UP Election 2022 : सियासी दुशासन भूले लोकतंत्र की मर्यादा

UP Election 2022 : सियासी दुशासन भूले लोकतंत्र की मर्यादा

विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। विधानसभा चुनाव में सियासी महाभारत के दुशासन लोकतंत्र की मर्यादा का चीरहरण कर रहे हैं। शब्दों के तीर छोड़ने में नैतिकता का रत्ती भर ध्यान नहीं है। आरोप-प्रत्यारोप में राजनेता शिष्टाचार को ताक पर रख बैठे हैं। चुनाव आयोग की संहिता भी पैरों तले रौंदने से परहेज नहीं किया जा रहा है।दशकों …

विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। विधानसभा चुनाव में सियासी महाभारत के दुशासन लोकतंत्र की मर्यादा का चीरहरण कर रहे हैं। शब्दों के तीर छोड़ने में नैतिकता का रत्ती भर ध्यान नहीं है। आरोप-प्रत्यारोप में राजनेता शिष्टाचार को ताक पर रख बैठे हैं। चुनाव आयोग की संहिता भी पैरों तले रौंदने से परहेज नहीं किया जा रहा है।दशकों पहले राजनीति में यदि द्वंद्व था तो शिष्टाचार भी अहम था। वक्त के साथ पुराने नेता राजनीति में हाशिये पर आए तो नई पौध किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करने की होड़ लगा बैठी।

राजनीति के गलियारों में गलबहियां डालने वाले नेता चुनाव की घोषणा होते ही एक दूसरे पर शब्दों के ऐसे तीर छोड़कर जनता को अपने पाले में करने की ऐड़ी चोटी लगाते हैं मानो वह एक दूसरे के जानी दुश्मन हों। चुनावी सभाओं व रैलियों में तो शब्दों के प्रहार से विरोधी का किला ध्वस्त कर खुद के दल को प्रचंड बहुमत दिलाने के हर कीमत पर दांव आजमाते हैं। इस जोर आजमाइश में नेता नैतिकता का तकाजा भूल बैठे हैं। एक दूसरे पर सियासी हमला करते वक्त लोकतंत्र की मर्यादा का यूं चीरहरण करते हैं कि उनके सामने महाभारत काल का दुशासन भी शर्म खा जाए।

चुनाव प्रचार प्रसार में निर्वाचन आयोग की संहिता भी पैरों व वाहनों के पहिए के तले रौंदी जा रही है। दलों के सूरमा संहिता की धज्जियां उड़ाने में मानो अपनी शेखी समझते हैं। सरकारी अमला भी संहिता का पालन कराने को पारदर्शिता नहीं बरत रहा। वह न नेताओं की जुबां पर लगाम लगा पा रहा है और न नियम तोड़ने वालों पर ब्रेक। इससे सियासी रंग वक्त के साथ और बदरंग होता जा रहा है।

कभी शिष्टाचार में अपनों से अधिक विरोधी को देते थे महत्व : राजनीति शिष्टाचार अब भले ही गुजरे जमाने की बात हो गई हो लेकिन इसे याद हर कोई करता है। कांग्रेस और भाजपा की अदावत में सदन से लेकर सड़क तक कांग्रेस नेता चाहे जैसी भी तल्खी दिखाते थे लेकिन भाजपा के मर्यादा पुरुष कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की कद्र जितना भाजपाई करते थे उससे तनिक भी कम कांग्रेसी नहीं। चुनाव प्रचार में यदि कभी राजनेता आमने-सामने पड़ जाएं तो एक दूसरे के गले लग यूं दिखते थे मानो उनमें कभी कोई बैर व गिला शिकवा हो ही नहीं। मगर अब दौर बदला तो सियासत का रंग भी गिरगिटी हो गया। यदि कुछ है तो बस सत्ता की भूख और कुर्सी की छटपटाहट।

विधान सभा चुनाव में मुरादाबाद में दर्ज हैं सिर्फ आठ मुकदमे
आदर्श आचार संहिता केवल कागजी रह गई है। इसके पालन में न तो दल व नेता गंभीर हैं और न उल्लंघन पर तंत्र सख्त। चुनावी शोर में हर चौक चौराहे पर संहिता तार-तार हो रही है, मगर 18वीं विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में केवल आठ मुकदमे आचार संहिता उल्लंघन के दर्ज हैं। कांठ और सोनकपुर में आम जन के खिलाफ मुकदमा दर्ज हैं। ठाकुरद्वारा थाने में भाजपा प्रत्याशी अजय प्रताप व उनके समर्थकों के खिलाफ मामला दर्ज है। भोजपुर में सपा के नासिर व पीपलसाना में भी दलीय राजनेता के खिलाफ मामला दर्ज है। बावजूद इसके नियमों का खौफ किसी में नहीं है, क्योंकि राजनेता आचार संहिता उल्लंघन को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं।

ये भी पढ़ें : पश्चिम यूपी में बंटे हैं किसानों की एकजुट करने वाली खाप के वोट

ताजा समाचार

बाराबंकी: अध्यक्ष समेत विभिन्न पदों के लिए 12 नामांकन, 28 अप्रैल को 218 वकील करेंगे मतदान  
Human Trafficking :  मां-बाप ने 5 लाख में बेची नाबालिग बेटी, खरीदार ने दुष्कर्म के बाद छोड़ा... तब परिजनों ने किया तिरस्कार
क्या जुड़वां बच्चों को एक ही चीज से एलर्जी हो सकती है? जानिए क्या कहते हैं शोधकर्ता
Ram Mandir Suraksha : अत्याधुनिक तकनीक से लैस होगा राममंदिर, सुरक्षा व्यवस्था होगी चाक-चौबंद 
Kanpur में युवक से 6.70 लाख ठगे: रिश्तेदार ने उमरा कराने के नाम पर दिया झांसा, जानिए पूरा मामला
16 रुपये के सहयोग से 50 लाख तक की मदद : टीचर्स सेल्फ केयर टीम बनी दिवंगत शिक्षकों का मजबूत सहारा