हल्द्वानी: श्रावण मास प्रारंभ… जानिए शिव पूजा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

हल्द्वानी: श्रावण मास प्रारंभ… जानिए शिव पूजा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड में श्रावण मास प्रारंभ एवं चंद्र माह के अनुसार श्रावण माह पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ हो गया है आज कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि है। दिनांक 16 जुलाई 2022 को सूर्य देव रात्रि 11:11 में कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिषाचार्या मंजू जोशी बता रही हैं खास महत्व… आज से दक्षिणायन प्रारंभ …

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड में श्रावण मास प्रारंभ एवं चंद्र माह के अनुसार श्रावण माह पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ हो गया है आज कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि है। दिनांक 16 जुलाई 2022 को सूर्य देव रात्रि 11:11 में कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिषाचार्या मंजू जोशी बता रही हैं खास महत्व…

आज से दक्षिणायन प्रारंभ संक्षेप में दक्षिणायन का अर्थ भी बताते हैं सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो वह उत्तरगामी होते हैं उसी तरह जब वह कर्क राशि में प्रवेश करते हैं दक्षिणगामी हो जाते हैं जिससे दक्षिणायन कहा जाता है।

शिव आराधना का धार्मिक महत्व
श्रावण माह में शिव पूजा करने के परिपेक्ष में धर्म ग्रंथों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं।
1 – धार्मिक मान्यतानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमे निकले विष से सृष्टि को सुरक्षित करने हेतु भगवान शिव ने विषपान किया। और उन्हें नीलकंठ महादेव भी कहा जाने लगा। भोलेनाथ के कंठ में हो रहे विष के ताप को कम करने हेतु सभी देवताओं द्वारा जल व ठंडी वस्तुओं का अभिषेक किया गया।

इसी कारण रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही व ठंडी वस्तुओं का विशेष स्थान हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि भगवान शिव के अधीन हो जाती हैं। अत: श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु हम सभी जातक रुद्राभिषेक,शिवार्चन, हवन, धार्मिक कार्य, दान,उपवास आदि करते है ।

2 -शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव और माता पार्वती भू-लोक पर निवास करते हैं। कहा जाता है राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया। देवी सती ने घोर तपस्या की तत्पश्चात उन्होंने हिमालय राज के घर पुत्री रूप में जन्म लिया जिनका नाम हिमालय राज ने पार्वती रखा।

देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप वरण करने हेतु भगवान शिव की वर्षों तक कठोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की और देवी पार्वती को अपनी भार्या के रूप में पुन: वरण करने के कारण भगवान शिव को श्रावण मास अत्यंत प्रिय हैं। मान्यता हैं कि श्रावण मास में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में रुद्राभिषेक का महत्व बताया गया हैं।

रुद्राभिषेक का वैज्ञानिक महत्व
श्रावण मास में शिवलिंग पर जल अर्पित करने के पीछे धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक कारण भी है। हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का रूप इसलिए दिया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।

शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी शिवलिंग पर दूध, जल एवं तरल पदार्थ अर्पित किए जाते हैं जिससे कि रेडियो एक्टिव रिएक्टर्स को समाप्त किया जा सके और वह शांत रहें। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले पदार्थ है। शिवलिंग पर चढ़ा जल भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।

भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। तभी हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।

श्रावण मास में दूध से शिव को अभिषेक किया जाता है व दूध, दही का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। जिससे कि मौसमानुसार शरीर में वात और कफ न बढे जिससे हम निरोगी रहे ऐसा आयुर्वेद विज्ञान में कहा गया है।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ।।

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