Bareilly News: रहमानी मियां ने रखी थी आला हजरत खानदान में राजनीति की नींव

Bareilly News: रहमानी मियां ने रखी थी आला हजरत खानदान में राजनीति की नींव

मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार। सुन्नियत और बरेलवी मुसलमानों का मरकज कही जाने वाली दरगाह आला हजरत को यूं तो हमेशा उसके फतवों और मदरसों के लिए पूरी दुनिया में जाना गया। आला हजरत इमाम अहमद रजा खां द्वारा लिखी गई मजहबी किताबों और फतवों के जरिए पूरी दुनिया में बरेलवी मसलक का प्रचार प्रसार हुआ, लेकिन समय-समय खानदान की कोई न कोई शख्सियत राजनीति से जुड़ी रही। 

यही वजह है कि मुस्लिम वोटों में दरगाह आला हजरत और इस खानदान से जुड़े लोगों के रुख का प्रभाव हमेशा से रहा। आला हजरत खानदान से सीधे तौर पर चुनाव में उतरकर रहमानी मियां ने पहली बार सियासत की नींव रखी थी।

बात वर्ष 1967 की है, आम चुनाव में बरेली सीट पर कांग्रेस के लिए काफी अहम था, क्योंकि (1962) के चुनाव में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के कारण केंद्र सरकार में रक्षा राज्य मंत्री रहे सतीश चंद्र जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाए और बीआर सिंह (आछू बाबू) के रूप में भारतीय जनसंघ का दीपक पहली बार जल उठा। अपनी इस हार को जीत के में बदलने के लिए दोबारा चुनाव मैदान में उतरे सतीश चंद्र के आगे रहमानी मियां यानी रेहान रजा खान दीवार बनकर खड़े हो गए। 

मुसलमानों के अधिकारों और उनके मूलभूत मुद्दों की बात करने वाले रहमानी मियां ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में रहमानी मियां को 69399 वोट मिले। उन्होंने करीब 25 प्रतिशत मत प्राप्त किए। वहीं, सतीश चंद्र को 72050 यानी करीब 26.76 प्रतिशत वोट मिले थे।

नतीजा यह हुआ कि भारतीय जनसंघ के बीबी लाल 112698 यानी करीब 41.85 प्रतिशत वोट पाकर विजयी हुए। इसके बाद रहमानी मियां कांग्रेस से विधान परिषद के नामित सदस्य भी रहे और सक्रिय राजनीति करते रहे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के बेहद करीबियों में भी गिना जाता था।

आईएमसी की बागडोर संभालने से पहले उनके बेटे मौलाना तौकीर रजा खां ने भी बदायूं की बिनावर और बरेली की कैंट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई। आईएमसी मीडिया प्रभारी मुनीर इदरीसी बताते हैं कि अपने पिता रहमानी मियां द्वारा बनाई गई इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) की बागडोर वर्ष 2000 में तौकीर मियां ने अपने हाथ में ली थी।

आबिदा बेगम के खिलाफ लड़े थे मन्नानी मियां
आला हजरत खानदान से सीधे तौर पर चुनावी मैदान में रहमानी मियां के बाद कोई आया तो वह मन्नानी मियां ( मन्नान रजा खां) रहे। वर्ष 1989 में वह बरेली लोकसभा सीट से तत्कालीन कांग्रेस सांसद और पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम आबिदा अहमद के खिलाफ चुनावी मैदान में कूद पड़े। इस चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार जीत गए और आबिदा बेगम की हार हुई। हालांकि मन्नानी मियां बहुत अधिक वोट हासिल नहीं कर पाए। उन्हें 22876 वोट मिले। वह 5.47 प्रतिशत मत पाकर चौथे स्थान पर रहे।

दरगाह से जुड़े लोगों को दिए जाते रहे हैं मंत्री पद
राजनीतिक पार्टियों को खानदान के किसी न किसी सदस्य को समय-समय पर समर्थन दिया जाता रहा। सरकारें बनने के बाद पार्टियों की तरफ से खानदान के सदस्यों को अलग-अलग समय पर पदों से नवाजा गया। सपा सरकार में आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां, दरगाह से जुड़े और दरगाह प्रमुख सुब्हानी मियां के करीबी रहे आबिद रजा खां को दर्जा राज्यमंत्री बनाया गया। बसपा सरकार में सज्जादानशीन अहसन मियां को दर्जा राज्यमंत्री बनाया गया।

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