नए युग की शुरुआत

नए युग की शुरुआत

केंद्र सरकार ने दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर के कई इलाकों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को हटाने का फैसला किया है। इन राज्यों में इस कानून को हटाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। पिछले दिनों मणिपुर विधानसभा चुनाव में अफस्पा एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बना था। गृहमंत्री …

केंद्र सरकार ने दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर के कई इलाकों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को हटाने का फैसला किया है। इन राज्यों में इस कानून को हटाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। पिछले दिनों मणिपुर विधानसभा चुनाव में अफस्पा एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बना था।

गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में अब शांति, समृद्धि और अभूतपूर्व विकास के एक नए युग की शुरूआत हो रही है। नागालैंड में दो महीने पहले जब भारतीय सेना की कथित गोलीबारी में कई नागरिकों की मौत हो गई थी। उस दौरान वहांं अफस्पा को हटाने की मांग जोर पकड़ गई थी।

लोग इतने ग़ुस्से में थे कि नागालैंड विधानसभा को इस कानून के विरुद्ध एक विशेष सत्र आयोजित कर प्रस्ताव पारित करना पड़ा।
पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की मदद करने के लिए 11 सितंबर 1958 को इस कानून को पास किया गया था। 1983 में पंजाब और चंडीगढ़ भी इस अधिनियम के दायरे में आए। 1997 में वहां पर समाप्त कर दिया गया।

1989 में जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ा तो यहां भी 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया। अफस्पा को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर समेत कई हिस्सों में लागू किया गया था। इनमें से ज्यादातर ‘अशांत क्षेत्र’ की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सटी थीं।

हालांकि, बाद में समय-समय पर कई इलाकों से इसे हटा भी दिया गया। फिलहाल, ये कानून जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है। त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय से इसे हटा दिया गया है। मानवाधिकार संगठन भी काफी समय से जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों से इस कानून को हटाने की वकालत कर रहे हैं।

कानून का विरोध करने वाले तर्क देते हैं सशस्त्र बलों को मिली अत्यधिक शक्तियां उन्हें असंवेदनशील और गैर-पेशेवर बनाती हैं जिससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में अफस्पा की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही इस तरफ भी ध्यान देना जरूरी है कि अशांत क्षेत्रों में दशकों से लागू होने के बावजूद यह वांछित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सका है।

केंद्र के मुताबिक वर्ष 2014 की तुलना में 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74 फीसदी की कमी आई है। ऐसे में सरकार का चरणबद्ध तरीके से इसके प्रभाव वाले क्षेत्रों में कमी करने का निर्णय स्वागत योग्य है। इससे उत्तर पूर्व में विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होगा।

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