पीलीभीत: चार लाख पार...'मिलेगी हार', कामयाब हो पाएगा 'नमक ' का वार!

पीलीभीत: चार लाख पार...'मिलेगी हार', कामयाब हो पाएगा 'नमक ' का वार!

वैभव शुक्ला, पीलीभीत, अमृत विचार। करीब एक माह तक चली सत्ता और विपक्ष की जुबानी जंग। उन मुद्दों पर बात जोकि शायद पहले भी आधे अधूरे ही रह गए थे। पांच साल बाद जनता के बीच हो रही परीक्षा में उन्हीं मुद्दों को पूरा करने के साथ-साथ विकसित करने का भरोसा..। पीलीभीत से रिश्ता तो हर कोई गली नुक्कड़ पर हुई चुनावी जनसभा में जोड़ता चला गया। 

मुंबई से लेकर पेरिस की तर्ज पर काम कराने, ट्रेनें चलवाने के साथ ही वन्यजीव हमलों से बचाने का मुद्दा गरमाया।  आधे अधूरे कामों को मुद्दा बनाकर सियासत को दिशा दी जाती रही। मगर अब चुनावी शोर थम चुका है। बारी पीलीभीत की जनता वोट की चोट देगी। नतीजे ही बताएंगे कि चार सौ पार आया या फिर अबकी बार हार का मुद्दा गरमाया। या फिर माया का मंच से किया नमक का वार मुश्किल बढ़ाने में कामयाब रहा।  

बता दें कि पहले चरण में पीलीभीत सीट पर 19 अप्रैल को मतदान है। सांसद वरुण गांधी का टिकट कटने के बाद से ही सीट हाई प्रोफाइल बन चुकी है।  निर्दलीय चुनाव न लड़ने और फिर वरुण गांधी का चिट्ठी के माध्यम से पीलीभीत वासियों के नाम भावुक संदेश पहुंचा और उसमें भी भाजपा से जुड़ी कोई बात नहीं हुई। 

इसी के साथ जीत-हार के गणित बैठाने की चुनौतियां खासकर भाजपा के लिए बढ़ती चली गई। चुनावी मैदान में भाजपा से कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद , समाजवादी पार्टी (गठबंधन) से पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार, बहुजन समाज पार्टी से पूर्व मंत्री अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू प्रत्याशी हैं।

टिकट में हुए बदलाव के साथ ही भाजपा ने इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी।  प्रचार के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ चुके हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक दो नहीं बल्कि संसदीय क्षेत्र में तीन बार आ चुके हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड सीमा से लेकर बंगाली बाहुल्य इलाकों में सभा की। 

उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, वित्त मंत्री सुरेश खन्ना समेत दर्जनों मंत्री और शीर्ष नेताओं ने भी कमल खिलाने के लिए जनता के बीच आकर जितिन प्रसाद के समर्थन में अबकी बार चार लाख पार का नारा मंचों से दिया।  स्थानीय मंत्री -विधायकों की भी जिम्मेदारी तय कर दी गई।  शायद ही ऐसा कोई दिन गया जब किसी शीर्ष नेता या फिर मंत्री की आवाजाही न रही। 

उधर, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूरनपुर में हुई जनसभा के दौरान अपने प्रत्याशी का माहौल बनाते हुए  मुद्दों की बरसात कर भाजपा पर सियासी वार किए। उनके मंच से नारा दिया गया कि अबकी बार, मिलेगी हार..जोकि सीधे तौर पर भाजपा खासकर उत्तर प्रदेश की सीटों को लेकर केंद्रित रहा।  किसान, सिख मतदाताओं को साधने के लिए  किसान आंदोलन पर बात की।  लखीमपुर से अजय मिश्र टेनी को प्रत्याशी बनाने और वरुण गांधी का टिकट काटने को लेकर भी इशारा किसान आंदोलन से जोड़कर कर गए थे।

इन सबके बीच 15 अप्रैल को बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने आकर पीलीभीत प्रत्याशी पूर्व मंत्री अनीस अहमद उर्फ फूलबाबू के समर्थन में जनसभा को संबोधित किया। जिसमें उनका फोकस पिछड़े, दलितों और मुस्लिम पर अधिक रहा।  ऐसा नहीं कि इनके मंच से कोई संदेश आम जनता तक नहीं पहुंचाया गया।  सहज अंदाज में बोलते हुए मायावती ने नमक के इशारे भाजपा पर सियासी वार किए।  चुनावी प्रचार बुधवार शाम पांच बजे से बंद हो गया था। नेताओं की मतदाताओं तक बात और मुद्दे पहुंचाए जा चुके हैं।  

पीलीभीत सीट पर भाजपा, सपा या फिर चाहे बसपा। तीनों के ही प्रत्याशियों के आगे के सियासी सफर की दिशा तय होगी। इतना ही नहीं चुनाव में अपने-अपने नारे देकर जीत के लिए आश्वस्त हो चुके दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग चुकी हैं। वैसे भी ये पहले चरण का वह भी हाईप्रोफाइल सीट का मतदान है। तो सभी राजनीतिक दल निगाह साधे हुए हैं। चूंकि इस बार तराई के पीलीभीत के मतदाताओं की ओर से 19 अप्रैल को दी गई वोट की चोट अन्य सीटों पर भी बड़ा असर दिखाएगी।

बीच-बीच में बिगड़ती गई रफ्तार
बीते पंद्रह दिन के भीतर प्रचार प्रसार के दौरान हुई उथल-उथल पर नजर डालें, जोकि सुर्खियां बनी रही।  वह भी अधिकांश भाजपा खेमे से ही निकली। फिर चाहे सभासदों का मुखर होना हो या फिर पूरनपुर एक  समाज का बैठक करना। एक बड़े नेता की पीएम की सभा में की गई अनदेखी के बाद नाराजगी का मचा रहा शोर..। हालांकि बाद में सभी को मनाने का भी दावा कर लिया गया है। मगर भितरघात का शोर अभी पूरी तरह से थमा नहीं है। सपा-बसपा में भी इसी तरह की हलचल चुनावी सभाओं के बीच बनी रही।

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