बरेली: इस्लाम की दशा सुधारने वाले आला हजरत ने बताई थी काबा की दिशा

बरेली: इस्लाम की दशा सुधारने वाले आला हजरत ने बताई थी काबा की दिशा

मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार। आला हजरत इमाम अहमद रजा खान फाजिल-ए-बरेलवी के 104 वें उर्स का आगाज होने जा रहा है। पूरी दुनिया से उर्स में शिरकत करने के लिए लोग यहां जुटते हैं। आला हजरत ने अपनी जिंदगी में कई ऐसे कारनामों को अंजाम दिया, जिसका लोहा आज भी पूरी दुनिया मानती है। …

मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार आला हजरत इमाम अहमद रजा खान फाजिल-ए-बरेलवी के 104 वें उर्स का आगाज होने जा रहा है। पूरी दुनिया से उर्स में शिरकत करने के लिए लोग यहां जुटते हैं। आला हजरत ने अपनी जिंदगी में कई ऐसे कारनामों को अंजाम दिया, जिसका लोहा आज भी पूरी दुनिया मानती है। उन्हीं में से एक कारनामा था किबला की दिशा पता करने के लिए सूत्रों की इजाद। 20वीं सदी के शुरुआत में एक आम इंसान के लिए दिशा मालूम करना आसान नहीं था। दरगाह आला हजरत के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि भारत के मुसलमान पश्चिम दिशा किबला की ओर मुंह करके नमाज अदा करते हैं। आला हजरत ने न सिर्फ दिशा मालूम करना आसान किया बल्कि एक किताब इसके सूत्रों को लेकर लिखी।

मदरसा मंजर-ए-इस्लाम के वरिष्ठ मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने बताया कि जिन मसाइल को उस दौर के आलिम नहीं सुलझा पाते थे, आला हजरत अपनी पुस्तकों व इल्म के जरिए उनको सुलझाकर पूरी दुनिया में भारत को केंद्र बिंदु में ला दिया था। हर मुसलमान पर 24 घंटे में पांच नमाजें फर्ज हैं। यह नमाजें सऊदी अरब के मक्का में मौजूद काबा की तरफ मुंह करके पढ़ी जाती हैं। मस्जिद के निर्माण में भी दिशा काबा की तरफ करना जरूरी होता है। जिसके बगैर नमाज आम हालात में नमाज नहीं हो सकती।

आला हजरत के जमाने में इंटरनेट नहीं था। न ही इन दिशाओं के मालूम करने के कोई यंत्र। ऐसे वक्त में आला हजरत ने पूरी दुनिया के लिए किबला की दिशा मालूम करने के एक तालिका बनाई। इस विषय पर साल 1906 ई0 में 280 पन्नों की एक किताब ‘कशफुल इल्लाह अन सिम्तिल किब्ला’ उर्दू भाषा में लिखी थी। जिसमें 10 सूत्र निर्धारित करते हुए आलाहजरत ने बताया था कि अगर किसी को अपने शहर या जिस जगह वह रह रहा है, वहां का ‘तूलुल बलद’ (अक्षांश) और ‘अरज़ुल बलद’ (देशान्तर) मालूम हो तो वह इंसान चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हो किबला की दिशा आसानी से मालूम कर सकता है।

किताब में आला हजरत ने हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, बंग्लादेश के कई शहरों के किबला की दिशा निकालकर एक तालिका भी बनाई थी। इसी तरह जावा, मुंबई, कराची और कोलंबो से अदन (सीरिया) तक और अदन से उपरोक्त शहरों और मुल्कों तक जाने वाले समुद्री जहाजों के लिए 100-100 मील के फासले की काबा की दिशा के निर्धारण पर आधारित एक तालिका भी बनाई थी। उन्होंने समुद्री रास्ते से उपरोक्त शहरों की दूरी भी बता दी थी।

किबला की दिशा मालूम करने की विधि
10 सूत्रों के अलावा आला हजरत ने एक प्रयोगात्मक विधि भी लिखी है। जिसके मुताबिक 29 मई को जीएमटी से सुबह के 9 बजकर 17 और 18 मिनट पर और 16 जुलाई को जीएमटी से सुबह के 9 बजकर 26 और 27 मिनट पर जिस जगह आप रहते हैं। वहां अगर कोहरा या बादल नहीं है तो एक समतल भूमि पर एक लकड़ी बिल्कुल सीधी खड़ी करें, उस लकड़ी की जो छाया पड़े तो उस छाया के सिरे पर खड़े होकर अपना मुंह लकड़ी की ओर करें तो काबा व किबला की दिशा बिल्कुल आपके सामने होगी।

इस प्रयोगात्मक विधि से एशिया, अफ्रीका, यूरोप, पश्चिमी आस्ट्रेलिया के लोग काबा की दिशा निकाल सकते हैं। इसी तरह 14 जनवरी और 30 नवंबर को इस विधि से लकड़ी खड़ी करके उसकी छाया की तरफ मुंह करें तो काबा इसी छाया की दिशा में होगा। इस विधि से उत्तरी और दक्षिणी अमरीका, पूर्वी आस्ट्रेलिया वाले काबा की दिशा मालूम कर सकते हैं।

किताब से दूर हुआ था उत्तरी अमेरिका में भ्रम
1995 में उत्तरी अमरीका के कई शहरों में नमाज पढ़ने की दिशा को लेकर वहां के उलेमा और मुफ्तियों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी थी। कुछ ने इन शहरों में नमाज पढ़ने की दिशा पूरब का दक्षिणी कोना बताया तो कुछ ने पूरब का उत्तरी कोना बताया। इस भ्रम को आला हजरत की इसी किताब से दूर किया गया।

किताब के जरिए फैसला हुआ कि पूरब का उत्तरी हिस्सा है किबला है। मौजूदा समय में भी इस किताब की पूरी दुनिया में बेहद मांग है। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बंग्लादेश में जहां कहीं भी मस्जिद बनाई जाती है तो उसकी दिशा का निर्धारण आला हजरत की बनाई तालिका के मुताबिक ही होता है।

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