बरेली का मशहूर पलंग तोड़ हलवा...नाम तो सुना ही होगा पर अब जानिए इसकी सच्चाई
कुतुबखाना बाजार में बिकने वाले पलंग तोड़ हलवे का चर्चा है बहुत दूर तक
बरेली, अमृत विचार। शहर के बीचो-बीच मौजूद कतुबखाना बाजार के क्या कहने। दिन में इस बाजार से जरूरत का कोई भी सामान लेना हो तो चले आएं। मगर शाम ढलते ही यहां पंडित जी के खास हलवे का चर्चा मिलेगा। यूं कहें तो इसे खाने वाले जितनी तादाद में नहीं उससे कहीं ज्यादा हलवे को लेकर सुनी सुनाई बातें लोगों के बीच मशहूर हैं। जी हां हम पलंगतोड़ हलवे की ही बात कर रहे हैं। ये नाम सुनकर हलवे का स्वाद भले ही आपको याद आया हो या नहीं लेकिन एक शरारती मुस्कान आपके चेहरे पर जरूर आ गई होगी। पेश है प्रीति कोहली की खास रिपोर्ट...
कुतुबखाना चौराहा से चंद कदम की दूरी पर शास्त्री मार्केट के आगे हर रात सजता है पंडित जी का मिष्ठान भंडार। बर्फी, मिल्क केक, कलाकंद, मिल्क बादाम शेक जैसे लजीज मिष्ठान पंडित जी के ठेले पर आपको मिल जाएंगे। मगर असल में पंडित जी का परिवार सालों से जिस चीज के लिए मशहूर है वो है पलंगतोड़ हलवा। पंडित दिनेश चंद्र शर्मा का ये हलवा खाने के लिए केवल शहर से ही नहीं बल्कि दूर-दराज के इलाकों से लोग आते हैं। हालांकि ये बात अलग है कि खाने वालों की तादाद से ज्यादा हलवे की चर्चा अधिक है। पंडित दिनेश शर्मा के मुताबिक हर दिन पलंगतोड़ हलवे के 20 से 25 ग्राहक तो आ ही जाते हैं। हलवे का नाम पलंगतोड़ क्यों पड़ा इसको लेकर पंडित जी कोई स्पष्ट जवाब तो नहीं देते मगर उनका कहना है कि हलवे को खाने से शरीर में ताकत आती है। वहीं बहुत सारे लोग हलवे की तासीर को मर्दाना ताकत बढ़ाने के नजरिए से भी देखते हैं। लेकिन अमृत विचार ऐसे किसी दावे की पुष्टि नहीं करता।
1933 से आज तक बिक रहा पलंग तोड़ हलवा
पंडित दिनेश चंद्र शर्मा का परिवार इस काम में सालों से लगा हुआ है। एक दो नहीं बल्कि पंडित जी अपने परिवार की चौथी पीढ़ी हैं जो इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। वह बताते हैं कि चार पीढ़ियों पहले उनके परदादा ने ये काम शुरू किया था। इस मिष्ठान भंडार की स्थापना 1933 में की गई थी। सारी मिठाईयां खुद से ही घर पर तैयार करते हैं। पूरी शुद्धता के साथ इनको तैयार किया जाता है।
नए-नए दूल्हा की पहली पसंद पलंग तोड़ हलवा
पलंगतोड़ हलवा यूं तो बादाम का हलवा होता है, लेकिन इसके साथ कई और मेवा व गोंद से मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। पंडित जी का कहना है कि यूं तो हर उम्र का शख्स इसको खा सकता है लेकिन उनके पास आने वाले ज्यादातर ग्राहक वो होते हैं जिनकी नई-नई शादी हुई होती है। वैसे पंडित जी की बातों से इतर इसमें कोई शक नहीं कि नए नवेले दूल्हा में हलवे को खाने का उत्साह ज्यादा रहता है।
देर रात तक आते हैं हलवे के खरीदार
पंडित दिनेश चंद्र शर्मा ने बताया कि इस हलवे में दो तरह की क्वालिटी वह तैयार करते हैं। जिसमें एक 1200 रुपए प्रति किलो व दूसरा 1800 रुपए प्रति किलो मिलता है। शाम 7:30 के से देर रात 12: 30 तक शास्त्री मार्केट के बाहर ठेला लगाते हैं। ठेले की लोकप्रियता का आलम ये है कि रात भर लोगों के आने का सिलसिला चलता रहता है।
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