कभी जूते खरीदने को नहीं थे पैसे, खो-खो ने दिलाई नौकरी, ये है रामजी की कहानी...

अमृत विचार, हल्द्वानी। आईपीएल से एक क्रिकेट का सितारा चमका था जिसे आज लोग रिंकू सिंह के नाम से जानते हैं। वह बेहद ही समान्य परिवार से था, पिता मजदूरी का काम करते थे। लेकिन रिंकू ने अपने जुनून से क्रिकेट को चुना। आज क्रिकेट में रिंकू पूरे देश में डंका बजा रहे हैं।
ऐसी ही कहानी महाराष्ट्र की खो-खो टीम के खिलाड़ी रामजी कश्यप की है। वह महाराष्ट्र के लिए जर्सी नंबर 6 से खेलते हैं। उनके पिता और बड़ा भाई आज भी कबाड़ बेचने का काम करते हैं। जबकि छोटा भाई भी उनकी तरह खो-खो खेलता है। एक समय ऐसा था जब रामजी के पास खेलने के लिए जूते तक नहीं थे। लेकिन आज कड़ी मेहनत से वह केंद्र सरकार की नौकरी में है। रामजी कश्यप का कहना है कि वह खो-खो में अपने प्रदर्शन से अपनी टीम के लिए योगदान करते आए हैं। आज हल्द्वानी में खो-खो में फिर से गोल्ड जीतकर बहुत अच्छा लग रहा है। कश्यप ने युवाओं से रुचि वाले खेलों में भाग लेने को कहा।
जुनून ने दिलाई सफलता
जब में 11 साल का था तब मैं कक्षा पांच में सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता था। तब से ही मैंने खो-खो मैच खेलना शुरू किया था। घर से मुझे कोई सपोर्ट नहीं था। लेकिन मैं हमेशा से खो-खो का खिलाड़ी बनना चाहता था। हां मैंने अपने परिवार की बात नहीं मानी। आज खो-खो ने उनको सरकारी नौकरी के साथ अलग पहचान भी दिलाई है।