बरेली: श्राद्ध में भी श्मशानों में मोक्षयात्रा की राह ताक रहीं पोटलियों में रखी अस्थियां, देखें Video

बरेली: श्राद्ध में भी श्मशानों में मोक्षयात्रा की राह ताक रहीं पोटलियों में रखी अस्थियां, देखें Video

हरदीप सिंह ‘टोनी’ बरेली, अमृत विचार। अपने पूर्वजों के प्रति समर्पित श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) प्रारंभ हो गए हैं। शास्त्रों के अनुसार, अपना और अपने संतान के कल्याण के लिए श्राद्ध पक्ष के दौरान श्रद्धा भाव से पितरों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म एवं तर्पण अवश्य करनी चाहिए। सनातन धर्म मे पितृ पक्ष का महीना …

हरदीप सिंह ‘टोनी’
बरेली, अमृत विचार।
अपने पूर्वजों के प्रति समर्पित श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) प्रारंभ हो गए हैं। शास्त्रों के अनुसार, अपना और अपने संतान के कल्याण के लिए श्राद्ध पक्ष के दौरान श्रद्धा भाव से पितरों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म एवं तर्पण अवश्य करनी चाहिए। सनातन धर्म मे पितृ पक्ष का महीना पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए जाना जाता है, जिसमें पितरों को याद किया जाता है। मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होने वाले पितृ पक्ष में पितरों को श्राद्ध और पिंडदान करने से परिवार में सुख, समृद्वि और शांति आती है। परिवार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है। हिन्दू शास्त्रों, पुराणों और संहिताओं में बताया गया है कि जब तक पितृ ऋण से नहीं मिलती है, तब तक ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होते हैं।

वहीं यूपी के बरेली जनपद में मुख्यत: चार श्मशान स्थल सिटी श्मशान भूमि, कैंट श्मशान भूमि, गुलाबबाड़ी श्मशान भूमि और संजय नगर श्मशान भूमि हैं। यहां बीते करीब 2-3 वर्ष से अपनों की अस्थियां लेने कोई नहीं आया जिसकी वजह से इन श्मशान घाटों में अस्थियों के कलश का भरमार है। कोरोना काल से पहले साल भर में नाममात्र की अस्थियां ऐसी होती थीं, जो लोग लेने नहीं आते थे, वह भी अधिकतर ऐसे शवों की जिनकी पहचान नहीं हो पाती थी। लेकिन, कोरोनाकाल से इनकी संख्या में इजाफा हुआ।

श्मशान घाट के सेवादारों व ट्रस्ट के पदाधिकारियों का कहना है कि बहुत से अस्थि कलश श्मशान घाटों में इकठ्ठा हो गए हैं, जिन्हें कोई लेने नहीं आया। कोरोना काल के बाद से इसमें बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि, वर्ष में एक बार ही इन अस्थियों को हरिद्वार भेजवा दिया जाता है बावजूद इसके अस्थि कलशों की संख्या अब भी ज्यादा है।

जहां पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए हवन-पूजन, पाठ आदि करते हैं तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं मौत के बाद अपनों को ही भूल बैठे हैं। यही वजह है कि श्मशान घाट इन अस्थि कलशों की कोई सुध लेने वाला नहीं। नियमानुसार दाह संस्कार के तीसरे दिन स्वजन फूल (अस्थियां) लेने श्मशान में आते हैं। लेकिन 3 वर्ष का समय हो चुका है और श्मशानों में अपनों का इंतजार कर रही पोटलियों में रखी अस्थियां अब तक प्रवाहित नहीं हुई हैं और मोक्षयात्रा की राह ताक रही हैं।

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