Kanpur: खांसी-छींक को न करें नजरअंदाज, लापरवाही बनाती अस्थमा रोगी, डॉक्टरों ने बताया ऐसे करें दमा से बचाव...

Kanpur: खांसी-छींक को न करें नजरअंदाज, लापरवाही बनाती अस्थमा रोगी, डॉक्टरों ने बताया ऐसे करें दमा से बचाव...

कानपुर, अमृत विचार। लंबे समय से आपको खांसी या छींक आने की समस्या बनी है और सांस लेने पर सीने में सीटी जैसी आवाज आ रही तो सावधान रहने की जरूरत है। यह लक्षण अस्थमा (दमा) के हो सकते हैं, जो सांस की गंभीर बीमारियों में से एक है। इन लक्षणों को नजरअंदाज न कर तत्काल डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। 

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन करीब 10 मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं जिनमे बच्चे से लेकर वयस्क सभी शामिल हैं। मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल के विभागाध्यक्ष डॉ.संजय कुमार वर्मा ने बताया कि अस्थमा, वायुमार्ग और फेफड़ों को प्रभावित करने वाली समस्या है। 

फेफड़ों से हवा को अंदर और बाहर ले जाने वाली नलिकाएं प्रभावित हो जाती हैं। श्वासनली में सूजन और संकुचन के कारण दर्द होने और सांस छोड़ते समय आवाज आती है। हर साल सात मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। इस बार थीम ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जीआईएनए) की ओर से अस्थमा शिक्षा सशक्तिकरण है। 

ऑनलाइन गेम बच्चों के लिए खतरनाक 

डॉ. वर्मा ने बताया कि ऑउटडोर गेम न खेलकर बच्चों का ऑनलाइन गेमों की तरफ अधिक रुचि होना शरीर के लिए हानिकारक है। घर के बाहर या मैदान में गेम न खेलने से बच्चों की इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है। 

बाहर खेलने से शरीर क्रिया अच्छी तरह से करता है और फेफड़ों की क्षमता भी बढ़ती है। इंम्यून सिस्टम कमजोर होने से बच्चे बार-बार बीमार होते हैं और कुछ बच्चों को तो निमोनिया की भी समस्या हो जाती है। अस्पताल में तीन साल से लेकर 18 वर्ष तक के अस्थमा मरीज भी आते हैं। 

गर्भवती में भी होती अस्थमा की समस्या  

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिससे उनको कई प्रकार की बीमारी होने की आशंका अधिक रहती है। मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल की ओपीडी में एक माह में करीब 30 गर्भवती महिलाएं अस्थमा की बीमारी से ग्रस्त होकर इलाज के लिए पहुंचती हैं। उनको दवा भी सीमित ही मात्रा में लेनी चाहिए। 

ऐसे होता है अस्थमा 

सिर्फ प्रदूषण से दमा नहीं होता है, शरीर के अंदर मौजूद दमा के कारणों के लिए मुफीद माहौल जरूर पैदा होने लगता है। प्रदूषण और एलर्जी कारक तत्व जब श्वांस नलिकाओं व फेफड़े में पहुंचते हैं तो एक रिएक्शन होता है। 

इसमें साइटोकाइन और ल्यूकोट्राइन केमिकल निकलते हैं, जिससे श्वांस नलिकाओं में सूजन, आंख में जलन, आंखें लाल होने, पानी आने, नाक में सूजन व पानी आने और छींक की शिकायत बढ़ जाती है। सूजन से श्वांस नली संकरी होने पर सांस लेने में दिक्कत होती है। इससे सांस लेने में जोर लगाना पड़ता है। यही आगे चलकर दमा का रूप ले लेता है।

अस्थमा होने के प्रमुख कारण

-फूलों और फसलों के परागकण।
-धूल और धुआं
-सॉफ्ट ट्वॉय की धूल
-घर की मिट्टी (डस्ट माइट)
-घर के पर्दों पर जमी धूल
-फर्नीचर की पॉलिश
-घर में लगी वॉल हैंगिंग
-पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली और खरगोश) के बालों की एलर्जी।

ऐसे करें बचाव

-सॉफ्ट ट्वॉय नियमित रूप से धोने चाहिए।
-खिलौने साफ करके कुछ घंटे के लिए फ्रीजर में रख दें।
-चादर और पर्दे भी सप्ताह में जरूर धोएं।
-घर के कंबल, रजाई-गद्दे, तकिया को नियमित धूप में रखें।

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