अयोध्या में एक से एक हुए साहित्य और हिंदी के साधक, लेखन विधा से राष्ट्रभाषा के लिए सदा रहे समर्पित

अयोध्या में एक से एक हुए साहित्य और हिंदी के साधक, लेखन विधा से राष्ट्रभाषा के लिए सदा रहे समर्पित

अयोध्या। अपने-अपने साहित्य के सृजन से जिले ही नहीं अपितु देश – प्रदेश में हिंदी को जीवन्तता प्रदान करने वाले यहां एक से एक बढ़कर साधक हैं। यह साधक अपनी – अपनी लेखन विधा से राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए सदा से समर्पित रहे। इनके साहित्य सृजन की भाषा, वर्तनी, वाक्य विन्यास और विचारों की संतुलिता …

अयोध्या। अपने-अपने साहित्य के सृजन से जिले ही नहीं अपितु देश – प्रदेश में हिंदी को जीवन्तता प्रदान करने वाले यहां एक से एक बढ़कर साधक हैं। यह साधक अपनी – अपनी लेखन विधा से राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए सदा से समर्पित रहे। इनके साहित्य सृजन की भाषा, वर्तनी, वाक्य विन्यास और विचारों की संतुलिता अद्भुत है।

इन विभूतियों ने हिंदी को न केवल नया आयाम दिया बल्कि समाज को हिंदी के प्रति जागरूक भी किया। हिंदी दिवस पर परिचय कराते हैं ऐसे ही जिले के ऐसे तीन साधकों से जिन्होंने हिंदी को वास्तव में जन – जन की माथे की बिंदी बनाने के लिए जीवन समर्पित कर रखा है।

डॉ. देवीसहाय पाण्डेय

अयोध्या निवासी डॉ देवीसहाय पाण्डेय ‘दीप’ का जन्म 30 जून 1999 में हुआ। श्री पांडेय वर्ष 1960 से लगातार अध्यापन एवं साहित्यिक सृजन करते आ रहे हैं। वर्तमान 82 की उम्र में भी वे करीब 8 घण्टे प्रतिदिन साहित्य सृजन करते हैं। वेद मर्मज्ञ डॉ दीप ने हिन्दी व संस्कृत में महाकाव्य, खण्डकाव्य, कहानी, कविता, एकांकी, उपन्यास, बालगीत, वेद, गीता, योग, वाल्मीकीय रामायण, रामचरितमानस आदि पर 30 पुष्ट ग्रन्थों से अधिक रचना की है।

इसके अतिरिक्त चारों वेदों के सभी मन्त्रों का शीर्षक सहित अन्वयपरक शब्दार्थ, हिन्दी में अनुवाद तथा पद्यानुवाद किया है। उनका ऋग्वेद दस खण्डों में चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित हो चुका है। शेष तीन वेद प्रकाशनाधीन है। सम्भवतः एक व्यक्ति द्वारा चारों वेदों के सभी मन्त्रों की छन्द सहित हिन्दी व्याख्या प्रथम बार किया गया है।

इसके पाण्डुलिपि का वजन 80 किलो के करीब होगा। वर्तमान में श्री पांडेय शीयवैभवम् संस्कृत साहित्य की रचना कर रहे हैं। साथ ही वेद-जिज्ञासुओं के लिए वेदविभा यू ट्यूब चैनल के माध्यम से प्रतिदिन वेदमन्त्रों की सरल व्याख्या प्रसारित कर रहे। वे निरन्तर विद्यानुरागियों को वेद, रामायण, योग गीता व भारतीय संस्कृति आदि की भी शिक्षा देते हैं।

अयोध्या की साहित्य विरासत को संजो रहे हैं डॉ. रामानंद शुक्ल

अयोध्या में साहित्य की धारा सरयू और सुरसरि के समान सतत प्रवाहित होटी रहती है। शीर्ष के हिन्दी- सेवियों से यह धरती ऊर्वर है। इन्हीं में एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ रामानंद शुक्ल अयोध्या की साहित्यिक विरासत को सहेजने में निरन्तर मनोयोग से मशगूल हैं। संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में उनकी सक्रियता लाजवाब है। उनके अब तक लगभग दो दर्जन ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।

डॉ. शुक्ल गद्य-पद्य दोनों पर पूरी तरह से साधिकार लिखते हैं। हिन्दी की विविध विधाएँ डॉ. शुक्ल के शब्द -शिल्प से सुसज्जित हैं। बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी भावयित्री एवं कारयित्री प्रतिभा से सम्पन्न अध्यात्म के भी गम्भीर अवगाहक हैं। बेहद सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी डॉ. शुक्ल के अयोध्या पर लिखे गए विभिन्न लेख न केवल लोगों में चेतना जागृत करते हैं बल्कि उन्हें सहेज कर रखने को भी बाध्य करते हैं।

सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डॉ. शुक्ल का आध्यात्मिक स्वरूप एवं चिंतन अपनी विशिष्ट छाप छोड़ता है। उनके आवास कालिकुलालय का स्वरूप किसी आध्यात्मिक चेतना केंद्र से कम नहीं है। ऐसे विशिष्ट साहित्य साधक की साधना समाज के लिए प्रेरणा समान है।

सहज – सरल रचनाओं की छाप छोड़ गए डॉ भानुप्रसाद पाण्डेय

सहज – सरल और बोधगम्य रचनाओं से समाज में साहित्य सृजन की छाप छोड़ने वाले डा. भानु प्रसाद पांडेय कुछ दिन पूर्व नहीं रहे। अपने जीवनकाल में श्री पांडेय ने अपनी रचनाओं से साहित्य को नई दिशा प्रदान की।

डॉ. भानुप्रसाद पाण्डेय अयोध्या की धरती के अविज्ञापित रचनाकार रहे। उनकी लगभग तीन दर्जन कृतियाँ उनकी प्रगल्भ प्रतिभा से पाठकों का सरोकार कराती हैं। कहानी-गीत, कविता -लोकगीत, व्यंग्य-नाटिका तथा बाल-साहित्य से सन्दर्भित आपकी छोटी-बड़ी सभी रचनाएँ-कृतियाँ सहज-सरल एवं बोधगम्य हैं।

हिन्दी-साहित्य में डॉ. पाण्डेय का योगदान अतुलनीय एवं अविस्मरणीय है। लेखन में उनकी भाषा सदा प्रवाहमय रही है। कहानी हो कविता हो या फिर नाटक हर लेखन की विधा अपने आप में एक विशिष्टता लिए है। आज भी जब लोग उनकी रचनाएं पढ़ते हैं तो उनकी दृष्टि के सामने डा पांडेय का विशिष्ट व्यक्तित्व छाया रहता है।