Special Story : दिल्ली के बाद रामपुर में है गांधी जी की दूसरी समाधि, रखी गई हैं बापू की अस्थियां
महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर विशेष : नवाब रजा अली खां लाए थे बापू की अस्थियों को स्पेशल ट्रेन से रामपुर, 18 सेर वजनी अष्ट धातु के कलश में समाधि में रखी गई हैं बापू की अस्थियां
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रामपुर स्थित गांधी समाधि और नवाब रामपुर अपनी ट्रेन के इस कोच में रखकर लाए थे महात्मा गांधी की अस्थियां।
सुहेल जैदी, अमृत विचार। देश को स्वतंत्रता मिलने के कुछ महीनों बाद 30 जनवरी 1948 की शाम को प्रार्थना के दौरान बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मार दी थी। ये दिन इतिहास में गांधी जी की पुण्यतिथि के तौर पर हमेशा के लिए दर्ज है। रामपुर रियासत के आखिरी शासक नवाब रजा अली खां अपनी स्पेशल ट्रेन से 11 फरवरी 1948 को बापू की अस्थियां रामपुर लाए थे। नवाब स्टेशन पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। बापू की अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित कर दिया गया। शेष अस्थियों को अष्टधातु के कलश में रखकर नवाब गेट के निकट दफन कर गांधी समाधि बनवा दी गई। जो आज भी रामपुर की धरोहर है।
महात्मा गांधी का रामपुर से खासा लगाव था। वह दो बार रामपुर आए थे। 30 जनवरी को बापू की हत्या किए जाने की खबर रामपुर पहुंची तो शोक व्याप्त हो गया। उस वक्त रामपुर रियासत का भारतीय गणराज्य में विलय नहीं हुआ था। 31 जनवरी 1948 को स्याह हाशिये के साथ स्टेट गजट जारी हुआ। वयोवृद्ध प्रसिद्ध इतिहासकार नफीस सिद्दीकी बताते हैं कि रामपुर के नवाब रजा अली खां ने 13 दिन के सरकारी शोक का ऐलान किया था। 2 फरवरी 1948 को जब बापू का दिल्ली में अंतिम संस्कार हुआ तब रामपुर के किले से उनको 23 तोप की सलामी दी गई। 10 फरवरी को नवाब दिल्ली के राजघाट पहुंचे और महात्मा गांधी की चिता वेदी पर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
इसके बाद नवाब रजा अली खां ने बापू की अस्थियों को रामपुर ले जाने की इच्छा जताई। अस्थियों को लाने के लिए रामपुर से 18 सेर वजनी अष्टधातु का कलश ले जाया गया था। 11 फरवरी को सुबह 9 बजे नवाब की स्पेशल ट्रेन से अस्थि कलश रामपुर लाया गया। हजारों की भीड़ स्टेशन पर थी। शांति मार्च के रूप में अस्थि कलश को स्टेशन से स्टेडियम लाया गया, जहां शहरवासियों ने बापू को श्रद्धांजलि दी। 12 फरवरी 1948 को रामपुर में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया और स्टेडियम में हुई शोकसभा में सर्वधर्म पाठ हुए। अपराह्न 3 बजे कलश को सुसज्जित हाथी पर रखकर कोसी नदी लाया गया। यहां नवाब ने कुछ अस्थियां कोसी में विसर्जित कीं और शेष को कलश में लेकर रियासती बैंड की मातमी धुन के बीच नवाब गेट के पास लाया गया। नवाब रजा अली खां ने अपने हाथों से अस्थि कलश को जमीन में दफन किया। इस स्थान पर गांधी समाधि बनाई गई।
पंडितों के तर्क के बाद रजा अली खां को मिली थी बापू की अस्थियां
नवाब रजा अली खां ने जब दिल्ली पहुंचकर बापू की अस्थियां रामपुर ले जाने की इच्छा जताई थी तब उनको मना कर दिया गया था। पहले यह कहा गया कि एक मुसलमान को बापू की अस्थियां क्यों दी जाएं। पंडितों के तर्क के बाद बापू की अस्थियां नवाब को सौंप दी गई थीं। नवाब रजा अली खां पंडित राम रतन, पंडित राम चंद्र, राम गोपाल शर्मा, पंडित राधे मोहन चौबे और मदन मोहन चौबे को अपने साथ दिल्ली ले गए थे। इस बात का जिक्र इतिहासकार शौकत अली खां ने अपनी किताब रामपुर का इतिहास में भी किया है।
सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर दिलाई भारत को आजादी
सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को आजादी दिलाने वाले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम मोहनदास करमचंद गांधी का है। कोई उन्हें महात्मा तो कोई बापू के नाम से पुकारता है। देश के राष्ट्रपिता होने की उपाधि महात्मा गांधी को मिली है। राष्ट्रपिता यानी हर भारतीय के पिता, जिन्होंने सही राह पर चलकर अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने की सीख दी। एक पिता की तरह लड़ाई झगड़े और खून खराबे से दूर रहने और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
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