तीसरा नवरात्र: जानें मां चंद्रघंटा की कथा, भोग और पूजा विधि

तीसरा नवरात्र: जानें मां चंद्रघंटा की कथा, भोग और पूजा विधि

नवरात्रि के तीसरे दिन मां के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाली देवी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है इनका स्वरुप बहुत निराला है। मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार …

नवरात्रि के तीसरे दिन मां के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाली देवी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है इनका स्वरुप बहुत निराला है। मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा रखा हुआ है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है, जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं।

इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। माना जाता है कि मां की कृपा से साधक को संसार के सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। 9 अक्टूबर 2021 को तृतीया और चतुर्थी तिथि की पूजा एक ही दिन की जाएगी। इस दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा और मां कुष्मांडा स्वरूप की पूजा होगी।

पूजा विधि
नवरात्रि के तीसरे दिन माता दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की​ विधि विधान से इस मंत्र ” ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः ” का जाप कर आराधना करनी चाहिए। इसके बाद मां चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत्, गंध, धूप, पुष्प आदि अर्पित करें। आप देवी मां को चमेली का पुष्प अथवा कोई भी लाल फूल अर्पित कर सकते हैं। साथ ही साथ, दूध से बनी किसी मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ और दुर्गा आरती का गान करें।

मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

भोग
मां को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।

मां चंद्रघंटा की कथा
मां चन्द्रघण्टा असुरों के विनाश हेतु मां दुर्गा के तृतीय रूप में अवतरित होती है। जो भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाती है। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। आप सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली है। जिससे समस्त शात्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति आप ही हैं। दुर्गा भव सागर से उतारने वाली भी आप ही है। आपका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है, तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने उस पर प्रहार कर दिया।

यह बड़े आश्चर्य की बात है कि जब देवी का वही मुख क्रोध से युक्त होने पर उदयकाल के चन्द्रमा की भांति लाल और तनी हुई भौहों के कारण विकराल हो उठा, तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत निकल गये, यह उससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात है, क्योंकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला कौन जीवित रह सकता है। देवी आप प्रसन्न हों। परमात्मस्वरूपा आपके प्रसन्न होने पर जगत् का अभ्युदय होता है और क्रोध में भर जाने पर आप तत्काल ही कितने कुलों का सर्वनाश कर डालती हैं, यह बात अभी अनुभव में आयी है, क्योंकि महिषासुर की यह विशाल सेना क्षण भर में आपके कोप से नष्ट हो गयी है।

कहते है कि देवी चन्द्रघण्टा ने राक्षस समूहों का संहार करने के लिए जैसे ही धनुष की टंकार को धरा व गगन में गुजा दिया वैसे ही मां के वाहन सिंह ने भी दहाड़ना आरम्भ कर दिया और माता फिर घण्टे के शब्द से उस ध्वनि को और बढ़ा दिया, जिससे धनुष की टंकार, सिंह की दहाड़ और घण्टे की ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाएं गूंज उठी। उस भयंकर शब्द व अपने प्रताप से वह दैत्य समूहों का संहार कर विजय हुई।

माता चंद्रघंटा पसंद है ये खास रंग
मां चंद्रघंटा को भूरा रंग यानि ग्रे रंग पसंद है। इसलिए भक्त मां काे प्रसन्न करने के लिए यह रंग धारण कर सकते हैं।

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