वो कांड जिसने मुलायम-मायावती को बनाया दुश्मन, अखिलेश ने 24 साल बाद तोड़ी अदावत की दीवार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का आज (सोमवार, 10 अक्टूबर) निधन हो गया। सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (82) ने गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल सोमवार सुबह करीब सवा 8 बजे आखिरी सांस ली। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन पर …
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का आज (सोमवार, 10 अक्टूबर) निधन हो गया। सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (82) ने गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल सोमवार सुबह करीब सवा 8 बजे आखिरी सांस ली। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन पर बिहार सरकार ने 10 अक्टूबर को एक दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया है।
मुलायम सिंह यादव पांच दशकों से भी लंबा राजनीतिक जीवन जीकर अब अलविदा कह चुके हैं। 8 बार लगातार विधायक, 7 बार लगातार सांसद, देश का रक्षा मंत्री, तीन-तीन बार यूपी जैसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री, मुलायम सिंह यादव को भारतीय राजनीति में हर ख्याति मिली। लेकिन कुछ वाकये ऐसे भी रहे जिन्होंने उनके खाते में अपयश भी बंटोरे। ऐसा ही एक वाकया था 2 जून 1995 का यूपी का गेस्ट हाउस कांड। वह कांड जिसकी पीड़िता मायावती बनीं। वह कांड जो हमेशा-हमेशा के लिए देश की राजनीति की किताब में एक बुरे अध्याय के रूप में दर्ज हो गया।
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में साल 1995 और गेस्ट हाउस कांड, दोनों बेहद अहम हैं। उस दिन ऐसा कुछ हुआ था जिसने न केवल भारतीय राजनीति का बदरंग चेहरा दिखाया बल्कि मायावती और मुलायम के बीच वो खाई बनाई जिसे लंबा अरसा भी नहीं भर सका।
दरअसल, साल 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई और इसके अगले साल भाजपा का रास्ता रोकने के लिए रणनीतिक साझेदारी के तहत बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाया।
सपा और बसपा ने 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा। सपा अपने खाते में से 109 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर हाथी का दांव चला। लेकिन दोनों की ये रिश्तेदारी ज्यादा दिन नहीं चली। साल 1995 की गर्मियां दोनों दलों के रिश्ते खत्म करने का वक्त लाईं। इसमें मुख्य किरदार गेस्ट हाउस है।
दरअसल, 1993 में सपा बसपा गठबंधन के बाद मुलायम सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने। मगर जून 1995 में तालमेल सही न बैठ पाने पर बसपा ने गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी। अब मुलायम सिंह अल्पमत हो गए। सरकार बचाने के लिए सपाई आपा खो बैठे। समर्थन वापसी से भड़के सपा कार्यकर्ता लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस पहुंचे।
यहां कमरा नंबर एक में मायावती रुकी हुई थीं। सपा कार्यकर्ताओं ने कमरे को घेर लिया और हथियारों से लैस लोगों ने मायावती को गंदी गालियों समेत जाति सूचक शब्द कहे। इतना ही नहीं बसपा के कार्यकर्ताओं सहित विधायकों पर भी हमला कर दिया था।
यूपी की राजनीति में गेस्ट हाउस कांड ऐसी घटना है जिसने मुलायम और मायावती को एक दूसरे का राजनीतिक जानी दुश्मन बना दिया था। दोनों एक दूसरे को देखना तो दूर नाम लेना भी पसंद नहीं करते थे। कभी एक दूसरे के सामने आना भी नहीं चाहते थे।
इसी घटना के बाद मुलायम और मायावती में अदावत दो नेताओं की नहीं बल्कि दो दुश्मनों जैसी बढ़ गई थी। दोनों एक दूसरे के आमने सामने भी नहीं आते थे। न कभी एक दूसरे का नाम सार्वजनिक रूप से लेते थे। गेस्ट हाउस कांड के बाद कोई नहीं कह सकता था कि मुलायम सिंह यादव और मायावती का फिर कभी आमना-सामना हो सकता है। लेकिन संयोग कुछ भी करा सकता है। एक फ्लाइट में मुलायम सिंह और मायावती का आमना सामना हो गया। दोनों की सीट भी आसपास थी।
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तब मायावती के सुरक्षा अधिकारी पदम सिंह ने सपा नेताओं से बात की और पहले मुलायम सिंह को फ्लाइट में बैठाने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद मायावती आईं और अपनी सीट पर बैठ गईं। दोनों नेताओं ने एक दूसरे को पूरे रास्ते नजर उठाकर भी नहीं देखा। यहां तक कि अखबार उठाकर पढ़ने में व्यस्त रहे ताकि गलती से भी नजरें न मिल जाएं।
पूरे रास्ते भले ही दोनों ने एक दूसरे से नजर नहीं मिलाई लेकिन फ्लाइट लैंड करने के बाद गलियारे में दोनों एक दूसरे के फिर आमने सामने हो गए। इस पर मुलायम ने हाथ जोड़कर मायावती से कहा कि बहनजी पहले आप जाइये। इस पर मायावती ने कहा कि नहीं नहीं आपकी सीट आगे है, पहले आप जाइये। इस पर मुलायम ने पूरे सम्मान के साथ कहा कि आप मेरी बहन हैं, इसलिए पहले आप जाइये और मुलायम के आग्रह पर पहले मायावती फ्लाइट से नीचे उतरीं।
गेस्ट हाउस कांड के करीब ढाई दशक बाद मायावती और मुलायम के बीद जमी रिश्तों की बर्फ 2019 में पिघली। तब अखिलेश यादव सपा के अध्यक्ष बन चुके थे। मोदी का मुकाबला करने के लिए अखिलेश की सपा ने मायावती की बसपा ने गठबंधन किया। मैनपुरी में चुनाव प्रचार के लिए मुलायम सिंह यादव भी मंच पर उतरे और मायावती के साथ साझा रैली को संबोधित किया।
2019 में अखिलेश ने तोड़ी दीवार
मुलायम सिंह यादव और मायावती के बीच यह खाई ऐसी बनी कि फिर अगले 24 साल दलित-ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिशें परवाह नहीं चढ़ पाई। लेकिन 24 साल बाद जब 2019 के लोक सभा चुनाव होने वाले थे, तो अखिलेश यादव ने भाजपा से मुकाबले के लिए एक बार फिर मायावती को मना लिया। और सपा-बसपा ने करीब 26 साल मिलकर चुनाव लड़ा। हालांकि इन चुनावों में इस बार यह गठजोड़ भाजपा को पटखनी नहीं दे पाया।
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