जब दंगों से लाल हो गई थी बंगाल की धरती, छह हजार लोगों ने गंवाई थी जान

जब दंगों से लाल हो गई थी बंगाल की धरती, छह हजार लोगों ने गंवाई थी जान

नई दिल्ली। एक तरफ जब पूरा भारत आजाद होने का जश्न मना रहा था, वहीं दूसरी तरफ उस वक्त भारत का एक हिस्सा हिंदू और मुस्लिम दंगों की आग में जल रहा था। देश के बंटवारे के समय पंजाब में हुए खूनी दंगों के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन आजादी से ठीक एक …

नई दिल्ली। एक तरफ जब पूरा भारत आजाद होने का जश्न मना रहा था, वहीं दूसरी तरफ उस वक्त भारत का एक हिस्सा हिंदू और मुस्लिम दंगों की आग में जल रहा था। देश के बंटवारे के समय पंजाब में हुए खूनी दंगों के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन आजादी से ठीक एक बरस पहले 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में हुए सांप्रदायिक दंगों ने बंगाल की धरती को लाल कर दिया।

यहीं कारण था कि आजादी के उस जश्न में महात्मा गांधी भी शामिल नहीं पाए और उस दौरान वे इस दंगे को शांत करने का प्रयास कर रहे थे। दंगा इतना खतरनाक था कि कुछ ही घंटे में हजारों लोगों के प्राण चले गए थे।

मुस्लिम लीग ने इस दिन को डायरेक्ट एक्शन डे के तौर पर मनाने का ऐलान किया, जिसके बाद पूर्वी बंगाल में दंगों की आग दहक उठी। इन दंगों की शुरूआत पूर्वी बंगाल के नोआखाली जिले से हुई थी और 72 घंटों तक चले इन दंगों में छह हजार से अधिक लोग मारे गए। 20 हजार से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए और एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए।

क्यों भड़का था दंगा?
भारत की आजादी से पहले हुए इस दंगे की बुनियाद भी भारत-पाकिस्तान का विभाजन था। कहा जाता है कि जब मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनाने की आखिरी हद तक पहुंचकर डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी, इसके बाद दंगे भड़कने शुरू हो गए थे। इसमें सीधे कार्रवाई के फरमान के बाद दंगे भड़के और हिंदुओं ने निग्रह मोर्चा बनाकर बराबरी की प्रतिक्रिया दी। मुस्लिम बहुल नोआखाली जिले में हिंदुओं का कत्लेआम होने लगा।

कुछ दिन तक इस जगह के हालात के बारे में लोगों को पता नहीं चला, फिर जब जानकारी मिली तो अन्य जगहों पर भी दंगे भड़कने शुरू हो गए। फिर पाकिस्तान की मांग के साथ ही दंगे और ज्यादा बढ़ गए। कई लोगों की हत्या कर दी गई और महिलाओं के साथ अत्याचार चरम पर पहुंच गया।

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