबिक राजनीतिक पारदर्शिता से सरकार पहले आधार अधिनियम में संशोधन व डाटा प्रोटेक्शन बिल लाकर विपक्ष से आरोप लगाने का मौका छीन सकती थी। सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल मौजूद है लेकिन सत्ता-विपक्ष के बीच पहले से चल रहे गतिरोध के साथ चुनाव सुधार बिल भी मतभेद का एक नया अध्याय जोड़ सकता है।